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समय पर वैक्सीन से बच्चों को सुरक्षा चक्र

टीकाकरण

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रोगों-संक्रमणों से इम्यूनिटी प्रदान कर हमारा बचाव करने को समय पर टीकाकरण बेहद जरूरी है। यह प्रक्रिया बच्चे के जन्म से लेकर किशोरवय तक चलती है जो सही ग्रोथ व स्वस्थ रखने में सहायक है। कौनसी वैक्सीन कब लगायी जाये इसको लेकर दिल्ली स्थित सर गंगा राम अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. पंकज गर्ग से रजनी अरोड़ा की बातचीत।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के हिसाब से स्वस्थ जीवन जीने के लिए टीकाकरण प्रक्रिया जरूरी है। यह प्रक्रिया जन्म लेने के साथ ही नवजात को दी जानी शुरू हो जाती है और ताउम्र चलती है। यह बचपन से बुढ़ापे तक करीब 25 तरह की बीमारियों और संक्रमणों से बचाती है। शरीर में एंटीबॉडीज बनाती है जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करते हैं और बीमारी के वायरस या बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करते हैं। समय-समय पर खासकर बचपन में लगाए जाने वाले टीके व्यक्ति के शारीरिक-मानसिक विकास में भी सहायक होते हैं। किसी कारणवश जब बच्चे जीवन रक्षक टीकों की खुराक से वंचित रह जाते हैं, तो उनमें विकलांगता का जोखिम बढ़ सकता है।

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टीकाकरण प्रक्रिया से हर साल लाखों लोगों की जान बचती है। साल 1796 में सबसे पहले एडवर्ड जेनर ने चेचक का टीका इजाद किया था। उसने चेचक पीड़ित व्यक्ति के सीरम को लेकर एक बच्चे के शरीर में इंजेक्ट किया था जिससे बच्चे में चेचक की प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो गई थी। तब से टीकों पर लगातार बहुत काम हुआ है। कोरोना जैसे जानलेवा वायरस से बचाव के लिए वैक्सीन का निर्माण बड़ी उपलब्धि है। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के मुताबिक, बचपन का टीकाकरण हर साल दुनिया भर में अनुमानित 4 मिलियन लोगों की जान बचाता है। डिप्थीरिया, टेटनस, पर्टुसिस, इन्फ्लूएंजा और खसरा जैसी बीमारियों से होने वाली 3.5-5 मिलियन मौतों को रोकता है।

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बच्चों को दी जाने वाली वैक्सीन

बच्चों के टीकाकरण के लिए भारत में दो तरह के शेड्यूल अपनाए जाते हैं- इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स और गवर्नमेंट ऑफ इंडिया का शेड्यूल। बच्चों के टीकाकरण के लिए यह स्लोगन उपयुक्त ठहरता है-‘7 बार आना है,8 वैक्सीन पाना है और 9 बीमारियों से बचाना है।’

जन्म के समय -

नवजात शिशु को टीबी के लिए बीसीजी, ओरल पोलियो वैक्सीन ड्रॉप्स पिलाई जाती है या ओपीवी (जीरो डोज़), हेपेटाइटिस बी (फर्स्ट डोज़) वैक्सीन लगती हैं।

प्राइमरी सीरीज़ में -

शिशु के जन्म के 6 सप्ताह (डेढ़ माह), 10 सप्ताह (ढाई माह) और 14 सप्ताह (साढ़े तीन माह) का होने पर वैक्सीन लगाई जाती हैं जो 8 बीमारियों को कवर करती हैं। पेंटावेलेंट वैक्सीन जो डिप्थीरिया, काली खांसी, टिटनेस, व्हूपिंग कफ़, हेपेटाइटिस बी, हीमोफीलस इंफ्लूएंजा टाइप बी (न्यूमोनिया के लिए) बीमारियों से बचाव के लिए दी जाती है। इसके अलावा डायरिया के लिए रोटावायरस, निमोनिया के लिए न्यूमोकोकल और पोलियो के लिए वैक्सीन लगाई जाती है। पोलियो वैक्सीन उपलब्ध न होने पर जन्म के 6-10 और 14 सप्ताह में बच्चे को ओपीवी-1 , 2 ,3 की ओरल पोलियो ड्रॉप्स दी जाती हैं। इसी तरह रोटावायरस ड्रॉप्स की 3 डोज भी पिलाई जाती हैं- पहली डोज़ 6-12 सप्ताह, दूसरी 4-10 सप्ताह और तीसरी 32 सप्ताह या 8 महीने के बीच दी जाती है।

छठे महीने में

प्राइवेट सेक्टर में शिशु को टाइफायड कॉजुगेट वैक्सीन, ओरल पोलियो वैक्सीन और इंफ्लूएंजा (सीज़नल फ्लू)।

9 महीने में

एमएमआर या खसरे (मीज़ल्स, मम्स और रुबैला) की कम्बीनेशन वैक्सीन लगती है। ओरल पोलियो ड्रॉप्स की दूसरी डोज पिलाई जाती है। गवर्नमेंट सेक्टर में खसरे की वैक्सीन के साथ बच्चे को विटामिन ए की 9 डोज़ दी जाती हैं। एंडेमिक राज्यों में 9 महीने पूरे होने पर बच्चों को जैपनीज इन्सेफलाइटिस यानी दिमागी बुखार की दो डोज दी जाती हैं।

12वें महीने पर

बच्चे को हेपेटाइटिस ए वैक्सीन दी जाती है। यह 2 तरह की होती है। लाइव वैक्सीन जिसकी सिंगल डोज़ दी जाती है, दूसरी इनएक्टिव वैक्सीन जिसकी 6 महीने के अंतराल पर 2 डोज़ (12वें और 18वें माह में) दी जाती हैं।

15वें माह पर

इस उम्र के बच्चों को एमएमआर सेकंड डोज, वैरीसेला 1 (चिकनपॉक्स के लिए) दी जाती है।

बूस्टर वैक्सीन शेड्यूल

इसके साथ वैक्सीनेशन का बूस्टर शेड्यूल भी शुरू हो जाता है। सबसे पहले 15वें महीने पर बच्चे को नीमोकोकल वैक्सीन का बूस्टर डोज़ दिया जाता है। फिर 16-18वें महीने में डीपीटी बूस्टर, इंजेक्टिड पोलियो वैक्सीन वैक्सीन लगाई जाती है। इनएक्टिव हेपेटाइटिस ए वैक्सीन का बूस्टर डोज़ 18वें महीने में लगाई जाती है।

4-6 साल में जरूरी खुराक

इस उम्र में बच्चे को डीटीपी वैक्सीन की बूस्टर डोज़, एमएमआर वैक्सीन की तीसरी डोज़ और वेरीसेला वैक्सीन की दूसरी डोज दी जाती है।

9-14वें साल में वैक्सीन

इस उम्र में बच्चों को टी-डेप बूस्टर वैक्सीन दी जाती है। ह्यूमन पैपीलोमा वायरस से बचाव के लिए लड़कियों को 9 साल की उम्र के बाद सर्वाइकल प्रिवेंशन के लिए 0 और 6 महीने पर दो सरवरेक्स इंजेक्शन (एचपीवी) लगते हैं। या फिर 14 साल की उम्र के बाद इस इंजेक्शन के 3 डोज लगाए जाते हैं- 0, और 6 महीने पर। लड़कियों को 7-14 साल की उम्र तक रूबेला वैक्सीन या एमएमआर वैक्सीन लगाई जाती है। फिर 10वें और 15वें साल में उन्हें टिटनेस का बूस्टर इंजेक्शन दिया जाता है।

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