नयी दिल्ली, 12 जुलाई (ट्रिन्यू)
दिल्ली हाईकोर्ट ने 1984 के सिख विरोधी दंगों के एक मामले में कई आरोपियों को बरी करने के फैसले को चुनौती देने में सरकार की ओर से की गई 28 साल की देरी को माफ करने से इनकार कर दिया। दंगों के एक केस में 28 मार्च, 1995 को एक सत्र अदालत ने आरोपियों को बरी कर दिया था।
इस मामले में सरकार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद गठित दो-सदस्यीय विशेष जांच दल (एसआईटी) ने 2019 में सिफारिश की थी कि आरोपियों को बरी करने के 1995 के आदेश के खिलाफ अपील दायर की जा सकती है। उस वक्त साक्ष्यों के अभाव में मामले को बंद कर दिया गया था। सरकार ने कहा कि कोविड महामारी के कारण और देरी हुई और अब 27 साल 335 दिन की देरी की माफी के लिए आवेदन के साथ अपील करने की अनुमति मांगी गयी है। हाईकोर्ट ने कहा कि देरी को माफ करने के लिए आवेदन में कोई आधार नहीं दिया गया है। अदालत ने उसे खारिज कर दिया।
जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने कहा, ‘लगभग 28 वर्षों की देरी का कोई भी कारण नहीं बताया गया है। एसआईटी द्वारा रिपोर्ट 15 अप्रैल, 2019 को दी गई थी, लेकिन उसके बाद भी लगभग चार साल की देरी हुई है, जिसके लिए कोई ठोस स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। सरकार ने अत्यधिक देरी के लिए जो आधार बताया है, उसे जायज नहीं ठहराया जा सकता।’