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फिल्मी फसानों में बार-बार चांद के दीदार

बेशक आजकल चंद्रयान मिशन की वजह से चांद खूब चर्चा में है लेकिन हिंदी फिल्मों की कहानियों व गीतों में तो चांद हमेशा छाया रहा है। यूं तो केवल चांद को लेकर कहानियों के प्लॉट कम ही रचे गये...
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बेशक आजकल चंद्रयान मिशन की वजह से चांद खूब चर्चा में है लेकिन हिंदी फिल्मों की कहानियों व गीतों में तो चांद हमेशा छाया रहा है। यूं तो केवल चांद को लेकर कहानियों के प्लॉट कम ही रचे गये लेकिन कथानकों में चांद को बतौर प्रेम के प्रतीक खूब प्रयोग किया गया। कभी चांदनी रात में प्रेम परवान चढ़ा, कभी प्रेमी-प्रेयसी के लिए चांद की उपमा दी गयी तो कभी उलाहना भी। वहीं फिल्मों के नाम और गीतों में चांद का इस्तेमाल बहुतायत में हुआ।

 

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हेमंत पाल

अभी तक चांद हमारी पहुंच से दूर था। अब उसे तीसरी बार छूने की कोशिश की गई है। यह कोशिश सफल होती है या नहीं, वह बात अलग है। पर, चांद एक बार फिर चर्चा में है। हमारे पर्व, त्योहार और सामाजिक मान्यताओं में चांद को बरसों से पूजा जा रहा है। वहीं चांद के साथ कई कल्पनाएं जुड़ी हैं, उनमें एक है प्रेम का प्रतीक। प्रेमी अपनी प्रेमिका की सुंदरता की कल्पना चांद से करता है। यही कारण रहा कि हमारी फिल्मों और फ़िल्मी गीतों में भी चांद छाया रहा। फिल्मकारों ने चांद की तमाम कलाओं को समेटकर सेल्युलाइड पर उतारने का प्रयास किया। दूज के चांद से लेकर पूनम के चांद तक को पृष्ठभूमि में रख फ़िल्मों ने हमेशा दर्शकों को गुदगुदाया। जबकि, धरती से हजारों मील दूर चांद ने भी फिल्मकारों को कई दिलचस्प अवसर दिए। उन्होंने कभी फिल्म के शीर्षक से चांद को जोड़ा तो कभी गीत में चांद को हिस्सेदार बनाया। हीरो-हीरोइन के सुर में सुर मिलाकर दर्शकों को भी गुनगुनाने के लिए मजबूर किया। चांदनी रात में बांहों में बांहें डाले प्रेमी युगल को दिखाकर बॉक्स ऑफिस पर कामयाबी पायी।

शीर्षकों और कहानी में चांद

याद किया जाए तो चांद शीर्षक से बनने वाली फिल्मों में चांद, दूज का चांद, चौदहवीं का चांद, चांद मेरे आजा, चोर और चांद, चांद का टुकड़ा, ईद का चांद, चांदनी, ट्रिप टू मून, पूनम, पूनम की रात सहित दर्जनों फिल्में बनी और इनमें ज्यादातर सफल हुई! वहीं चांद को केंद्र में रखकर अभी तक कई फ़िल्में बन चुकी हैं। 'मिशन मंगल' से लेकर 'रॉकेट्री' और 'मून मिशन' जैसी कई फ़िल्में आई जिनमें चांद पर ही कथानक लिखे गए। साल 1963 में आई 'कलाई आरसी' पहली इंडियन स्पेस फिल्म थी, जिसमें स्पेस ट्रैवलिंग और एलियंस को दिखाया गया था। इसके बाद अंतरिक्ष मिशन और स्पेस पर कई फिल्में बनीं। साल 1967 में आई 'चांद पर चढ़ाई' साइंस फिक्शन फिल्म थी जिसमें चांद पर लैंडिंग को कल्पना के जरिये दिखाया गया था। जबकि, इसके दो साल बाद अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री चांद की सतह पर उतरे थे। इस फिल्म में एस्ट्रोनॉट की भूमिका में दारा सिंह थे। विक्रांत मैसी और श्वेता त्रिपाठी की फिल्म 'कार्गो' में 2027 का समय दिखाया गया था, जब इंसान चांद से आगे मंगल और बृहस्पति तक पहुंच जाएगा।

हॉलीवुड मूवीज़ में भी मून

 

सिर्फ हिंदी फिल्मकारों को ही चांद के प्रति आकर्षण नहीं रहा, हॉलीवुड में भी चांद हमेशा जिज्ञासा का विषय रहा है। वहां ऐसी कई फ़िल्में बनाई जो मून मिशन पर केंद्रित थीं। ऐसी ही एक फिल्म थी 'द मार्शियन' (2015) जिसका डायरेक्शन रिडले स्कॉट ने किया था। इसमें मैट डैमन की मुख्य भूमिका थी। यह फिल्म एक मिशन की कहानी थी जिसमें मुख्य किरदार को कई परेशानियां उठानी पड़ती हैं। फिल्म ने कई अवार्ड जीते। चांद की धरती पर कदम रखने वाले पहले व्यक्ति नील आर्म स्ट्रांग की जिंदगी पर बनी फिल्म 'फर्स्ट मैन' 2018 में रिलीज हुई थी। डेमियन शैजेल के डायरेक्शन में बनी इस फिल्म में नील आर्म स्ट्रांग का कथानक है। जब उन्होंने चांद पर कदम रखा तो उनके सामने क्या चुनौतियां आईं और कैसा रहा था, यह मिशन उन सारी बातों पर ध्यान खींचती है। साल 2007 में आई फिल्म 'इन द शैडो ऑफ मून' का डायरेक्शन डेविड सिंगटन और क्रिस्टोफर रिले ने किया था। इस फिल्म में अमेरिका की उन कोशिशों का जिक्र था जब 1960-70 में अमेरिका की सरकार ने चांद पर जाने का अभियान शुरू किया था।

