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मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया..

संदर्भ जयंती वर्ष : 26 सितंबर
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सदाबहार व जिंदादिल अभिनेता देवानंद ताउम्र फिल्म निर्माण और अभिनय में सक्रिय रहे। उनके रोमांटिक अभिनय और संवाद अदायगी के खास अंदाज को दर्शक याद करते हैं । लंबे सिनेमाई सफर में निर्मित फिल्मों, अभिनय और सिनेमा से जुड़े विभिन्न पहलुओं को लेकर मुंबई में अभिनेता देवानंद से 22 मई, 2007 को हुई लेखक दीप भट्ट की बातचीत।

सदाबहार अभिनेता देव आनन्द का अभिनय सफर एक ऐसे मुसाफिर के सफर की तरह था जो अपनी मस्ती में चलता चला जाता है और जिसे मंजिलों की परवाह नहीं। मंजिलें आती रहीं पर देव आनन्द न तो किसी मंजिल पर रुके और न ही कहीं विश्राम लिया। वे आखिरी सांस तक फिल्में बनाते रहे। उनसे उनके बांद्रा पाली हिल स्थित आनन्द रिकार्डिंग स्टूडियो में उनसे उनकी मृत्यु से कुछ अरसा पहले हुई बातचीत :

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आपने 61 साल का सिनेमाई सफर जिन्दादिली से तय किया व अभिनय यात्रा अब भी जारी है। इतने लंबे अभिनय सफर को कैसे देखते हैं?

मैंने तो कभी इसके बारे में सोचा ही नहीं। जैसे एक रफ्तार में इंसान चलता चला जा रहा है, चलता चला जा रहा हूं। जो प्रेजेंट है, उसके बारे में सोचता हूं। मैं क्रिएटिव आदमी हूं। फिल्म में काम करता हूं, कहानियां लिखता हूं। स्क्रीन प्ले लिखता हूं। अपनी फिल्में खुद बनाता हूं, प्लान करता हूं।

अब तो आपकी आत्मकथा-‘रोमांसिंग विद लाइफ’ भी आ गई है?

इतना लंबा सिनेमाई सफर हो गया तो लोगों ने कहा कि हम आपके बारे में किताब लिखना चाहते हैं तो मैंने कहा-हमारे बारे में किताब तो कोई भी नहीं लिख सकता। बहुत से लेख आए हैं, देख लो। लेकिन इंसान के बारे में कोई नहीं जानता। ऑटोबायोग्राफी भी लिखी जाती है तो कोई अपने बारे में बोलता नहीं है तो मैंने खुद लिखा है।

फिल्म इंडस्ट्री के पुराने बड़े मेकर्स या तो थक गए हैं या फिर माहौल से निराश हैं। पर आप न थके , न निराश। इस जिन्दादिली सक्रियता का राज़?

थकावट मुझमें नहीं है। फिर अगली फिल्म एनाउंस कर रहा हूं। कास्ट के बारे में सोच रहा हूं। पता नहीं, अंदर एक बेचैनी है, वो बेचैनी कुछ और करने की भी है। जब तक कुछ करने की चाह है, जिन्दा रहूंगा। दरअसल काम है मेरी सक्रियता का राज़, काम नहीं होगा तो देव आनंद मर जाएगा।

गाइड को तो कोई भूल नहीं सकता, गाइड के नायक राजू और नायिका रोजी को भी। खुद आपको कितना रोमांचित करती है यह फिल्म?

आई थिंक एक अजीब चैलेंज था हमारे लिए कि पहले अंग्रेजी गाइड बनाई जो किताब के ऊपर थी आरके नारायण की। लेकिन जो हिन्दी गाइड थी, वह किताब नहीं थी। उसे हमने चेंज किया। पूरा एंगल बदला, उसे जस्टीफाई किया अपनी संस्कृति के हिसाब से। तो किस स्प्रिचुअल हाइट पर चली गई फिल्म!

