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लंबी अवधि की फिल्मों का इतिहास भी बहुत लंबा

हेमंत पाल देश में सैकड़ों फिल्में हर साल बनती हैं। हर फिल्म की कोई न कोई ऐसी खासियत होती है, जिस वजह से वह दर्शकों को आकर्षित करती है। कुछ चुनिंदा फिल्मों की खासियत उनकी लंबाई होती है। कुछ बहुत...

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हेमंत पाल

देश में सैकड़ों फिल्में हर साल बनती हैं। हर फिल्म की कोई न कोई ऐसी खासियत होती है, जिस वजह से वह दर्शकों को आकर्षित करती है। कुछ चुनिंदा फिल्मों की खासियत उनकी लंबाई होती है। कुछ बहुत छोटी तो कुछ की लंबाई रिकॉर्ड तोड़ होती है। कई फिल्में इतनी छोटी बनीं कि उन्हें इंटरवल की जरूरत नहीं पड़ी, तो कुछ फिल्मों में दो-दो इंटरवल करने पड़े। ऐसी फ़िल्में भी बनी जिनकी लंबाई की वजह से सिनेमाघरों ने उन्हें रिलीज करने से ही इंकार कर दिया। आखिर 5 घंटे से ज्यादा लंबी फिल्म को कोई सिनेमाघर कैसे दिखाए और दर्शक क्यों देखें! आश्चर्य की बात रही कि फिल्म इतिहास में अपनी लंबाई को लेकर खास रही फिल्में दर्शकों का मनोरंजन करने में सफल भी रहीं। ये लंबी जरूर थी, पर इनमें से ज्यादा ने दर्शकों को उबाया नहीं। आज भी दर्शक इन फिल्मों को इनके दिलचस्प कथानक की वजह से याद करते हैं। रणबीर कपूर की नई फिल्म ‘एनिमल’ को उसकी लम्बाई के कारण याद किया जाता है। क्योंकि, लंबे समय से दर्शकों को छोटी फिल्म देखने की आदत है, ऐसे में ‘एनिमल’ की सफलता के बाद ऐसी फिल्मों का चलन शुरू होगा, यह नहीं कहा जा सकता। फिल्मकार यह हिम्मत तभी कर सकते हैं, जब कहानी में उसे इतना खींचने की गुंजाइश हो।

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दमदार कहानी के साथ उम्दा हो निर्देशन

यदि किसी भी फिल्म की लंबाई दो-ढाई घंटे से ज्यादा हो, तो उसकी कहानी में इतना दम होना चाहिए कि वह दर्शकों को बांध सके। क्योंकि, दर्शकों को इतनी देर तक रोककर रखना आसान नहीं होता। लेकिन, यह तभी संभव हो सकता है जब उसका कथानक और निर्देशन जबरदस्त हो। अगर जरा भी कथानक ढीला पड़ा, तो दर्शक बीच फिल्म में कुर्सी छोड़ने में देर नहीं करेगा। लंबी फिल्म उसे कहा जाता है, जो दो-ढाई घंटे की फिल्म के मुकाबले साढ़े तीन या चार घंटे से ज्यादा लंबी होती है। खास बात यह कही जाएगी कि अधिकांश लंबी फिल्में सफल रही हैं। हिंदी सिनेमा का इतिहास देखा जाए, तो लंबी फ़िल्में बनाने की शुरुआत 1964 में राज कपूर ने की थी। उनकी फिल्म ‘संगम’ लंबी होने की वजह से उसमें दो इंटरवल थे। ‘संगम’ में राज कपूर, राजेंद्र कुमार और वैजयंती माला जैसे कलाकार थे। यह फिल्म एक प्रेम त्रिकोण पर आधारित कथानक वाली थी, जो 3 घंटे 58 मिनट लम्बी थी। हिंदी फिल्म इतिहास की ये पहली इतनी लंबी फिल्म थी। यह उस समय की सुपरहिट फिल्मों में थी। दो इंटरवल होने से सिनेमाघरों में इसके दो शो ही चलते थे। ‘संगम’ की सफलता कुछ ऐसी रही कि यह फिल्म 60 के दशक में ‘मुगल-ए-आज़म’ के बाद सबसे ज्यादा कमाई वाली फिल्मों में गिनी गई। रिचर्ड एटनबरो की महात्मा गांधी के जीवन पर बनी फिल्म ‘गांधी’ भी 3 घंटे 11 मिनट लंबी फिल्म थी।

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जिस लंबी फिल्म ने बर्बाद किया

