16 की उम्र का भूला 62 में घर लौटा... कहते हैं उसे रिखी राम
एक हादसे ने याददाश्त छीनकर परिवार से किया था जुदा, 45 साल बाद दूसरी चोट ने कराया मिलन
सिर पर गहरी चोट लगने से याददाश्त जाने और बरसों बाद लौट आने के सीन आपने कई फिल्मों में देखें होंगे, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे शख्स से मिलवा रहे हैं, जो वास्तव में बरसों बाद याददाश्त लौटने के बाद अपने घर लौटा।
यह मामला हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर से जुड़ा है। जिले के गिरिपार इलाके के नाड़ी गांव में 62 वर्षीय रिखी राम के साथ यह फिल्मी पटकथा हकीकत बन गई। अपनी जवानी में एक सड़क हादसे में रिखी राम याददाश्त खो चुके थे और एक नये नाम से बरसों तक नयी जिंदगी जीते रहे, लेकिन जब उन्हें दोबारा चोट लगी तो धीरे-धीरे उनकी पुरानी बातें याद आने लगीं। करीब 45 साल बाद उनके घर लौटने पर परिवार में जश्न का माहौल है। इस अवधि में उनके माता-पिता स्वर्ग सिधार गये, लेकिन जब परिवार में भाई-बहनों ने उन्हें अपने बीच पाया तो वह फूले नहीं समाये।
रिखी राम गत 15 नवंबर को मुंबई से घर लौटे, इसका खुलासा तब हुआ, जब यह अनोखा मामला जश्न में तब्दील हुआ। इस समय जिला सिरमौर के शिलाई-पांवटा साहिब विधानसभा क्षेत्र के प्रवेश द्वार माने जाने वाले सतौन क्षेत्र के नाड़ी गांव में असाधारण खुशी का माहौल है।
दरअसल, गांव का बेटा रिखी राम वर्ष 1980 में महज 16 साल की उम्र में लापता हो गया था। रिखी राम ने बताया कि 1980 में वह कामकाज की तलाश में हरियाणा के यमुनानगर गये थे, जहां वह एक होटल में नौकरी करने लगे। एक दिन होटल कर्मी के साथ अम्बाला जाते समय उनके साथ एक गंभीर सड़क हादसा हो गया। सिर पर चोट लगने से याददाश्त चली गई। वह अपना नाम, घर-परिवार, पहचान सब भूल गये। कोई ऐसा शख्स भी नहीं था, जो उन्हें परिवार तक पहुंचा पाये और न ही दूरसंचार के इतने साधन मौजूद थे कि परिवार उनसे संपर्क कर सके। उस हालत में उनके साथी ने ही उनका नया नाम रवि चौधरी रख दिया और इसी नाम के साथ उन्होंने नयी जिंदगी की शुरुआत की।
मुंबई का किया था रुख : रिखी राम के अनुसार, याददाश्त खोने के बाद वह मुंबई के दादर में काम करने पहुंचे। इसके बाद नांदेड़ के एक काॅलेज में नौकरी मिलने पर वहीं बस गए। रिखी राम ने बताया कि वर्ष 1994 में उनकी शादी संतोषी से हुई और आज उनके पास दो बेटियां और एक बेटा है।
दोबारा हादसे के बाद आने लगे सपने
वर्षों तक रिखी राम, रवि चौधरी के तौर पर सामान्य जीवन जीते रहे और उन्हें अपना वास्तविक घर, परिजन या पूर्व पहचान कुछ भी याद नहीं आया। कुछ महीने पहले काम पर जाते हुए उनका दोबारा एक्सीडेंट हुआ, जिसके बाद उनकी खोई हुई यादें धीरे-धीरे लौटने लगीं। उन्हें सपनों में बार-बार आम के पेड़, सतौन क्षेत्र और गांव के झूले दिखाई देने लगे। शुरू में उन्होंने इन सपनों पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब यादें लगातार उभरती रहीं और बार-बार अपने गांव की झलक दिखने लगी तो उन्होंने इसका जिक्र अपनी पत्नी से किया।
फिर अतीत की खोज की जब यह सिलसिला लगातार बढ़ता गया, तो रिखी राम ने अपने अतीत की खोज शुरू की। ज्यादा पढ़ा-लिखा न होने के कारण उन्होंने अपने काॅलेज के एक छात्र से नाड़ी और सतौन से संबंधित गूगल पर कुछ जानकारियां व संपर्क नंबर ढूंढने में सहायता मांगी। रिखी राम ने बताया कि खोज के दौरान सतौन के एक कैफे का नंबर मिला। कैफे से उन्हें नाड़ी गांव के रुद्र प्रकाश का नंबर मिला। रिखी राम ने अपनी पूरी कहानी रुद्र प्रकाश को सुनाई, लेकिन शुरुआत में रुद्र प्रकाश ने इसे किसी तरह की धोखाधड़ी की संभावना मानकर गंभीरता से नहीं लिया और नजरअंदाज किया।
ऐसे पहुंचे परिवार तक
रिखी राम रोज कॉल करके अपने भाई-बहनों का हाल पूछते रहे। अंततः रुद्र प्रकाश काे धीरे-धीरे यकीन होने लगा और उन्होंने रिखी राम के परिवार के बड़े जीजा एमके चौबे से उनका संपर्क कराया, जिन्होंने बातचीत के बाद माना कि सामने वाला वास्तव में रिखी राम ही हो सकता है। सभी पक्षों की पुष्टि होने के बाद 15 नवंबर को रिखी राम अपनी पत्नी और बच्चों के साथ नाड़ी गांव पहुंचे। गांव में उनका स्वागत भाई दुर्गा राम, चंद्र मोहन, चंद्रमणि और बहन कौशल्या देवी, कला देवी, सुमित्रा देवी समेत बड़ी संख्या में ग्रामीणों ने फूल मालाओं और बैंड-बाजे से किया।