आप रोमांटिक अभिनेता हैं। रोमांस को खुद कैसे परिभाषित करते हैं ?

जिन्दगी ही रोमांस है। अभी आप मुझसे मिलने यहां आ गए हो, यहां पर यह भी रोमांस है। नेचर भी रोमांस है। फूल मजेदार है, यह भी रोमांस है। एक खूबसूरत लड़की भी रोमांटिक है।

पहले फिल्मों में कंटेंट की जो रिचनेस थी वह अब कम हो गई है?

कंटेंट वही है। आप हर फिल्म को देख लो। लव वही है, डाइवोर्स वही है, प्यार वही है, दोस्त वही हैं, बच्चे वही हैं, लस्ट वही है। हर चीज वही है। दूरियां बढ़ गई हैं। ग्लैमर ज्यादा आ गया है। तकनीक ऊपर चली गई है।

अब ऐसी फिल्में क्यों नहीं बनती जिनके दृश्य गाइड की तरह याद में रह जाएं?

गाइड के हर सीन को गोल्डी यानी विजय आनंद ने बहुत अच्छा पिक्चराइज किया था। जब गाइड अंग्रेजी वाली बनी थी, तब वह झिझक रहा था। मैंने उससे कहा था कि इसे आप ही बना सकते हो और आप ही बनाओगे। दरअसल उसको एक चाबुक देने वाला इनसान चाहिए था। चाबुक हम देते थे। बड़ा भाई था मैं उसका।

कभी सोचा था कि सिनेमा के इस शिखर पर पहुंचेंगे?

चलते गए, दिमाग से काम करते गए, इंप्रूव करते गए। मंजिल को देखते चले गए। दरअसल अगर आप अपनी अगली मंजिल को देख रहे हो तो फिर सोचने का वक्त होता नहीं।

देव साहब, आप मां के ज्यादा करीब रहे हैं या पिता के?

मैं मां के बहुत करीब रहा हूं। जब वो गई, उठाकर उनको ले गए तो मैं ही उनके पास था। किताब में-माई इमोशंस में भी लिखा है।

आपकी फिल्में देखो तो लगता है पहाड़ जैसे आपको बुला रहे हैं?

आई लव दी माउंटेन। मुझे लगता है कि मेरी आत्मा कहीं माउंटेन के अंदर ही है। जब मुझे कहीं पहाड़ नजर आते हैं, माउंटेन नजर आते हैं तो लगता है मैं यहीं का हूं। शूटिंग के लिए नेपाल में गया, सिक्किम में शूटिंग की। यूरोप गया। नैनीताल भी कोई लेकर गया था, शायद कलाबाज फिल्म की शूटिंग के लिए। मुझे पहाड़ों का शौक है।

आपने मधुबाला, नूतन, मुमताज व वहीदा जैसी खूबसूरत नायिकाओं के साथ काम किया। अपनी नायिकाओं के बारे में कुछ

कहेंगेा?

सारी लड़कियों ने अच्छा काम किया। सभी खूबसूरत थीं। ये कहना कठिन है कि कौन बेस्ट थी।

नवकेतन के गीत-संगीत में साहिर, नीरज और एसडी बर्मन के योगदान को कैसे देखते हैं?

पहले साहिर साहब थे, उनका नवकेतन की फिल्म ‘हम दोनों’ के लिए लिखा गीत-मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया, हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया तो मेरी इमेज के साथ जुड़ गया। फिर प्रेम पुजारी के गाने नीरज साहब ने लिखे।

देव साहब आपने ‘हम दोनों’ रंगीन की, इस बारे में क्या कहना चाहेंगे?

मैं सोचता हूं, मैं कल रहूं न रहूं लेकिन ये दो फिल्में रहेंगी। हम दोनों और गाइड। ये इतनी खूबसूरत फिल्में हैं कि आने वाली सदी में भी इन दोनों फिल्मों की चर्चा होगी।

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