लॉस एंजिलिस, 20 दिसंबर (एजेंसी) सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय फिल्म की श्रेणी में ऑस्कर पुरस्कार के लिए कनाडा की ओर से नामित फिल्म ‘फनी ब्वॉय’ को पुरस्कार समिति ने खारिज कर दिया है। यह फिल्म मशहूर फिल्म निर्माता दीपा मेहता ने बनायी है। पुरस्कार आयोजक एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्टस ऐंड साइंस (एएमपीएस) ने 93वें एकेडमी पुरस्कार (ऑस्कर) के लिए नामित इस फिल्म में बहुत अधिक अंग्रेजी संवाद होने की वजह से इसे अस्वीकार कर दिया। यह फिल्म श्रीलंका में 1970-1980 दशक के एक किशोर अर्जी की यौन इच्छा की कहानी है जो अपनी कक्षा में पढ़ने वाले छात्र के प्रति आकर्षित होता है जबकि परिवार इसे अस्वीकार कर देता है। यह फिल्म 1994 में इसी नाम से प्रकाशित श्याम सेलवदुरई के उपन्यास पर अधारित है। फिल्म तमिल और सिंहली भाषा में है लेकिन इसमें अंग्रेजी संवाद भी हैं। एकेडमी ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय फिल्म की श्रेणी में नामित फिल्म में 50 से अधिक संवाद अंग्रेजी में नहीं होने चाहिए। टेलीफिल्म कनाडा के एक प्रतिनिधि जो ऑस्कर में भेजी जाने वाली फिल्म का चयन करने वाली समिति के अध्यक्ष करते हैं, ने कहा कि वे अब इस फिल्म को बेहतरीन फिल्म सहित सामान्य श्रेणी में भेजेंगे। दीपा मेहता ने कहा, ‘हम एकेडमी के इस फैसले से चकित हैं कि यह फिल्म अंतर्राष्ट्रीय फिल्म की श्रेणी में प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकती लेकिन इसके साथ ही प्रसन्न भी हैं कि टेलीफिल्म ने इसे सामान्य श्रेणी में भेजने के फैसले का समर्थन किया है।’
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।