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पांच दशक के अभिनय की देर से हुई पहचान

मिथुन चक्रवर्ती को दादा साहेब फाल्के

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हेमंत पाल

मिथुन चक्रवर्ती को इस साल का दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड’ दिए जाने की घोषणा से किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। बल्कि, याद आया कि अभी तक इस कलाकार को भुलाया क्यों गया! वे कभी राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन और शाहरुख़ खान की तरह दर्शकों के चहेते नहीं रहे! पर, जब भी वे परदे पर आए सिनेमा हॉल में सीटियां जरूर बजी। 80 के दशक में उनका डिस्को डांस स्टाइल इतना लोकप्रिय हुआ कि वे मंच के डांसर कलाकारों में लोकप्रिय हो गए। उनकी एक्शन फिल्मों का भी अलग ही क्रेज रहा। वे सामाजिक फिल्मों के भी चहेते कलाकार रहे। हां, मिथुन कभी किसी ट्रेंड में नहीं बंधे। उन्हें जब भी और जैसा भी किरदार मिला, पूरी क्षमता से निभाया। अपने 50 साल के कैरियर में मिथुन ने कई भाषा की फिल्मों में काम किया, पर उन्हें कभी स्टारडम नहीं मिला।

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मिथुन ने हिंदी के अलावा बांग्ला, तमिल, तेलुगु, कन्नड़,ओडिया और भोजपुरी की साढ़े 3 सौ से ज्यादा फिल्मों में काम किया। लेकिन, उन्हें पहचान मिली हिंदी सिनेमा के परदे से। अब उसी बहुमुखी प्रतिभा वाले कलाकार को सिनेमा के सबसे बड़े सम्मान के लिए चुना गया। जब मिथुन को यह सम्मान दिए जाने की घोषणा हुई तो पहली प्रतिक्रिया में उन्होंने कहा ‘सच कहूं तो, मेरे पास कोई भाषा ही नहीं है। न मैं हंस सकता हूं, न मैं खुशी से रो सकता हूं। इतनी बड़ी चीज है। जहां से मैं आया हूं, उस लड़के को इतना बड़ा सम्मान मिला है, मैं सोच भी नहीं सकता। मैं ये अपने परिवार और दुनियाभर के फैंस को डेडिकेट करता हूं।’ एक आम आदमी का चेहरा लिए मिथुन ने अपने अभिनय कैरियर में वो जगह पाई, जिसका मिलना आसान नहीं था। धीरे-धीरे वे इतने लोकप्रिय हो गए, कि फिल्मों की रिलीज का भी रिकॉर्ड बना लिया। मिथुन चक्रवर्ती की साल 1989 में 19 फिल्में रिलीज हुई, जिनमें वे लीड एक्टर थे। उनका यह कारनामा ‘लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ में दर्ज किया गया।

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खास विचारधारा की तरफ मुड़े

मिथुन चक्रवर्ती का जन्म 16 जून 1950 को कोलकाता में हुआ और उनका असल नाम गौरांग चक्रवर्ती है। उन्होंने केमिस्ट्री में स्नातक किया फिर नक्सली विचारधारा होने की वजह से इस आंदोलन में शामिल होकर घर छोड़ दिया। लेकिन, वे पारिवारिक स्थितियों के चलते ज्यादा दिन इस आंदोलन से जुड़े नहीं रह सके। आंदोलन छोड़कर घर लौटना आसान नहीं था।

आंदोलन छोड़ कर घर वापसी

इसी समय उनकी रूचि एक्टिंग में जागी। परिवार भी चाहता था कि वे घर से बाहर रहें। उन्होंने पुणे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट में एडमिशन लिया। जब कोर्स पूरा हुआ तो वे काम की तलाश में बंबई (अब मुंबई) आ गए। कड़ी मेहनत के बावजूद उन्हें अदाकारी का मौका तो नहीं मिला, अलबत्ता हेलन के असिस्टेंट जरूर बन गए। इसका फ़ायदा ये मिला कि स्टूडियो में आना-जाना आसान हो गया, उन्हें छोटे-मोटे रोल भी मिलने लगे। अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘दो अनजाने’ में भी छोटा सा रोल मिला। कई बार उन्हें बॉडी डबल बनाकर भी काम मिला। मिथुन ने फिल्मों में एक्टिंग से पहले गरीबी का लंबा दौर देखा। एक्टिंग की शुरुआत के बाद भी उनकी कई रातें फुटपाथ पर बीती। कई बार भूखे पेट सोना पड़ा था। लेकिन, समय बदला और उन्हें ‘सुरक्षा’ फिल्म मिली जिसे कामयाबी मिली। इस एक्शन फिल्म के बाद उन्हें कई फ़िल्में मिली। हमसे बढ़कर कौन, शानदार, त्रिनेत्र, अग्निपथ, हमसे है जमाना, स्वामी विवेकानंद, वो जो हसीना, ऐलान, डिस्को डांसर से लेकर ‘द कश्मीर फाइल’ तक उन्होंने कई फिल्मों में काम किया। एक से बढ़कर एक सुपरहिट फिल्में दी।

