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फिल्मी दुनिया में नहीं थमा कास्टिंग काउच का खेल

असीम चक्रवर्ती मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में ओपन डिमांड फॉर सेक्स की चर्चा खूब गर्म है। वैसे साउथ का फिल्म जगत हो या फिर देश की दूसरी फिल्म इंडस्ट्री,यहां व्याप्त महिला अस्मिता के शोषण की बातें अक्सर लाइम लाइट में आती...
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असीम चक्रवर्ती

मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में ओपन डिमांड फॉर सेक्स की चर्चा खूब गर्म है। वैसे साउथ का फिल्म जगत हो या फिर देश की दूसरी फिल्म इंडस्ट्री,यहां व्याप्त महिला अस्मिता के शोषण की बातें अक्सर लाइम लाइट में आती रहती हैं। चूंकि बॉलीवुड हमारे फिल्मोद्योग का अहम हिस्सा है,इसलिए यहां की इंडस्ट्री में इस तरह की बातों को ज्यादा ही फोकस मिलता है। इस पर विस्तृत चर्चा करने से पहले मलयालम फिल्म इंडस्ट्री के ताजा घटनाक्रम पर एक नजर डाल लें-

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जस्टिस हेमा का फैसला

हुआ यूं कि मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में महिला उत्पीड़न की शिकायतों पर ध्यान देते हुए वहां की सरकार ने इसकी जांच के लिए हाईकोर्ट के जज के.हेमा के नेतृत्व में 2017 में एक तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया था। दो साल पहले ही इस कमेटी ने रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। इसमें कई चौंकाने वाले तथ्य थे जिसके चलते सरकार ने इस रिपोर्ट को रोके रखा। मगर बीते 19 अगस्त को यह रिपोर्ट जारी हुई, तो एक धमाका हो गया जिसकी गूंज से बॉलीवुड भी फिर से विचलित हो उठा। अब सभी कास्टिंग काउच के इस दाग को दबाने-छिपाने की कोशिश कर रहे हैं।

इस हमाम में सभी एक समान

यदि हम बॉलीवुड के संदर्भ में देखें,तो इस हमाम में सभी एक जैसे हैं। बड़े निर्माता-फाइनेंसर से लेकर उनके सारे विशेष सहयोगी इस कास्टिंग काउच के बहाने पूरा आनंद उठाते हैं। खुद यह लेखक ऐसे कई निर्माताओं को जानता है,जिनके गुर्गे किसी न्यूकमर हीरोइन को निर्माता की अगली फिल्म दिलाने के बहाने उसका यौन शोषण करते हैं। फिल्मी भाषा में इसे कंप्रोमाइज भी कहा जाता है। वैसे कई निर्माता ऐसे भी होते हैं,जिन्हें सुरा का शौक तो होता है,पर अपनी फिल्म की हीरोइन में उनकी ऐसी कोई दिलचस्पी नहीं होती। पर इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है। कोई नवोदित हीरोइन यदि निर्माता या फाइनेंसर की गिद्ध दृष्टि से बचती है,तो कुछ दूसरी इसकी शिकार बन ही जाती हैं। सारी नवोदित तारिकाएं कास्टिंग काउच की चपेट में हों, ऐसा भी नहीं होता है। पर जिनकी ओर से इंकार होता है,उन्हें बहुत आसानी से ब्रेक नहीं मिलता है। इनमें से कई तो एकदम हाशिए में चली जाती हैं।

एजेंट की लिस्ट

इनमें से कुछ हीरोइन ऐसी हैं,जो इसकी चपेट में आने के बाद अचानक कंप्रोमाइज टेबल पर आ जाती हैं। इंडस्ट्री में कई लोग इसका पूरा फायदा उठाते हैं। वहां ऐसे कई एजेंट हैं ,जो इन नवोदित और स्थापित हीरोइनों को काम दिलाने का काम करते हैं। इन्हें निर्माता और नवोदित, दोनों से कमीशन मिलता है। एजेंट किसी हीरोइन को दुबई या खाड़ी के देशों में भी काम दिलाने में सफल हो जाते हैं। एजेंट की कमाई को बॉलीवुड की भाषा में दलाली भी कहा जाता है।

