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रोहतक, गाजियाबाद में सुधरी हवा; मुंबई-चेन्नई में बिगड़ी

दुर्लभ ‘ट्रिपल-डिप ला नीना’ का असर

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नयी दिल्ली, 18 फरवरी (एजेंसी)

जलवायु परिवर्तन के साथ ही मौसम संबंधी अप्रत्याशित गतिविधि ‘ट्रिपल-डिप ला-नीना’ के कारण 2022-23 की सर्दियों के दौरान जहां उत्तर भारत में वायु गुणवत्ता में सुधार दिखा, वहीं प्रायद्वीपीय भारत में प्रदूषण स्तर में वृद्धि दर्ज की गयी। ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज’ के ‘चेयर प्रोफेसर’ गुरफान बेग की अगुवाई में हुए अध्ययन में कहा गया है कि स्थानीय उत्सर्जन के अलावा तेजी से बदलती जलवायु भी वायु गुणवत्ता को प्रभावित करने वाला एक अहम कारक है। अध्ययन में खुलासा किया गया है कि 2022-23 में सर्दियों के दौरान प्रायद्वीपीय भारत के शहरों में वायु गुणवत्ता बहुत बिगड़ गयी, जो हाल के दशकों के दौरान नजर आये रूझान के विपरीत है। वहीं, उत्तर भारत के शहरों में गाजियाबाद में प्रदूषकों के स्तर में 33 प्रतिशत की कमी के साथ वायु गुणवत्ता में काफी सुधार आया, जबकि रोहतक (प्रदूषकों में 30 प्रतिशत की कमी) और नोएडा (प्रदूषकों में 28 प्रतिशत की कमी) क्रमश: दूसरे व तीसरे स्थान पर रहे। दिल्ली में करीब 10 प्रतिशत सुधार आया। इसके विपरीत मुंबई में पीएम 2.5 में 30 प्रतिशत की वृद्धि के साथ वायु गुणवत्ता सबसे अधिक बिगड़ गयी। प्रायद्वीपीय भारत के अन्य शहरों में कोयंबूटर में प्रदूषकों में 28 प्रतिशत, बेंगलुरु में 20 और चेन्नई में 12 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

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उत्तर भारत के कई शहरों में वायु गुणवत्ता ‘राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम’ के तहत निर्धारित पंचवर्षीय लक्ष्य पर बिल्कुल कम समय में पहुंच गयी।  अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि ऐसा क्यों हुआ, यह पहेली बना हुआ है।

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जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान के जलवायु विज्ञानी और इस रिपोर्ट के सह-लेखक आरएच कृपलानी ने कहा, ‘असामान्य ट्रिपल डिप ला नीना मौसमी गतिविधि के आखिरी चरण के दौरान 2022-23 का शीतकाल आया। 21वीं सदी में यह पहली परिघटना है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव में इस मौसमी गतिविधि ने बड़े पैमाने पर वायु प्रवाह पर असर डाला तथा उत्तर भारत के शहरों में प्रदूषकों के इकट्ठा होने की दशा को रोकने तथा वायु गुणवत्ता में सुधार लाने में निर्णायक भूमिका निभायी।’

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