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1950 Law : 1950 का कानून, 2025 की कहानी; विवादों में फिर सावरकर, कोर्ट ने लगाई विराम की मुहर

सुप्रीम कोर्ट ने 1950 के कानून में सावरकर का नाम शामिल करने के अनुरोध वाली याचिका खारिज की
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नई दिल्ली, 27 मई (भाषा)

1950 Law : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें केंद्र को प्रतीक एवं नाम (अनुचित प्रयोग निवारण) अधिनियम, 1950 की अनुसूची में विनायक दामोदर सावरकर का नाम शामिल करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। वर्ष 1950 का कानून व्यावसायिक और वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए कुछ प्रतीकों और नामों के अनुचित इस्तेमाल को रोकने के लिए अधिनियम है।

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प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का कोई हनन नहीं हुआ है। व्यक्तिगत रूप से पेश हुए याचिकाकर्ता ने पीठ से कहा कि वह पिछले 30 साल से सावरकर पर शोध कर रहे हैं और उन्हें कानूनी रूप से सत्यापन योग्य तरीके से सावरकर के बारे में कुछ तथ्य स्थापित करने का अवसर चाहिए।

याचिकाकर्ता ने कहा, ‘‘मैं न्यायालय से प्रतिवादी संख्या दो (भारत सरकार) और प्रतिवादी संख्या तीन (गृह मंत्रालय) को उनका नाम प्रतीक और नाम (अनुचित प्रयोग निवारण) अधिनियम, 1950 की अनुसूची में शामिल करने के निर्देश जारी करने का भी अनुरोध करना चाहता हूं।''

प्रधान न्यायाधीश ने पूछा, "आपके मौलिक अधिकार का क्या हनन हुआ है?'' याचिकाकर्ता ने संविधान के अनुच्छेद 51ए का हवाला दिया, जो मौलिक कर्तव्यों से संबंधित है। उन्होंने कहा कि लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी "मेरे मौलिक कर्तव्यों को बाधित नहीं कर सकते हैं।'' न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि अनुच्छेद 32 की याचिका पर तभी विचार किया जा सकता है, जब मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो।

पीठ ने कहा, "अगर आप पाठ्यक्रम में कुछ भी प्रकाशित करना चाहते हैं तो भारत सरकार को ज्ञापन दें।'' याचिकाकर्ता ने कहा कि वह पहले ही सरकार को ज्ञापन दे चुके हैं। पीठ ने याचिका खारिज कर दी। एक अलग मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में एक रैली में सावरकर पर की गई "गैर-जिम्मेदाराना'' टिप्पणी के लिए 25 अप्रैल को कांग्रेस नेता राहुल गांधी की खिंचाई की थी। हालांकि, न्यायालय ने उनकी टिप्पणी के लिए उत्तर प्रदेश में दर्ज एक मामले में राहुल गांधी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगा दी थी।

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