भौतिक सुख की अंधी दौड़

थोड़ी-सी सफलता मिलते ही हमारे नए कलाकारों में भौतिक सुख की एक अंधी दौड़ शुरू हो जाती है। अच्छा फ्लैट, महंगी कार,अच्छा रहन-सहन- तब इन्हें हासिल करने के लिए वह एकदम जुट जाता है। क्योंकि अब उसे ऑटो या टैक्सी में बैठकर स्ट्रगल करना अच्छा नहीं लगता है। आप इस परिप्रेक्ष्य में किसी ऐसे नये कलाकार की बात करें,जो कोई भी कंप्रोमाइज करने के लिए तैयार है। वह तो इन्हें हासिल करने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहता है। ऐसी हीरोइन पर फिल्मवालों की नजर ज्यादा होती है। कास्टिंग काउच की सारी कहानियां यहीं से जन्म लेती हैं। बड़े इंडोर्समेंट या दूसरे काम के जरिये हीरोइन के पास अच्छे भौतिक साधन जमा होने लगते हैं। वरना आपने कितनी ऐसी नयी हीरोइनों का नाम सुना होगा ,जिसे किसी फिल्म में काम करने के लिए करोड़ों की राशि मिलती हो। अमूमन किसी हीरोइन को बीस-पच्चीस लाख में निपटा दिया जाता है। यह पैसा किस स्रोत से आता है,इसे ज्यादा विस्तार से बताने की जरूरत नहीं है।

कंप्रोमाइज जरूरी है

आम तौर पर किसी फिल्म को पाने के लिए हीरो की तुलना में हीरोइन को बहुत ज्यादा कंप्रोमाइज करना पड़ता है। यह समझौता अक्सर देह के रास्ते से ही जाता है। इस संदर्भ में बॉलीवुड के छोटे से प्रोड्यूसर ने बातों की रौ में इस लेखक को बहुत कटु सच कहा था- फिल्म चाहिए,समझौता कर लीजिए...। कुछ नवोदित तारिकाएं इसी समझौतावादी रास्ते पर चलती हैं,और काफी सफल भी हो जाती हैं। कुछ तो बेहिचक इसी रास्ते पर चलने लगती हैं। तब विदेश या दुबई में इनका घर आसानी से बन जाता है।

छोटा परदा भी अछूता नहीं

बड़ा हो या छोटा, बॉलीवुड के किसी भी एक्टिंग माध्यम में इसका खेल बेहद गुप्त ढंग से चलता रहता है। एक अघोषित समझौते के तहत सभी गुप-चुप अपना काम करते रहते हैं।

नाम आया और दब गया

असल में कास्टिंग काउच के मामले में किसी नाम को बताने से कई कानूनी और दूसरे पचड़े खड़े हो जाते हैं। वरना सुभाष घई, विधु विनोद चोपड़ा, नाना पाटेकर, साजिद खान, अनु मलिक सहित कई छोटे-बड़े फिल्मी नाम इस प्रसंग में उछले हैं। पर ये नाम कभी खुलकर सामने नहीं आए। मी टु मुहिम को भी आप इस संदर्भ में जोड़कर देखिए। तब इन नामों को दबने में ज्यादा टाइम भी नहीं लगा।

नाम बताने से सभी बचते हैं

कास्टिंग काउच की चपेट में आने वाले युवक-युवतियां अपना नाम लाइम लाइट में लाने से हमेशा बचते हैं। खास तौर से ज्यादातर हीरोइन अपना नाम मीडिया में उछलने देना नहीं चाहती हैं। पर कुछ छोटी हीरोइन थोड़ा-सा इस मामले में बेबाक हो जाती हैं। वैसे नवोदित तारिकाओं ने इस लेखक के सामने यह कबूल किया कि कुछ प्रोड्यूसर ने कहानी सुनाने के बहाने होटल के कमरे में उसे बुलाकर उसके साथ गलत हरकतें की। पायल रोहतगी,महिमा चौधरी व तनुश्री दत्ता ने तो खुलकर माना कि कई फिल्मवालों ने फिल्म दिलाने के नाम पर उन्हें बहुत गलत ऑफर दिया। इन दिनों ग्लैमर वर्ल्ड से दूर जा चुकी मॉडल और अभिनेत्री पायल रोहतगी बताती हैं,‘मुझे तो किसी फिल्म में बड़े रोल दिलाने का झांसा देने के नाम पर ऐसे कई कुत्सित ऑफर मिले,पर मैंने इन्हें विनम्रता या सख्ती के साथ खारिज कर दिया। पर आप देख ही रहे हैं,इसके बाद बॉलीवुड वालों ने मुझे किस तरह धीरे-धीरे साइड लाइन किया।’

न किसी का डर न चिंता

मूल बात यह है कि ऐसी निम्न हरकत करते समय हमारे ज्यादातर फिल्मवालों को कोई डर नहीं लगता। वे न सिर्फ धड़ल्ले से नशीले पदार्थों का मजा लेते हैं,बल्कि ऐसे ही कई और खेल भी वह आराम से खेलते हैं। कास्टिंग काउच का खेल बॉलीवुड में गाहे-बगाहे चलता ही रहता है।

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