‘मृगया’ में घिनुआ का ख़ास किरदार

शुरुआती दौर में दो अनजाने, फूल खिले हैं गुलशन गुलशन जैसी फिल्मों भी उनकी लिस्ट में हैं जिसमें छोटे-छोटे रोल किए। पहली बार मिथुन को बड़ी भूमिका ‘मृगया’ (1976) में मिली। उन पर मृणाल सेन की नजर पड़ी और उन्हें लगा कि इस कलाकार को मौका दिया जा सकता है। इसलिए कि फिल्म का कथानक एक आदिवासी युवक घिनुआ पर केंद्रित था। चेहरे-मोहरे से मिथुन उस रोल में बिल्कुल फिट दिखाई दिए। बताते हैं कि मृणाल सेन ने उन्हें जब देखा वे लड़कियों से रोमांटिक अंदाज में बात कर रहे थे। उन्होंने मिथुन को अपनी फिल्म ‘मृगया’ ऑफर कर दी। मिथुन ने इस आर्ट फिल्म से अपना कैरियर शुरू किया। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर तो सफल नहीं रही, पर मिथुन की एक्टिंग ने उन्हें बेस्ट एक्टर का नेशनल अवॉर्ड जरूर दिला दिया। लेकिन, वह उनके संघर्ष का समय था। अवॉर्ड लेने दिल्ली जाने के लिए भी पैसे नहीं थे। तब रेखा उन्हें अपना स्पॉटबॉय बनाकर ले गई थीं। इस फिल्म से पहचान तो मिली पर उनका संघर्ष ख़त्म नहीं हुआ।

रोमांटिक रोल के लिए शर्तें

हिंदी फिल्मों में मिथुन को जल्दी स्वीकार्यता नहीं मिली। क्योंकि, वे उस दौर के रोमांटिक रोल में फिट नहीं बैठते थे। उनकी कई फ़िल्में जरूर आई, पर व्यावसायिक सफलता नहीं मिली। 1979 में आई फिल्म ‘सुरक्षा’ ने मिथुन को पहचान दी। फिल्म की सफलता के बाद उन्हें कई फ़िल्में ऑफर हुई, पर कोई भी बड़ी अभिनेत्री उनकी नायिका नहीं बनी, इसकी वजह थी उनका आम चेहरा-मोहरा। फिर 1982 में आई ‘डिस्को डांसर’ ने उन्हें डांसिंग स्टार बना दिया और दर्शकों में उनकी अलग पहचान बनी। उनके डांस का अंदाज एक स्टाइल बन गया। सफलता का पैमाना यह था कि ‘डिस्को डांसर’ 100 करोड़ कमाने वाली पहली हिंदी फिल्म बन गई, जिसने मिथुन के कैरियर को नई दिशा दी। हालांकि, फिल्म ने ज्यादा कमाई सोवियत यूनियन से की थी। वे अभी तक साढ़े 3 सौ से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुके हैं और उन्हें 3 बार नेशनल अवॉर्ड भी मिला। उन्हें जनवरी 2024 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया। मिथुन के अभिनय का दौर अभी पूरा नहीं हुआ। उनकी रिलीज होने वाली आखिरी फिल्म ‘कश्मीर फाइल्स’ (2022) है। वे बंगाली फिल्म ‘प्रजापति’ और ‘काबुलीवाला’ में भी दिखाई दिए।

मिथुन की राजनीतिक पारी

मिथुन चक्रवर्ती ने 2014 में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) पार्टी से अपना राजनीतिक सफर शुरू किया। वे राज्यसभा सदस्य बनाए गए। लेकिन, 2016 में उन्होंने सांसद पद से इस्तीफा दे दिया। फिर टीएमसी से नाता तोड़ते हुए मिथुन 2021 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। भाजपा ने मिथुन को विधानसभा चुनाव में पार्टी का स्टार प्रचारक बनाया। पर, जैसी उम्मीद थी वे पार्टी को वैसी जीत नहीं दिला सके। विधानसभा चुनाव के बाद पश्चिम बंगाल में जिला परिषद और पंचायत के चुनाव में भी टीएमसी का पलड़ा भारी रहा। इसके बाद मिथुन की राजनीतिक सक्रियता में कमी आ गई।

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