2008 Malegaon Blast : मालेगांव मामले में संदेह के घेरे में एटीएस की जांच, अदालत ने जताई चिंता
2008 Malegaon Blast : सितंबर 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में सात लोगों को बरी करने के अपने फैसले में यहां की एक विशेष अदालत ने आरोपियों और गवाहों द्वारा लगाए गए उन आरोपों पर गंभीर चिंता जताई कि महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) के अधिकारियों ने उन्हें प्रताड़ित किया और अवैध रूप से हिरासत में रखा। एटीएस ने पहले मामले की जांच की थी, जिसके बाद इसे राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) को सौंप दिया गया था।
अदालत ने अपने 1036 पृष्ठों के फैसले में कहा कि साक्ष्य के दौरान लगभग सभी गवाहों ने यह बयान दिया कि उन्होंने स्वेच्छा से बयान नहीं दिए थे, बल्कि एटीएस अधिकारियों ने दबाव में उनसे बयान लिए थे। यह फैसला शुक्रवार को उपलब्ध कराया गया। फैसले में कहा गया, “कई गवाहों ने आरोप लगाया कि जांच के दौरान उन्हें यातना दी गई, उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया और उन्हें गैरकानूनी तरीके से हिरासत में रखा गया।
अभियोजन पक्ष ने हालांकि दावा किया था कि इन गवाहों ने एटीएस अधिकारियों के खिलाफ औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं कराई थी। अदालत ने कहा कि औपचारिक शिकायतों का अभाव उनकी गवाही को झूठा या अविश्वसनीय बताकर खारिज करने का आधार नहीं हो सकता।
अदालत ने कहा कि इस मामले में दो प्रमुख जांच एजेंसियां शामिल थीं, लेकिन कदाचार, यातना और अवैध हिरासत के आरोप केवल एटीएस अधिकारियों के खिलाफ लगाए गए हैं, एनआईए के खिलाफ नहीं। इससे एटीएस द्वारा जांच के दौरान एकत्र किए गए साक्ष्य की विश्वसनीयता पर गंभीर चिंता उत्पन्न होती है। उसने कहा कि उसके फैसले की एक प्रति एटीएस के महानिदेशक और एनआईए को भी अवलोकन और आवश्यक कार्रवाई के लिए भेजी जाएगी।
विशेष एनआईए न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने बृहस्पतिवार को मामले में पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया और कहा कि अभियोजन पक्ष अपने मामले को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है।
यह फैसला 29 सितम्बर, 2008 को मुंबई से लगभग 200 किलोमीटर दूर मालेगांव शहर में एक मस्जिद के पास एक मोटरसाइकिल पर बंधे विस्फोटक उपकरण में विस्फोट के 17 वर्ष बाद आया है। विस्फोट में छह लोगों की मौत हो गई थी और 101 अन्य घायल हो गए थे।