Tribune
PT
About Us Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

Atal Vajpayee Birth Anniversary : कवि-राजनेता जिनके ओजस्वी शब्दों में था जादू, चुटीली टिप्पणियों के कारण विपक्ष से भी मिली थी प्रशंसा

करिश्माई नेता अटल बिहारी वाजपेयी की बुधवार को 100वीं जयंती
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

नई दिल्ली, 24 दिसंबर (भाषा)

Atal Vajpayee Birth Anniversary : करिश्माई नेता अटल बिहारी वाजपेयी की बुधवार को 100वीं जयंती है। राजनीति में वाजपेयी की कुशलता किसी से छिपी नहीं, लेकिन शायद जिस बात ने उन्हें अपने साथी राजनेताओं और आम आदमी के बीच अधिक लोकप्रिय बनाया, वह था उनका काव्यात्मक पक्ष जो अक्सर उनके जोशीले भाषणों में झलकता था।

Advertisement

सार्वजनिक भाषणों ने भीड़ की भी तालियां बटोरीं

पूर्व प्रधानमंत्री ने संसद में बोलते समय अपने वाक कला और चुटीली टिप्पणियों के कारण विपक्ष के सदस्यों से भी प्रशंसा प्राप्त की। काव्य से भरपूर उनके सार्वजनिक भाषणों ने भीड़ की भी जमकर तालियां बटोरीं। वाजपेयी का 93 साल की उम्र में लंबी बीमारी के बाद 16 अगस्त 2018 को निधन हो गया था। वाजपेयी ने वास्तव में अपनी कविता ‘अपने मन से कुछ बोलें' में मानव शरीर की भंगुरता को रेखांकित किया था। इसके एक छंद में उन्होंने लिखा था-- ‘पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी, ​​जीवन एक अनंत कहानी; पर तन की अपनी सीमाएं; यद्यपि सौ शरदों की वाणी, इतना काफी है अंतिम दस्तक पर खुद दरवाजा खोलें'। उन्होंने एक बार अपने भाषण में यह भी कहा था कि ‘मनुष्य सौ साल जिए ये आशीर्वाद है, लेकिन तन की सीमा है।'

‘शब्दों का जादूगर' जैसी मिली उपाधियां

ग्वालियर में 25 दिसंबर 1924 को जन्मे भारत रत्न से सम्मानित वाजपेयी अंग्रेजी में निपुण थे। हालांकि, संसद के अंदर या बाहर जब भी वह हिंदी में बोलते थे, उनकी तीखी टिप्पणियों के साथ-साथ समयानुकूल व्यंग्य भी उनके वाक कौशल को चार चांद लगाता था। एक अनुभवी राजनीतिज्ञ के रूप में उन्होंने संदेश को स्पष्ट करने के लिए सावधानीपूर्वक शब्दों का चयन किया तथा अपने व्यंग्य में भी गरिमामयी अंदाज बनाए रखा। वाजयेपी अपने भाषणों में शब्दों का चयन इतनी कुशलता से करते कि उन्हें सुनने के लिए लोग लालायित रहते और उन्हें ‘शब्दों का जादूगर' जैसी उपाधियां देते। उनके अधिकांश भाषणों में देश के प्रति उनका प्रेम और लोकतंत्र में आस्था, एक मजबूत भारत के निर्माण के उनके दृष्टिकोण के अनुरूप प्रतिध्वनित होती थी।

सत्ता का तो खेल चलेगा, सरकारें आएंगी, जाएंगी

अपनी 13 दिन की अल्पमत सरकार के विश्वास मत से पहले 27 मई, 1996 को संसद में अपने जोरदार और प्रेरक भाषण में वाजपेयी ने प्रसिद्ध टिप्पणी की थी, “सत्ता का तो खेल चलेगा, सरकारें आएंगी, जाएंगी; पार्टियां बनेंगी, बिगाड़ेगी; मगर ये देश रहना चाहिए, इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए”। वाजपेयी की सरकार गिर गई थी। वह एक प्रखर कवि थे, उन्होंने कई रचनाएं लिखीं, जिनमें ‘कैदी कविराय की कुंडलियां' (आपातकाल के दौरान जेल में लिखी गई कविताओं का संग्रह), ‘अमर आग है' तथा ‘मेरी इक्यवान कविताएं', दोनों कविता संग्रह शामिल हैं। उन्हें अक्सर ऐसा महसूस होता था कि राजनीति के कारण उन्हें कविता के लिए समय नहीं मिल पाता।

Advertisement
×