समापन से पहले महाकुंभ में उमड़ता जनसमुद्र
यद्यपि 13 जनवरी से प्रारंभ हुये महाकुंभ का मुख्य आकर्षण 14 जनवरी मकर संक्राति, 29 जनवरी मौनी अमावस्या और 3 फरवरी का बसंत पंचमी स्नान था। इन प्रमुख पर्वों पर अखाड़ों का शाही स्नान देखने और पुण्यदायिनी मां गंगा और यमुना में डुबकी लगाने के लिये देश विदेश से करोड़ों श्रद्धालु त्रिवेणी तट पर जुटे। परम्परा के अनुरूप बसंत पंचमी के अमृत स्नान के तत्काल बाद से अखाड़ों के नागा संन्यासी महाकुंभ से प्रस्थान कर गये। आचार्य महामंडलेश्वर सहित कुछ प्रमुख पदाधिकारी भी आंतरिक चुनाव तथा अन्य तमाम विषयों पर मंथन कर 7-8 फरवरी तक चले गये। अधिकांश प्रमुख धर्माचार्य भी महाकुंभ से जा चुके हैं। पौष पूर्णिमा पर लगभग 10 लाख कल्पवासियों के चले जाने के बाद से 40 वर्ग किलोमीटर में विस्तार लिये महाकुंभ का अधिकांश भाग खाली हो गया है लेकिन इन सबके बावजूद स्नान के लिये आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में कहीं कोई कमी नहीं है।
हैदराबाद से आयीं मेजर रंजीता के बताया कि ट्रेन में टिकट नहीं मिला, हवाई यात्रा बहुत महंगी थी तो अपनी दो गाड़ियों से परिवार के 10 लोग आये। यहां आकर बाइक, आटो और नाव में बहुत पैसा खर्च हुआ लेकिन मां और पिता के साथ हम सबकी महाकुंभ में स्नान की इच्छा पूरी हो गई। यहां प्रतिदिन आने वाले लाखों लोग ऐसे हैं जो किसी भी स्थिति में महाकुंभ के अंतिम स्नान से पहले त्रिवेणी में स्नान कर लेना चाहते हैं।
महाकुंभ में स्नान के लिये आने वाले अधिकांश श्रद्धालुओं का कहना है कि 144 वर्ष बाद पुण्यदायी ग्रहों ने अमृत स्नान का संयोग बनाया है। हमारे बुजुर्ग और आने वाली पीढ़ी दोनों इससे वंचित होंगे, इसलिये आने वाले अधिकांश लोग मां-बाप के साथ अपने बच्चों को लेकर आ रहे हैं।
महाकुंभ के अपर मेलाधिकारी विवेक चतुर्वेदी बहुत सहजता से मानते हैं कि अंतिम स्नान पर्व महाशिवरात्रि तक 65 करोड़ से अधिक लोग संगम में डुबकी लगाने का रिकार्ड बनायेंगे।