नयी दिल्ली, 27 जुलाई (एजेंसी)
सुप्रीम कोर्ट ने धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को मिले अधिकारों का समर्थन करते हुए बुधवार को कहा कि धारा-19 के तहत गिरफ्तारी का अधिकार मनमानी नहीं है। जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रवि कुमार की पीठ ने पीएमएलए के कुछ प्रावधानों की वैधता को बरकरार रखते हुए कहा कि धारा-5 के तहत धनशोधन में संलिप्त लोगों की संपत्ति कुर्क करना संवैधानिक रूप से वैध है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि हर मामले में ईसीआईआर (प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट) अनिवार्य नहीं है। ईडी की ईसीआईआर पुलिस की प्राथमिकी के बराबर होती है। पीठ ने कहा कि यदि ईडी गिरफ्तारी के समय उसके आधार का खुलासा करती है तो यह पर्याप्त है। इसके साथ अदालत ने पीएमएलए अधिनियम-2002 की धारा 19 की संवैधानिक वैधता को दी गई चुनौती को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि धारा 19 में कड़े सुरक्षा उपाय दिए गए हैं। प्रावधान में कुछ भी मनमानी के दायरे में नहीं आता। पीठ ने कहा कि विशेष अदालत के समक्ष जब गिरफ्तार व्यक्ति को पेश किया जाता है, तो वह ईडी द्वारा प्रस्तुत प्रासंगिक रिकॉर्ड देख सकती है तथा वह ही धनशोधन के कथित अपराध के संबंध में व्यक्ति को लगातार हिरासत में रखे जाने पर फैसला करेगी। पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘धारा-5 संवैधानिक रूप से वैध है। यह व्यक्ति के हितों को सुरक्षित करने के लिए एक संतुलन व्यवस्था प्रदान करती है और यह भी सुनिश्चित करती है कि अपराध से अधिनियम के तहत प्रदान किए गए तरीकों से निपटा जाए।’
शीर्ष अदालत ने पीएमएलए के कुछ प्रावधानों की व्याख्या से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया। सुनवाई के दौरान, शीर्ष अदालत ने अधिनियम की धारा-45 के साथ-साथ दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा-436ए और आरोपियों के अधिकारों को संतुलित करने पर भी जोर दिया।