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Bihar Politics: बिहार में पीढ़ीगत बदलाव, पिता से बेटों तक

Bihar Politics: आगामी बिहार विधानसभा चुनाव बेटों की क्षमता की परीक्षा होंगे, जबकि उनके पिता अब पीछे की सीट पर रहेंगे। यह एक पीढ़ीगत बदलाव है। राजद के तेजस्वी यादव, लोजपा (रामविलास) के चिराग पासवान, हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के...
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लालू प्रसाद यादव व तेजस्वी यादव की फाइल फोटो।
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Bihar Politics: आगामी बिहार विधानसभा चुनाव बेटों की क्षमता की परीक्षा होंगे, जबकि उनके पिता अब पीछे की सीट पर रहेंगे। यह एक पीढ़ीगत बदलाव है। राजद के तेजस्वी यादव, लोजपा (रामविलास) के चिराग पासवान, हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के सुमन कुमार और भाजपा के सम्राट चौधरी या तो अपने-अपने पिता की राजनीतिक विरासत को बचाने के लिए या उसे और मजबूत करने के लिए चुनावी मैदान में उतरेंगे। उनके पिता जमीनी नेता रहे, जबकि बेटों को राजनीति अपेक्षाकृत आसान तरीके से मानो थाली में परोसकर मिली है।

पूर्व विधान परिषद सदस्य और मुख्यमंत्री नितिश कुमार के कभी करीबी रहे प्रेम रंजन मणि के अनुसार, “उनकी सबसे बड़ी पूंजी यह है कि वे अपने पिता के बेटे हैं और उनकी विरासत मिली है। लेकिन यही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी भी है, क्योंकि इससे उन्हें एक साफ राजनीतिक शुरुआत नहीं मिलती और वे अपने पिता के विरोधियों को भी विरासत में पा जाते हैं।”

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ये चारों नेता बिहार की नई पीढ़ी (Gen X) के चेहरे हैं, जो आने वाले हफ्तों में आमने-सामने होंगे।

लालू और तेजस्वी

लालू यादव हमेशा पिछड़े, दलित और मुस्लिम समाज से सीधा संवाद रखते थे। उनके दरवाजे हर किसी के लिए खुले रहते थे और वे रघुवंश प्रसाद सिंह, रघुनाथ झा, शिवानंद तिवारी और मोहम्मद तस्लीमुद्दीन जैसे जमीनी नेताओं से घिरे रहते थे।

तेजस्वी यादव इसके उलट जनता और यहां तक कि अपने विधायकों से भी रोज़ाना संवाद नहीं करते, जब तक कोई सार्वजनिक कार्यक्रम न हो। वे कुछ चुनिंदा लोगों राज्यसभा सांसद संजय यादव और मनोज झा पर भरोसा करते हैं। 2019 में उन्होंने रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं की सलाह के बावजूद आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण का विरोध किया।

एक करीबी सहयोगी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “तेजस्वी जानबूझकर रोजमर्रा की मुलाकातों से बचते हैं, ताकि अपने पिता जैसी गलतियां न दोहराएं, जिन्होंने अपराधी प्रवृत्ति वालों की भी मदद की। तेजस्वी अपने पिता से कहीं अधिक केंद्रित नेता हैं।” लेकिन लालू के छोटे बेटे को चुनौती सिर्फ एनडीए से ही नहीं, बल्कि अपने बड़े भाई तेज प्रताप यादव से भी मिल रही है, जिन्होंने हाल ही में तेजस्वी की राघोपुर विधानसभा सीट पर जाकर जनता से कह दिया कि उनका विधायक निकम्मा है।

चिराग पासवान

पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान, जिनकी मां रीना शर्मा अमृतसर की हैं। चिराग अपने पिता से काफी अलग हैं। दिवंगत पासवान ने कई बार कांग्रेस गठबंधन और एनडीए के बीच पाला बदला, जिसके चलते लालू यादव ने उन्हें व्यंग्य में “मौसम विज्ञानी” कहा था। फिर भी, वरिष्ठ पासवान का पांव बिहार और दिल्ली दोनों जगह मजबूती से जमाए रहा। हाजीपुर से बार-बार जीतने वाले पासवान के दिल्ली स्थित बंगले में जाति धर्म से परे हर कोई ठहर सकता था। इससे गैर-पासवान वोटरों में भी उनकी स्वीकार्यता बनी।

इसके उलट, चिराग ने बिहार के वोटरों से सीधा जुड़ाव बहुत कम दिखाया है। वे सिर्फ चुनावी रैलियों में सक्रिय रहते हैं। एक साल तक खाद्य प्रसंस्करण मंत्री रहते हुए भी उन्होंने बिहार में कोई परियोजना घोषित नहीं की। उनके समर्थक मानते हैं कि एनडीए जीता तो वे मुख्यमंत्री होंगे, लेकिन सहयोगी दलों में कुछ लोग कहते हैं कि चिराग केवल भ्रम पैदा कर रहे हैं।

उनके एक करीबी ने कहा—“चिराग सौदेबाजी में अपने पिता से कहीं बेहतर हैं।” उन्होंने याद दिलाया कि पिछली विधानसभा में चिराग ने नीतीश कुमार की जदयू की सीटें घटाकर 243 में सिर्फ 43 कर दीं, जिससे पहली बार जदयू भाजपा की जूनियर पार्टनर बनी।

निशांत: मुख्यमंत्री का उत्तराधिकारी?

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार को लेकर कयास था कि वे आगामी चुनावों में सक्रिय होंगे। फरवरी में पहली बार उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपने पिता का बचाव भी किया। चर्चा थी कि निशांत को नालंदा से उम्मीदवार बनाया जा सकता है, लेकिन हाल ही में जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा ने इसे नकार दिया।

नीतीश हमेशा वंशवाद के खिलाफ रहे हैं, इसलिए निशांत का चुनाव लड़ना उनकी छवि को नुकसान पहुंचा सकता था। हालांकि चुनाव बाद हालात बदल सकते हैं।

सम्राट चौधरी फैक्टर

भाजपा के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, शाकुनी चौधरी के बेटे हैं, जिन्हें कुशवाहा जाति का नेता माना जाता है। यादवों के बाद बिहार का दूसरा सबसे बड़ा ओबीसी वर्ग। सम्राट ने शुरुआत राजद से की थी, लेकिन भाजपा में शामिल होने के बाद उनकी राजनीति तेजी से आगे बढ़ी। कहा जाता है कि उनकी सीधी पहुंच गृह मंत्री अमित शाह तक है। भाजपा में उन्हें मुख्यमंत्री पद का चेहरा माना जाता है, जिससे पार्टी के भीतर ही असंतोष है।

सुमन कुमार

एनडीए सहयोगी जीतन राम मांझी, जो हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के नेता हैं। मांझी अपने बेटे सुमन कुमार को पार्टी की विरासत सौंपने वाले हैं। पार्टी महादलित समुदाय, विशेषकर मुसहरों पर मजबूत पकड़ रखती है, लेकिन सुमन अब तक अपने पिता की तरह प्रभाव नहीं दिखा पाए हैं। मांझी स्वयं बिहार के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं।

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