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उत्तराखंड के गुमनाम योद्धाओं की कहानी है फिल्म 'डीएफओ डायरी फायर वॉरियर्स'

चंडीगढ़ : गुमनाम योद्धाओं की सच्ची घटनाओं से प्रेरित एपिसोडिक फिल्म 'डीएफओ डायरी फायर वॉरियर्स' नेशनल वाइल्ड लाइफ वीक के अवसर पर देशभर के सिनेमाघरों में एक साथ रिलीज हो रही है। यह एक रोमांचक एडवेंचर- ड्रामा फिल्म है, जो...

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चंडीगढ़ : गुमनाम योद्धाओं की सच्ची घटनाओं से प्रेरित एपिसोडिक फिल्म 'डीएफओ डायरी फायर वॉरियर्स' नेशनल वाइल्ड लाइफ वीक के अवसर पर देशभर के सिनेमाघरों में एक साथ रिलीज हो रही है। यह एक रोमांचक एडवेंचर- ड्रामा फिल्म है, जो उन गुमनाम योद्धाओं के बारे में बताती है, जो जरूरत पड़ने पर प्रकृति और पर्यावरण के लिए अपनी जान तक कुर्बान कर देते हैं। सच्ची घटनाओं से प्रेरित इस डायरी के पन्नों को गीत-संगीत के साथ फिल्मी अंदाज में प्रस्तुत किया गया है।

डीएफओ की डायरी के पन्नों से दर्शक उन वास्तविक और नाटकीय घटनाओं की यात्रा पर निकलते हैं, जहां जंगल की पृष्ठभूमि भी है और रणभूमि भी। कहीं निर्दयी शिकारी मासूम ट्रेकर्स की जिंदगी पर खतरा बनकर आते हैं, तो कहीं जंगल की भीषण आग से लड़ने के लिए गांव वाले, अधिकारी और बच्चे एकजुट होकर धरती को बचाने की कसम खाते हैं। गौरतलब है कि फिल्म का कॉन्सेप्ट और स्टोरी टीआर बीजुलाल आईएफएस अधिकारी का है। ये फिल्म आईएफएस अधिकारी बीजुलाल के 20 साल की नौकरी के दौरान के अनुभवों और घटनाओं प्रेरित है। इससे पूर्व उनकी एक फिल्म मिशन टाइगर देश विदेश के सिनेमाघरों में दिखाई गई। मिशन टाइगर बाघ बचाने की एक्शन एडवेंशन फिल्म थी।

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डीएफओ डायरी फायर वॉरियर्स में टीआर बीजू लाल आईएफएस अधिकारी स्वयं वन अधिकारी विजय की भूमिका में हैं। फिल्म में नरेशन आवाज भी उन्होंने ही दी है। फिल्म डीएफओ डायरी फायर वॉरियर्स के लेखक-निर्देशक महेश भट्ट ने बताया कि इसमें अलग-अलग तीन चैप्टर्स हैं, जिन्हें एक वन अधिकारी डीएफओ विजय की डायरी से लिया गया है। फिल्म मुख्य रूप से बिन्सर अग्निकांड में शहीद वनरक्षकों और नागरिकों के संघर्ष को सामने लाती है। अल्मोड़ा जिले में स्थित बिन्सर वाइल्ड सेंचुरी में वर्ष 2024 की गर्मियों में लगी आग को बुझाते हुए कुछ वनकर्मी और स्थानीय लोग शहीद हो गए थे। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे महीनों की मेहनत के बाद भी कुछ गलती और कुछ लापरवाही से सारा जंगल स्वाहा हो जाता है। बताया गया कि फिल्म को उत्तराखंड के खूबसूरत कुमाऊं हिमालय की गोद में फिल्माया गया है। मनोज सती और संतोष पाल के कैमरे से इसमें नैनीताल, भवाली, पंगोट, रामगढ़, मुक्तेश्वर आदि लोकेशन के खूबसूरत दृश्य देखने को मिलते हैं। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी उत्तराखंड की झीलों, ओक-पाइन से भरे घने जंगलों, धुंध से ढकी घाटियों और पारंपरिक गांवों की सुंदरता को बड़े परदे पर जीवंत करती है। फिल्म को संगीत से सजाया है अमित वी कपूर, विनय कोचर और मन चौहान ने। इसके प्रमुख गीत 'राही ओ राही' को पद्मश्री कैलाश खेर ने अपने सुरों से संवारा है। फिल्म का दूसरा गीत है 'भागीरथों पुनः उठो' इसे गया है टीआर बीजू लाल ने। कैमरा में कैद किया है मनोज सती और संतोष पाल ने। स्क्रीनप्ले और डायलॉग ऋतुराज और महेश भट्ट का है। क्रिएटिव डायरेक्टर और एडिटर आयुष्मान भट्ट हैं।

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