भिवानी थाने में ‘गैरकानूनी हिरासत’ का आरोप: मानव अधिकार आयोग ने SP से मांगी रिपोर्ट, ASI पर गिरी गाज
Action by HHRC: हरियाणा मानव अधिकार आयोग ने भिवानी के थाना सदर में अवैध हिरासत और धमकी के गंभीर आरोपों का संज्ञान लेते हुए सख्त रुख अपनाया है। आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ललित बत्रा ने भिवानी के पुलिस अधीक्षक से इस मामले में विस्तृत रिपोर्ट तलब की है। मामला एक एएसआई वीरेंद्र सिंह से जुड़ा है, जिन पर शिकायतकर्ता को बिना गिरफ्तारी आदेश के घंटों थाने में बैठाए रखने और धमकाने का आरोप है।
गांव धानाजंगा (भिवानी) निवासी अशोक कुमार ने आयोग में शिकायत संख्या 1584/2/2025 के तहत मामला दर्ज कराया है। उसका कहना है कि उसके भाई जगजीत ने उसके खिलाफ एक झूठी शिकायत थाना सदर, भिवानी में दर्ज कराई थी। इस शिकायत की जांच एएसआई वीरेंद्र सिंह को दी गई।
शिकायत के अनुसार, 13 जून को एएसआई ने अशोक को फोन पर थाने बुलाया और धमकाया। जब वह थाने पहुंचा, तो उसे सुबह से शाम तक एक आरोपी की तरह बैठाए रखा गया न कोई गिरफ्तारी प्रक्रिया, न कोई कानूनी औपचारिकता। बाद में उसका चिकित्सीय परीक्षण कराया गया और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 126 और 170 (पूर्व में दं.प्र.सं. की धारा 107/151) के तहत मामला दर्ज कर उसे लॉकअप में डाल दिया गया।
आयोग ने दी चेतावनी- “अवैध कार्रवाई पर अधिकारी होगा जवाबदेह”
न्यायमूर्ति ललित बत्रा ने आदेश में कहा कि यदि धारा 170 बीएनएसएस (पूर्व 151 CrPC) के तहत गिरफ्तारी की शर्तें पूरी नहीं होतीं, फिर भी कोई व्यक्ति हिरासत में लिया जाता है, तो वह संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 के तहत मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के दायरे में आता है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले “राजेंद्र सिंह पठानिया बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली, 2011)” का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि धारा 107/151 CrPC (अब 126/170 BNSS) का उद्देश्य “निवारक न्याय” है, न कि दंडात्मक कार्रवाई। इस प्रावधान का उपयोग तभी किया जा सकता है जब शांति भंग का आसन्न खतरा हो। अन्यथा, ऐसी गिरफ्तारी अवैध मानी जाएगी।
आयोग ने उठाए चार अहम सवाल
- समन का आधार: शिकायतकर्ता को थाने बुलाने का क्या कानूनी औचित्य था?
- अवैध निरुद्धता: किन परिस्थितियों में उसे घंटों थाने में बैठाए रखा गया?
- गिरफ्तारी की वैधता: क्या BNSS की धाराओं के तहत आवश्यक शर्तें पूरी की गईं?
- जांच अधिकारी का आचरण: एएसआई वीरेंद्र सिंह का व्यवहार और प्रक्रिया में हुई त्रुटियां क्या थीं?
17 दिसंबर तक मांगी रिपोर्ट, आयोग ने कहा- “कानून से ऊपर कोई नहीं”
आयोग के प्रोटोकॉल, सूचना व जनसंपर्क अधिकारी डॉ. पुनीत अरोड़ा ने बताया कि न्यायमूर्ति बत्रा ने भिवानी एसपी को आदेश दिया है कि वे उपरोक्त सभी बिंदुओं पर विस्तृत रिपोर्ट आयोग के जांच निदेशक के माध्यम से 17 दिसंबर 2025 से पहले प्रस्तुत करें। आयोग ने यह भी दोहराया कि मानव अधिकारों के उल्लंघन पर शून्य सहिष्णुता की नीति अपनाई जाएगी और किसी भी अधिकारी को “कानून से ऊपर” नहीं माना जाएगा।