Health Advice : बच्चों के लिए कितनी ठीक फलों की मिठास? जानिए एक्सपर्ट की राय
Health Advice : माता-पिता को अक्सर बताया जाता है कि ज्यादा मात्रा में फल “सेहत के लिए अच्छे नहीं होते”, क्योंकि उनमें शर्करा की मात्रा अधिक होती है। ऐसे में माता-पिता के मन में यह चिंता पैदा होना लाजिमी है कि उन्हें अपने बच्चे को कितनी मात्रा में फल खाने की अनुमति देना चाहिए। “शुगर-फ्री” आंदोलन ने फलों के सेवन को लेकर लोगों की चिंताओं को कई गुना बढ़ा दिया है।
यह अभियान मीठे को सेहत के लिए हानिकारक बताता है, क्योंकि इसके सेवन से व्यक्ति के मोटापे और टाइप-2 मधुमेह का शिकार होने का खतरा बढ़ जाता है। “शुगर-फ्री” अभियान के तहत उन खाद्य पदार्थों की सूची साझा की जाती है, जिन्हें खाने से बचना चाहिए। इसमें अक्सर बच्चों की पसंदीदा चीजें जैसे केले और आम शामिल होते हैं। लेकिन खाद्य उद्योग की ओर से किए गए अनेक दावों की तरह ही यह दावा भी साक्ष्यों पर आधारित नहीं है।
प्राकृतिक मिठास बनाम अलग से मिलाई गई शक्कर
खाद्य वस्तुओं में प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली शर्करा उतनी हानिकारक नहीं होती, लेकिन बच्चे अक्सर ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं, जिनमें अलग से शक्कर मिलाई गई होती है और यह नुकसानदायक साबित हो सकता है। अच्छी खबर यह है कि फलों में प्राकृतिक रूप से मिठास होती है, जो स्वास्थ्यवर्धक होती है और बच्चों को ऊर्जा प्रदान करती है। फल अच्छे स्वास्थ्य के लिए जरूरी विटामिन और खनिजों से भरपूर होते हैं। इनमें विटामिन ए, सी, ई, मैग्नीशियम, जिंक और फॉलिक एसिड आदि शामिल हैं। सभी फल उपयुक्त हैं-जैसे केले, बेरी, संतरा, सेब और आम। ये तो बस कुछ ही नाम हैं।
फलों के छिलकों में पाया जाना वाला अघुलनशील फाइबर बच्चों को सक्रिय रहने में मदद करता है, जबकि उनके गूदे में मौजूद घुलनशील फाइबर कोलेस्ट्रॉल का स्तर नियंत्रित रखने में कारगर है। यह ‘बैड कोलेस्ट्रॉल' को अवशोषित कर स्ट्रोक और हृदय रोग के जोखिम को कम करता है। वहीं, खाने में ऊपर से मिलाई जाने वाली चीनी बच्चों के आहार में कैलोरी की मात्रा तो बढ़ाती है, लेकिन कोई पोषण नहीं देती। उसे ‘खराब' शर्करा कहा जाता है, जिसके सेवन से बचना चाहिए। यह प्रसंस्कृत और अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में पाई जाती है, जिनकी बच्चों को तलब होती है, जैसे लॉलीपॉप, चॉकलेट, केक और शीतल पेय।
मीठा, मोटापा और मधुमेह का खतरा
इस बात के समर्थन में कोई सबूत नहीं है कि चीनी सीधे तौर पर मधुमेह का कारण बनती है। टाइप-1 मधुमेह एक स्व-प्रतिरक्षी बीमारी है, जिसे रोका या ठीक नहीं किया जा सकता और इसका मीठे के सेवन से कोई संबंध नहीं है। वहीं, टाइप-2 मधुमेह आमतौर पर तब होती है, जब हमारा वजन ज्यादा हो जाता है, जो शरीर को प्रभावी ढंग से काम करने से रोकता है। यह मीठा खाने से नहीं होती है। हालांकि, अतिरिक्त शर्करा कई प्रसंस्कृत और अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (उदाहरण के लिए, मीठे और नमकीन पैकेज्ड स्नैक्स) में पाई जाती है। इन खाद्य पदार्थों को खाने से बच्चों को अतिरिक्त कैलोरी मिलती है और उनका वजन बढ़ने लगता है, जिससे बड़े होने पर उनके टाइप-2 मधुमेह का शिकार होने की आशंका में वृद्धि होती है।
शोध से यह भी पता चलता है कि फल टाइप-2 मधुमेह के जोखिम को कम कर सकते हैं। एक शोध में पाया गया कि जो बच्चे रोजाना डेढ़ कटोरी फल खाते हैं, उनके टाइप-2 मधुमेह की चपेट में आने का जोखिम 36 प्रतिशत कम होता है। वहीं, अतिरिक्त शर्करा युक्त आहार से पोषण संबंधी कमियां विकसित हो सकती हैं। इसकी वजह ज्यादातर प्रसंस्कृत और अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों की मात्रा बेहद कम या न के बराबर होना है। यही नहीं, प्रसंस्कृत और अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का सेवन करने वाले बच्चों के फल-सब्जी खाने की संभावना भी काफी कम होती है।