हेमंत पाल
फ़िल्मी गीतों के बोल कुछ इस तरह के होते हैं कि सुनने वाले को जल्दी समझ नहीं आते! क्योंकि, श्रोता संगीत के सुरों में इतना खो जाता है कि उसका गीत के बोलों पर कम ही ध्यान जाता है। ऐसे में कई फिल्मों के गीतों में बड़ी-बड़ी गलतियां हो गई, पर पकड़ में नहीं आयीं! कभी गीतकार ने लिखने में कोई कमी छोड़ दी, तो कभी संगीतकार से कहीं भूल हो गई! लेकिन, ‘मदर इंडिया’ जैसी कालजयी फिल्म के एक गीत में डायरेक्टर ने ऐसी गलती कर दी, जिसे तत्काल ठीक नहीं किया जा सकता था लेकिन, इस सुपर हिट फिल्म में हुई गलती को कोई दर्शक पकड़ नहीं सका। क्योंकि, फिल्मकार का आभामंडल इतना बड़ा था कि दर्शक इस चूक पर बरसों गौर नहीं कर सका। कई बार गीतकार से लिखने में गलती हो जाती है, तो कभी निर्देशक जल्दबाजी में फिल्माने में भूल कर बैठता है।
गीतकार हसरत जयपुरी को ऐसी चूक करने में महारत हासिल थी। कई बार तो वे गालिब सहित विख्यात शायरों की पंक्तियों में हेरफेर करके अपने नाम से गीत रच चुके हैं। लेकिन, हद तब हो जाती थी, जब कई बार उनके एक अंतरे के बोल दूसरे अंतरे से मेल ही नहीं खाते, बल्कि एकदम उलट हो जाते थे। राजेन्द्र कुमार और वैजयंती माला अभिनीत फिल्म ‘जिंदगी’ के गीत ‘पहले मिले थे सपनों में आज सामने पाया’ में वे एक ऐसी भूल कर बैठे जिसे आज की भाषा में ब्लंडर कहा जा सकता है। इस गीत का पहला अंतरा कहता है ‘ओ सांवली हसीना दिल तूने मेरा छीना, मदहोश मंजिलों पर तूने सिखाया जीना।’ जाहिर है इस अंतरे में नायिका को वे सांवली हसीना कह रहा है, हमारे यहां सांवले इंसान को गोरा तो नहीं माना जाता। पर, अगले ही अंतरे में वे सांवली नायिका को गोरी बनाकर कहते हैं ‘गर झूम कर चलो तुम ऐ जान-ए-ज़िंदगानी, पत्थर का भी कलेजा हो जाए पानी-पानी, गोरे बदन पर काला आंचल और रंग ले आया, हाय कुर्बान जाऊं।’ ऐसी ही चूक वे शम्मी कपूर और बबीता की फिल्म ‘तुमसे अच्छा कौन है’ के एक गीत में भी कर विवाद को जन्म दे चुके थे। उनके लिखे बोल ‘गंगा मेरी मां का नाम बाप का नाम हिमालय अब तुम खुद ही फैसला कर लो, मैं किस सूबे वाला!’ जबकि, हिंदू धर्मग्रंथों में गंगा और हिमालय का रिश्ता पिता और पुत्री का है। यही कारण है कि उनके लिखे इस गीत की बहुत आलोचना हुई थी।
कई बार गीतों की रिकॉर्डिंग में गड़बड़ियां हो जाती हैं। लेकिन, इनके पकड़ में आने पर दोबारा गीत रिकॉर्डिंग कर उसे सुधार लिया जाता है। कई बार ऐसा भी होता है कि फिल्म के कलाकार अपने विवेक का उपयोग कर निर्माता को इस उलझन से बचाकर उनका पैसा भी बचा देते हैं। फिल्म ‘बाप रे बाप’ में एक गीत किशोर कुमार और आशा भोंसले ने गाया था। गीत के बोल थे ‘पिया पिया पिया मोरा जिया पुकारे, हम भी चलेंगे पिया संग तुम्हारे।’ इस गीत में किशोर कुमार के बाद अंतरे की दूसरी लाइन में आशा भोंसले को आलाप लेना था। लेकिन, रिकॉर्डिंग के समय जब आशा भोंसले ने पहली पंक्ति के बीच में आलाप लिया, तो उनके पास खड़े किशोर कुमार ने उनके मुंह पर हाथ रख दिया! जब गलती पकड़ में आई तो तय हुआ कि इसे दोबारा रिकार्ड कर लिया जाए। किंतु, किशोर कुमार ने ऐसा करने से मना कर दिया। उनका कहना था कि फिल्म में यह गीत उन पर ही फिल्माया जाएगा, जिसे वे दृश्य में संभाल लेंगे। जब किशोर कुमार और चांद उस्मानी पर यह गीत फिल्माया गया और पहला अंतरा आया, तो किशोर कुमार ने चांद उस्मानी को आलाप लेने को कहा। जब चांद उस्मानी ने आलाप लेना चाहा तो किशोर कुमार ने उनके मुंह पर ठीक वैसे ही हाथ रख दिया, जैसा रिकॉर्डिंग के समय आशा भोंसले के मुंह पर हाथ रखा था। इससे पूरा दृश्य परफेक्ट बन गया और यह गलती फिल्मांकन का हिस्सा मान ली गई।
