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छोटे शहर का बड़ा सपना : कबीर नंदा की ‘घिच-पिच’ से बॉलीवुड में दस्तक

फिरोजपुर की शांत गलियों से निकलकर मायानगरी की तेज़ रफ्तार दुनिया तक पहुंचना कोई आम यात्रा नहीं होती और 18 साल के कबीर नंदा के लिए यह रास्ता सिर्फ़ मंज़िल की ओर नहीं, बल्कि खुद की पहचान गढ़ने की एक...
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फिरोजपुर की शांत गलियों से निकलकर मायानगरी की तेज़ रफ्तार दुनिया तक पहुंचना कोई आम यात्रा नहीं होती और 18 साल के कबीर नंदा के लिए यह रास्ता सिर्फ़ मंज़िल की ओर नहीं, बल्कि खुद की पहचान गढ़ने की एक सच्ची कोशिश रही है।

8 अगस्त को रिलीज़ हो रही हिंदी फिल्म 'घिच-पिच’ में कबीर नंदा मुख्य भूमिका में हैं। यह सिर्फ एक डेब्यू नहीं, बल्कि एक भावनात्मक सफर की पहली झलक है।

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पर्दे पर गुरप्रीत, असल में कबीर

फिल्म में कबीर का किरदार है — गुरप्रीत सिंह। एक सिख किशोर जो 2000 के दशक के चंडीगढ़ में अपने पिता, दोस्तों और खुद से रिश्तों की उलझी हुई परतों से गुज़र रहा है। ‘घिच-पिच’ सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि उन चुप्पियों की आवाज़ है जो अक्सर पीढ़ियों के बीच दबी रह जाती हैं। यह फिल्म रिश्तों के उन पहलुओं को छूती है, जो आम बोलचाल में नहीं, पर आंखों में ज़रूर झलकते हैं।

फिरोज़पुर से चंडीगढ़ तक : मंच की तैयारी

कबीर का जन्म और परवरिश फिरोज़पुर में हुई। जब 12 साल की उम्र में उन्होंने चंडीगढ़ आने का फैसला किया, तब उनके पास न कोई फिल्मी कनेक्शन था, न कोई एजेंट — सिर्फ़ एक विश्वास था कि कला के रास्ते पर चलना है।

टैगोर थिएटर बना उनका दूसरा घर। वहीं के मंच पर उन्होंने किरदारों को जिया, संवादों में सांस डाली, और खुद को गढ़ा। इस सफर में उन्हें मिला साथ — मशहूर रंगकर्मी जुबिन ए. मेहता का। उनके निर्देशन में कबीर ने अभिनय की आत्मा को महसूस किया।

बिना फिल्मी परिवार, लेकिन पूरी फिल्मी लगन

कबीर का कोई फिल्मी बैकग्राउंड नहीं है। लेकिन उन्होंने खुद को साबित करने के लिए स्टूडियो के दरवाज़े नहीं खटखटाए — बल्कि थिएटर के दरवाज़ों से सीधे दर्शकों के दिलों तक पहुँचने का अभ्यास किया।

आज जब वह ‘घिच-पिच’ में पर्दे पर दिखाई देंगे, तो दर्शक एक “नया चेहरा” नहीं, एक “सजीव किरदार” देखेंगे — जो सिर्फ एक्टिंग नहीं कर रहा, बल्कि सच्चाई को जी रहा है। ‘घिच-पिच’ के बाद कबीर को नेटफ्लिक्स की लोकप्रिय सीरीज़ ‘कोहरा’ के सीज़न 2 में देखा जाएगा।

कबीर नंदा : वह नाम, जो आने वाले दिनों में गूंजेगा

कबीर का अभिनय संयमित है, उनके हावभाव सहज हैं और उनकी उपस्थिति में वह ताजगी है जो सिनेमा को नई ऊर्जा देती है। शायद यही कारण है कि ‘घिच-पिच’ उनके लिए सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि भविष्य की लंबी यात्रा की पहली ईंट है।

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