हर लंबी फिल्म सफल हो, ये जरूरी नहीं। राज कपूर की ही 1970 में आई ‘मेरा नाम जोकर’ ने उन्हें कर्ज में डुबो दिया था। जबकि, फिल्म की स्टार कास्ट ‘संगम’ वाले कलाकार ही थे। यह फिल्म राज कपूर का ड्रीम प्रोजेक्ट था, लेकिन उनके सारे सपनों को ध्वस्त कर दिया। ‘संगम’ से थोड़ी ही ज्यादा लंबी इस 4 घंटे की फिल्म को देश की सबसे लंबी फिल्मों में शामिल किया जाता है। इसमें भी दो इंटरवल होते थे। यह फिल्म एक सर्कस के जोकर ‘राजू’ की कहानी थी, जिसका दर्द कोई नहीं समझ पाता। इसे राज कपूर की बेहतरीन फिल्मों में गिना जाता है। इस फिल्म के घाटे से उबरने के लिए राज कपूर ने बेटे ऋषि कपूर को लेकर ही ‘बॉबी’ बनाई थी। साल 1975 में रमेश सिप्पी ने ‘शोले’ बनाई, इसे भी लंबी फिल्मों में गिना जाता है। कुल 3 घंटे 20 मिनट की इस फिल्म का शुरुआती कारोबार ठंडा था। लेकिन, धीरे-धीरे दर्शक जुटने लगे और फिल्म ने 35 करोड़ कमाने का रिकॉर्ड बनाया। ‘शोले’ से 6 मिनट लम्बी बनी राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म ‘हम आपके हैं कौन’ ने 135 करोड़ रुपए की कमाई की।

युद्ध आधारित फ़िल्में भी लंबी

लंबी फिल्मों का दौर यहीं ख़त्म नहीं हुआ। साल 2001 में आई आशुतोष गोवारिकर निर्देशित आमिर खान की फिल्म ‘लगान’ भी 3 घंटे 44 मिनट लंबी थी, जो सुपर हिट साबित हुई। इसके अनोखे पात्रों को आज भी दर्शक याद करते हैं। अपनी अलग सी कहानी के कारण इसे ऑस्कर में भी एंट्री मिली। यह फिल्म ब्रिटिश राज के दौरान एक गांव की कहानी बताती है, जो अंग्रेजों के साथ क्रिकेट का खेल खेलते हैं, ताकि उन्हें करों का भुगतान न करना पड़े। युद्ध के कथानक पर जेपी दत्ता के निर्देशन में बनी ‘एलओसी कारगिल’ 2003 में रिलीज हुई। यह फिल्म हिंदी फिल्म इतिहास की तीसरी सबसे लंबी फिल्मों में एक थी। इसकी लंबाई 4 घंटे 10 मिनट थी। इसका कथानक 1999 के भारत-पाकिस्तान युद्ध पर केंद्रित था, जो कारगिल में लड़ा गया था। आदित्य चोपड़ा के निर्देशन में आई ‘मोहब्बतें’ भी 3 घंटे 36 मिनट लंबी थी। शाहरुख खान, अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या राय और जुगल हंसराज की यह फिल्म अपने समय में सुपर हिट हुई थी।

इतनी लंबी फिल्म जो इकट्ठी रिलीज नहीं हुई

आशुतोष गोवारिकर की 2008 में आयी फिल्म ‘जोधा अकबर’ भी लंबी फिल्मों की फेहरिस्त में शामिल है। ऋतिक रोशन और ऐश्वर्या राय की यह फिल्म 3 घंटे 33 मिनट लंबी थी। लेकिन, अभी तक की सबसे लंबी फिल्मों में अनुराग कश्यप की ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ को गिना जाता है। 5 घंटे 21 मिनट लंबी इस फिल्म को बना तो लिया गया, पर इसकी लंबाई के कारण कोई सिनेमाघर इसे रिलीज करने को राजी नहीं हुआ। इसके बाद फिल्म को दो हिस्सों में बांटकर रिलीज किया गया। फिल्म के दोनों हिस्सों ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाया था। फिल्म ‘सलाम-ए-इश्क’ (2007) भी 3 घंटे 36 मिनट लम्बी थी। बड़े सितारों के बावजूद ये फिल्म पसंद चली नहीं। इनके अलावा, तमस, हम साथ-साथ हैं और ‘कभी अलविदा न कहना’ भी लंबी फिल्मों में शामिल हैं।

लंबी फिल्मों का वक्त अभी गया नहीं

बरसों बाद 2016 में आई सुशांत सिंह राजपूत की फिल्म ‘एम एस धोनी’ भी 3 घंटे 5 मिनट लंबी थी। इससे पहले 2008 में ‘गजनी’ ने 3 घंटे का दायरा तोड़ा। 2000 से अभी तक 23 साल में 20 फिल्में भी ऐसी नहीं हैं, जिनकी लंबाई 3 घंटे से ज्यादा हो। जब किसी फिल्म की ज्यादा लंबाई का जिक्र होता है, तो स्वाभाविक रूप से जिज्ञासा होती है कि फिल्म में ऐसा क्या खास है, जो इसकी कहानी कहने में इतना वक्त लिया गया। ऐसी कई फ़िल्में पौराणिक कहानियों पर भी बनी। जोधा अकबर, लगान, स्वदेस और नायक या ऐसी लंबी फिल्मों को इसी दर्जे में रखा जा सकता है। लंबी फिल्मों का दौर अभी ख़त्म नहीं हुआ। रणबीर कपूर की ‘एनिमल’ के बाद शाहरुख खान की फिल्म ‘डंकी’ भी लंबी फिल्मों में गिनी जाने वाली फिल्म है। आज दो-सवा दो घंटे से ज्यादा लंबी फिल्म को लंबा ही माना जाएगा।

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