चंद्रमा से जुड़े कुछ फिल्मों के प्लॉट

अपोलो अभियान का तृतीय मानव अभियान 'अपोलो 13' था, जिस पर इसी नाम से फिल्म बनी। अपोलो 13 को 1970 में प्रक्षेपित किया गया था। यह फिल्म 1995 में रिलीज हुई थी। इस अंतरिक्ष यान के प्रक्षेपण के दो दिन बाद ही इसमें विस्फोट हुआ, जिस कारण नियंत्रण यान से ऑक्सीजन का रिसाव शुरू हो गया और बिजली व्यवस्था चरमरा गई थी। अंतरिक्ष यात्रियों ने चंद्रयान को जीवन रक्षक यान के रूप में प्रयोग किया और पृथ्वी पर लौट आने में सफल रहे। साल 1989 में आई फिल्म 'मूनट्रैप' साइंस फिक्शन थी जिसका कनेक्शन चांद से था। फिल्म में दिखाया गया था कि दो स्पेस शटल एस्ट्रोनॉट्स को कुछ रोबोट चांद का लालच देकर ले जाते हैं। क्योंकि, उन्हें मानव अंग चाहिए होते हैं।

चंदा पर नगमों का सिलसिला

सिर्फ फिल्मों के शीर्षकों में ही चांद नहीं उतरा। चांद पर सैकड़ों गीत भी लिखे गए। 'दिल' शब्द के बाद शायद 'चांद' ही गीतकारों का पसंदीदा रहा। जहां भी नायिका के रूप को कल्पनाशीलता में बांधा गया, चांद को जरूर याद किया गया। फिर चाहे वो 'चौदहवीं का चांद हो या आफ़ताब हो जो भी हो तुम खुदा की कसम' जैसा कालजयी गीत ही क्यों न हो। इसमें नायक ने अपनी नायिका को चांद के बहाने न जाने कितनी उपमाएं दी। माहौल चाहे खुशी का हो या गम का, मिलन का हो या जुदाई का, हिंदी फिल्मों में चांद को हमेशा प्रतीक या गवाह बनाने के प्रयास किए गए। धीरे-धीरे चल चांद गगन में (लव मैरिज 1959), खोया-खोया चांद, खुला आसमान (काला बाज़ार 1960), चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो (चौदहवीं का चांद 1960), ये चांद सा रोशन चेहरा, जुल्फों का रंग सुनहरा’ (कश्मीर की कली 1964), चलो दिलदार चलो चांद के पार चलो (पाकीजा 1972), चांद ने कुछ कहा, रात ने कुछ कहा, तू भी सुन बेखबर, प्यार कर (दिल तो पागल है 1997), जाने कितने दिनों के बाद गली में आज चांद निकला (जख्म 1998), चंदा मामा सो गए, सूरज चाचू जागे’ (मुन्ना भाई एमबीबीएस 2003) के अलावा चांद सी महबूबा हो मेरी समेत सैकड़ों सुरीले गीत चांद पर रचे गए। ख़ास बात ये कि चांद की हकीकत जानने के बाद भी इनमें कमी नहीं आई!

'...वो चांद प्यारा प्यारा'

सिनेमा के सितारों की अलग-अलग छवि रही है! लेकिन, चांद ने इन अलग-अलग छवियों वाले छैल-छबीलों को अपने साथ जोड़ने का करिश्मा कर दिखाया। यही कारण है, कि किसी एक फिल्म में राजकपूर और नरगिस की जोड़ी 'उठा धीरे धीरे वो चांद प्यारा प्यारा' गीत का राग छेड़ती है, तो दूसरी फिल्म में रोमांटिक देव आनंद-माला सिन्हा की जोड़ी 'धीरे धीरे चल चांद गगन' गुनगुनाते दिखाई पड़ती है। ट्रैजडी किंग दिलीप कुमार भी चांद को देखकर रूमानी होकर वैजयंती माला से 'तुझे चांद के बहाने देखूं' कहे बिना नहीं रहते। विनोद खन्ना और ऋषि कपूर की फिल्म 'चांदनी' में 'चांदनी मेरी चांदनी' कहते हुए श्रीदेवी के पीछे दौड़ लगाने लगते हैं। यह चांद का ही चमत्कार है कि फिल्मों में अक्सर गानों से दूर रहने वाले राजकुमार कभी 'चलो दिलदार चलो चांद के पार चलो' और 'चांद आहें भरेगा' गाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। चांद की लोकप्रियता भी कमाल की है। गुजरे जमाने के कुछ फिल्मी कलाकारों में अपने नाम के साथ चांद को जोड़ा और नाम रखे चांद उस्मानी, चंद्रशेखर और चंद्रमोहन। आज की हकीकत भले ही यह हो कि चांद की सतह चूमने की चाहत में चंद्रयान उसकी सतह के आसपास पहुंच गया है। लेकिन, हमारे फिल्मकारों ने चांद के बेशुमार चक्कर लगाए। संभावना है कि यह सिलसिला आगे भी यूं ही अनवरत चलता रहेगा। क्योंकि, चांद ऐसे ही चमकता रहेगा और प्रेमी दिलों में उसके बहाने प्रेम भी उमड़ेगा!

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