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वैक्सीन ही बचाएगी हर्पीज के जंजाल से

सेहत

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शिखर चंद जैन

आपने इन दिनों टीवी पर वैक्सीन के एक विज्ञापन में देखा होगा जिसमें शिंगल्स की बीमारी का वैक्सीनेशन करने की सलाह दी जाती है। यह बीमारी वाकई काफी दर्दनाक है। दरअसल, किसी को बचपन या युवावस्था में चिकनपॉक्स हो जाने पर इलाज के बाद बीमारी से तो मुक्ति मिल जाती है मगर इसका मुख्य कारक वेरीसेला जोस्टर वायरस शरीर में ही रह जाता है। उस वक्त तो यह शिथिल पड़कर निष्क्रिय हो जाता है पर बाद में कई बार यह दोबारा एक्टिव हो जाता है और दर्दनाक बीमारी शिंगल्स या हर्पीज जोस्टर का सबब बन सकता है।

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कमजोर इम्यूनिटी से बढ़े जोखिम

वैज्ञानिकों को अभी तक इसके दोबारा सक्रिय होने की वजह का ठीक-ठाक पता नहीं चला है लेकिन इस संबंध में विभिन्न स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अलग-अलग अनुभव और मान्यताएं हैं। कुछ लोगों का मानना है कि उम्र बढ़ने के साथ जब किसी का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है तो रोग प्रतिरोधक प्रणाली इस वायरस को दोबारा एक्टिवेट होने से नहीं रोक पाती। इसलिए आम तौर पर 50 प्लस के उम्रदराज लोगों में इसका जोखिम ज्यादा होता है। बुजुर्गों में इसकी जटिलता ज्यादा हो सकती है और वे पोस्ट हर्पेटिक न्यूराल्जिया से भी पीड़ित हो सकते हैं। कैंसर से पीड़ितों का इम्यून सिस्टम कमजोर होने के कारण उनमें शिंगल्स का जोखिम ज्यादा है।

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कैसे आता है शिंगल्स

शिंगल्स के वायरस व्यक्ति के शरीर में तब से आ जाते हैं जब वह चिकनपॉक्स से पीड़ित हो जाता है। लेकिन यह उस व्यक्ति में भी हो सकता है जिसे कभी चिकनपॉक्स नहीं हुआ। यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे में तभी जाता है जब कोई इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के फफोले से सीधे संपर्क में आ जाता है। कुछ चिकित्सकों के मुताबिक स्ट्रेस की वजह से सिंगल्स का जोखिम बढ़ जाता है वैसे उम्र इसमें ज्यादा महत्वपूर्ण फैक्टर होता है।

लक्षण

शिंगल्स में मरीज के शरीर के किसी हिस्से में छोटे-छोटे फफोले और लालिमायुक्त स्किन हो जाती है। इसके रैशेज बड़े दर्दनाक होते हैं। आमतौर पर ये शरीर या चेहरे के किसी एक हिस्से में नजर आते हैं। पीड़ित व्यक्ति को दर्द ,खुजली ,सुन्नपन, झुनझुनी जैसी तकलीफ हो सकती है। साथ ही बुखार, शरीर या पेट में दर्द ,मुंह में छाले या जख्म आदि भी हो सकते हैं । शिंगल्स की बीमारी में तरह तरह की जटिलताएं उत्पन्न हो जाती हैं –

हरपीज जोस्टर ऑफ्थलमाइकस

यह ऐसा शिंगल्स इंफेक्शन है जो आंखों और उनके आसपास के क्षेत्र को प्रभावित करता है। इसमें ललाट पर भी रैशेज और दर्दनाक इन्फ्लेमेशन हो सकता है। यह स्थिति 50 फीसदी लोगों में देखी जा सकती है। इसमें नाक और आंख पर रैशेज, लालिमा, फफोले नजर आते हैं। 30 फ़ीसदी पीड़ितों में डबल विजन की समस्या भी देखी गई है।

पोस्ट हर्पीटिक न्यूराल्जिया

यह एक ऐसी सिचुएशन है जो शिंगल्स से पीड़ित 25 फीसदी लोगों को प्रभावित कर सकती है। इसका प्रमुख लक्षण है नर्व में तीखा दर्द। यह दर्द शिंगल्स ठीक होने के बाद भी महीनों तक परेशान कर सकता है।

इंसेफेलाइटिस एवं हर्पीज जोस्टर ओटिकस

शिंगल्स की बीमारी से जटिल न्यूरोलॉजिकल समस्याएं भी हो सकती हैं। यद्यपि ऐसा होने की आशंका एक फ़ीसदी होती है लेकिन कुछ लोगों में इन्सेफेलाइटिस जैसी दिक्कत हो सकती है। इसमें ब्रेन में सूजन आ जाती है। रेयर केसेज में हर्पीज जोस्टर ओटिकस भी हो जाती है। इसमें मरीज की श्रवण शक्ति प्रभावित होती है। इसके लक्षणों में वर्टिगो ,फेशियल पेन, फेशियल पैरालिसिस आदि शामिल है।

रोकथाम और इलाज

यदि शिंग्ल्स का इलाज तुरंत शुरू हो जाए तो यह 10-15 दिनों में ठीक हो सकता है पर फफोलों और स्कार्स को जाने में 2-4 हफ्ते लग सकते हैं। वहीं जिन्हें चिकन पॉक्स या शिंगल्स की बीमारी हो उनसे दूर रहें। हाइजीन का ध्यान रखना बेहतर है। हां, इससे बचाव के लिए वैक्सीनेशन प्रभावी उपाय हो सकता है। इसका वैक्सीन बॉडी के इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है जिससे शिंगल्स के वायरस से लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है। इसका इलाज चिकित्सक रोग की तीव्रता और लक्षण के आधार पर करते हैं। इसके मरीज को साफ सुथरा रहना चाहिए और ढीले कपड़े पहनने चाहिए। कूल कंप्रेस का इस्तेमाल करना चाहिए।

वैक्सीन संबंधित सावधानी

जिन लोगों को कभी बहुत एलर्जी हुई हो वे इसका वैक्सीन लेने से बचें। वैक्सीन के किसी कंपाउंड से एलर्जी की समस्या हो तो सावधान रहें। ध्यान रहे कि प्रेग्नेंट महिलाओं को चिकित्सक से राय लेने के बाद ही वैक्सीन लेना चाहिए। बुखार या किसी अन्य गंभीर बीमारी से पीड़ित हों तो वैक्सीन लेने से पहले चिकित्सक से सलाह लें।

डॉक्टर विकास अग्रवाल एमडी मेडिसिन (सीनियर फिजिशियन) से बातचीत पर आधारित

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