2008 Malegaon Blast : न्याय नहीं हुआ, ऊंची अदालतों का करेंगे रुख... विस्फोट में मारे गए लोगों के परिजनों का फूटा गुस्सा
2008 Malegaon Blast : मालेगांव विस्फोट में मारी गई 10 वर्षीय फरहीन के पिता ने मामले में निचली अदालत के फैसले को ‘‘गलत'' बताते हुए कहा कि जरूरत पड़ने पर वह न्याय पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक का रुख करेंगे। अदालत का फैसला गलत है।
उत्तरी महाराष्ट्र के मालेगांव शहर में 29 सितंबर 2008 को हुए विस्फोट में छह लोगों की मौत के लगभग 17 साल बाद मुंबई की एक विशेष अदालत ने भाजपा की पूर्व सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि उनके खिलाफ ‘‘कोई विश्वसनीय और ठोस सबूत नहीं'' है।
फैसले के बाद फरहीन के पिता लियाकत शेख (67) ने बातचीत में विस्फोट वाले दिन के घटनाक्रम को याद किया। उन्होंने बताया कि फरहीन उस दिन भिक्कू चौक पर वडा-पाव खरीदने के लिए घर से निकली थी। पेशे से चालक शेख ने कहा कि मैंने धमाके की आवाज सुनी। हम धमाके वाली जगह के पास ही टीन की छत वाले एक घर में रहते थे।
मैं अपनी बेटी को ढूंढ़ने के लिए घर से बाहर निकला, लेकिन वह नहीं मिली। बाहर अंधेरा था। किसी ने बताया कि घायलों में एक लड़की भी है, इसलिए मैं और मेरी पत्नी अस्पताल गए, जहां हमने उसे बहुत नाजुक हालत में पाया। आतंकवाद रोधी दस्ते (एटीएस) के तत्कालीन प्रमुख हेमंत करकरे ने पर्याप्त सबूतों के साथ आरोपियों को गिरफ्तार किया था।
मालेगांव विस्फोट में अपने बेटे सैयद अजहर को गंवाने वाले निसार अहमद ने भी कहा कि पीड़ितों को न्याय नहीं मिला। किसी भी विस्फोट के पीड़ितों को, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, न्याय मिलना चाहिए। विस्फोट में मारे गए इरफान खान के चाचा उस्मान खान ने कहा कि उनका भतीजा ऑटो-रिक्शा चलाता था। वह भिक्कू चौक पर चाय पीने गया था, तभी विस्फोट हो गया।
इरफान को गंभीर हालत में मुंबई ले जाया गया और उसने सरकारी अस्पताल में 10 घंटे तक मौत से जूझने के बाद दम तोड़ दिया। वह फैसले से खुश नहीं हैं। खान ने सवाल किया कि पहले इस मामले में कुछ मुसलमानों को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन बाद में उन्हें ‘क्लीन चिट' दे दी गई। अब इन लोगों को भी दोषी नहीं ठहराया गया, तो फिर दोषी कौन है?