Women's Day 2025 : वेतन असमानता पर बोली एक्ट्रेस माधुरी दीक्षित, कहा - महिलाओं को बार-बार खुद को साबित करना होगा
रवि बंसल/जयपुर, 8 मार्च (भाषा)
Women's Day 2025 : अभिनेत्री माधुरी दीक्षित का मानना है कि हिंदी सिनेमा में वेतन समानता अभी भी दिवास्वप्न है, क्योंकि महिलाओं को खुद को बार-बार साबित करना होगा और दर्शकों को सिनेमाघर तक खींचने की अपनी काबिलियत दिखानी पड़ेगी।
‘तेजाब', ‘हम आपके हैं कौन', ‘दिल तो पागल है', ‘खलनायक' और ‘देवदास' जैसी फिल्मों कर चुकी अभिनेत्री दीक्षित ने शुक्रवार शाम को आईफा 2025 के एक सत्र "सिनेमा में महिलाओं का सफर" में भाग लिया। आईफा पुरस्कार का रजत जयंती संस्करण शनिवार और रविवार को होगा। उनके साथ ऑस्कर विजेता निर्माता गुनीत मोंगा भी शामिल हुईं, जो 2025 के अकादमी पुरस्कार में भाग लेने के बाद अमेरिका से लौटी थीं।
हाल ही में फिल्म ‘भूल भुलैया 3' में नजर आईं दीक्षित ने कहा, महिलाओं को बार-बार खुद को साबित करना होगा और यह कहना होगा कि हम बराबर हैं और हम दर्शकों को आकर्षित कर सकते हैं। आपको हर बार यह साबित करना होगा। और हां, अभी भी असमानता है।'' उन्होंने कहा, "यह हर बार सीमा को थोड़ा और आगे बढ़ाने जैसा है, यह छोटे-छोटे कदम भरने जैसा है। हम असमानता को खत्म करने से अभी भी बहुत दूर हैं...हमें इस दिशा में हर दिन काम करना होगा।"
मोंगा ने कहा कि लोगों को महिला कलाकारों पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘‘स्पष्ट रूप से वेतन में अंतर है, साफतौर पर यह है...लेकिन मुझे लगता है कि मैं वास्तव में चाहती हूं कि पुरुष अभिनेता इस सवाल का जवाब दें।'' उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि इन सवालों का जवाब देने की जिम्मेदारी महिलाओं पर डालना बहुत अजीब बात है, क्योंकि हम ही वे लोग हैं जो इसका शिकार होते हैं।"
सबसे अधिक कमाई करने वाली हिंदी फिल्म के तौर पर स्त्री-2 का उदाहरण देते हुए मोंगा ने कहा कि महिलाओं के लिए अधिक अवसर सृजित किए जाने चाहिए। दीक्षित ने कहा कि उन्होंने अपने करियर में जो भी फिल्में कीं, उनमें महिला किरदार बहुत सशक्त थे। अभिनेत्री ने कहा कि "मृत्युदंड" उन फिल्मों में से एक है, जिसे उन्होंने विशेष तौर पर पसंद किया, क्योंकि इसमें उन्होंने एक सशक्त भूमिका निभाई थी।
दीक्षित ने यह भी कहा कि उनके करियर के शुरुआती दिनों में फिल्म के सेट पर बतौर महिला सिर्फ अभिनेत्री और हेयरड्रेसर हुआ करती थीं। उन्होंने कहा कि तब गिनी-चुनी महिला निर्देशक होती थीं और वह उस समय केवल सई परांजपे को ही जानती थीं। उन्होंने कहा, "अब जब मैं (अमेरिका से) वापस आई और सेट पर गई तो हर विभाग में महिलाएं थीं - ए.डी., डी.ओ.पी., लेखक और पहले से कहीं अधिक निर्देशक। महिलाएं हर जगह हैं, जो मुझे लगता है कि बहुत खुशी की बात है और यह एक बड़ा बदलाव है।"