इसी तरह देव आनंद और माला सिन्हा अभिनीत फिल्म के गीत ‘तस्वीर तेरी दिल में जिस दिन से उतारी है’ में देव आनंद से एक चूक हो गई थी। इसमें एक अंतरे में माला सिन्हा की लाइन पूरी होने से पहले ही वे अपनी अंगुली उनकी तरफ उठाकर अपनी लाइन गाने लगते हैं। लेकिन, इससे पहले वे गा पाते माला सिन्हा ने उनकी अंगुली पकड़कर अपनी लाइन पूरी कर दी। इसके बाद जब दूसरे अंतरे में देव आनंद का हिस्सा आता है, तो देव आनंद उसी तरह अंगुली उठाकर गाते दिखाई देते हैं। लेकिन, कम ही दर्शक इसे पकड़ पाए थे।
हिन्दी सिनेमा जगत के सबसे बड़े निर्माता-निर्देशकों में एक महबूब खान के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता कि वे भी इस तरह की कोई गलती कर सकते हैं। उनसे जो गलती हुई, इस बात का पता उन्हें चल भी गया था, पर उन्होंने उसे सुधारा नहीं! क्योंकि, उन्हें विश्वास था कि जिस गाने में गड़बड़ी हुई, वह इतना जबरदस्त है कि दर्शक उस गलती पर ध्यान नहीं देंगे। हुआ भी ऐसा ही! बाद में संगीतकार नौशाद के बेटे ने एक साक्षात्कार में इस बारे में रहस्योद्घाटन किया। महबूब खान से यह गलती ‘मदर इंडिया’ के सबसे लोकप्रिय गीत ‘दुख भरे दिन बीते रे भैया अब सुख आयो रे’ के फिल्मांकन के दौरान हुई। शकील बदायुनी के इस गीत को नौशाद ने चार गायकों मोहम्मद रफी, मन्ना डे, शमशाद बेगम और आशा भोंसले से गवाया था।
इस गीत का फिल्मांकन करने के बाद जब महबूब ने गाने के रफ प्रिंट नौशाद को दिखाए तो नौशाद ने माथा पकड़ लिया। उन्होंने महबूब से कहा कि यह आपने क्या कर डाला! तब नौशाद ने बताया कि आपने चारों गायकों की आवाजों को केवल दो कलाकारों राजकुमार और नरगिस पर ही फिल्मा दिया! नरगिस पर आशा भोंसले और शमशाद बेगम की आवाज फिल्मा दी और राजकुमार पर मन्ना डे और मोहम्मद रफ़ी की आवाज। यानी दो कलाकारों पर चार गायकों की आवाज फिल्माई गई थी। इस पर महबूब खान ने बेतकल्लुफ होकर कहा था कि नौशाद भाई जो होना था, वो हो गया। इस गीत को फिल्माने में मेरा बहुत पैसा और समय लगा है। अब मेरी हिम्मत नहीं है कि मैं इसे दोबारा शूट करूं। तब नौशाद ने कहा कि महबूब साहब आप इतने बड़े निर्माता-निर्देशक हैं, दुनिया आपके इस गीत को देखने के बाद क्या कहेगी! तब महबूब ने कहा था कि नौशाद साहब आपका गाना इतना पावरफुल है कि दर्शक इस बारे में सोचेगा भी नहीं! वास्तव में ऐसा हुआ भी। ‘मदर इंडिया’ ने हिंदी फिल्मों में इतिहास बनाया।
दरअसल, फिल्म में यह गीत राजेन्द्र कुमार, सुनील दत्त, कुमकुम और नरगिस पर फिल्माया जाना था। गाना आरंभ भी बैलगाड़ी में बैठे राजेंद्र कुमार, नरगिस और सुनील दत्त के साथ होता है। बीच में कैमरा राजेन्द्र कुमार से होता हुआ गाड़ी में लेटे सुनील दत्त से होते हुए बैलगाड़ी के पहिए से होता हुआ फ्लैशबैक में चला जाता है जिसमें राजकुमार और नरगिस गाते दिखाई देते है। ‘देख रे घटा घिर के आई, रस रस भर लाई’ इसमें ‘देख रे घटा घिर के आई’ रफी गाते हैं तो ‘रस रस भर भर लाई’ में मन्ना डे की आवाज है। ‘छेड़ ले गोरी मन की वीणा’ रफी गाते हैं तो ‘रिमझिम रुत छाई’ मन्ना डे की आवाज में है। लेकिन, फिल्म में मोहम्मद रफी और मन्ना डे दोनों की एक के बाद एक आने वाली पंक्तियां राजकुमार पर फिल्मा दी गईं।
इसी तरह ‘प्रेम की गागर लाए रे बादर’ शमशाद बेगम की आवाज में है, तो इसके बाद की पंक्ति ‘बेकल मोरा जिया होय’ आशा भोंसले की आवाज में। इन दोनों गायिकाओं की आवाज को नरगिस पर ही फिल्मा दिया गया। महबूब ने इसे फ्लैशबैक में फिल्माने और वर्तमान में वापस लौटने के साथ राजेन्द्र कुमार और कुमकुम को शामिल कर इतनी तेजी से एडिट कर दिया कि दर्शक समझ ही नहीं पाया कि कौन सी पंक्ति किसने गाई है और किस पर फिल्माई गई। संभवतः यह बड़ी फिल्म की ऐसी बड़ी गलती थी, जो दर्शक सालों साल पकड़ नहीं पाए और दुख भरे दिन बीत जाने की खुशी में ‘अब सुख आयो रे’ के साथ इतने घुलमिल गए कि वे केवल गाने की आवाज भूलकर आंखों से सारा नजारा देखकर ही मुग्ध होते रहे।