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सिनेमा में हाशिये पर जाता उम्दा संगीत

असीम चक्रवर्ती एक अरसे से फिल्म संगीत के रसिक दर्शक किसी ऐसी फिल्म की प्रतीक्षा कर रहे हैं,जिसे म्यूजिकल कहा जा सके। ऐसे में आज की किसी फिल्म के सारे गानों के बारे में चर्चा करना बेमानी है। जाहिर है...

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फोटो : लेखक
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असीम चक्रवर्ती

एक अरसे से फिल्म संगीत के रसिक दर्शक किसी ऐसी फिल्म की प्रतीक्षा कर रहे हैं,जिसे म्यूजिकल कहा जा सके। ऐसे में आज की किसी फिल्म के सारे गानों के बारे में चर्चा करना बेमानी है। जाहिर है ढोल पीटनेवाले संगीतकारों ने भले ही पुराने दौर के गुणी संगीतकारों के स्थान पर फिल्म संगीत की जिम्मेदारी उठा ली हो, लेकिन वह दायित्व निभाने में वे विफल रहे हैं। इनमें से किसी भी नवोदित संगीतकार की ऐसी छवि नहीं बन पाई, जो पुराने दिग्गजों से बड़ी लकीर खींच सके।

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जुबान पर पुरानी सुर रचना

आपको यकीन नहीं होगा,आज भी 60,70,80 और 90 के दशक के संगीत कलाकारों की टीवी के म्यूजिकल शो में बहुत डिमांड रहती है। चूंकि इस दौर के दिग्गज अब वयोवृद्ध हो चुके हैं। इसलिए ज्यादातर 90 के प्यारेलाल, आनंदजी, अनु मलिक,उदित नारायाण, कुमार शानू, अभिजीत, कविता कृष्णमूर्ति जैसे कई संगीत दिग्गजों को ऐसे रियलिटी शो में देखा जा सकता है। एक सफल म्यूजिकल शो के प्रवक्ता बताते हैं,‘जब भी संगीत के सुनहरे दौर के किसी संगीत दिग्गज को अपने कार्यक्रम में बुलाते हैं,शो की टीआरपी खुद बढ़ जाती है। असल में तब इन संगीत दिग्गजों के बहाने हम उस सुनहरे दौर को याद कर पाते हैं, इससे दर्शक झूम उठता है।’

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प्यारेलाल की शान

काफी उम्रदराज होने बावजूद आज भी महान संगीतकार प्यारेलाल यदा-कदा किसी टीवी शो में चीफ गेस्ट के तौर पर आते हैं,तो उनकी अलग शान होती है, सुरीलेपन की गंगा बहती है। वैसे सिर्फ प्यारेलाल ही नहीं, उनके बाद के नंबर के कई दिग्गज एआर रहमान, जतिन-ललित, अनु मलिक, आनंद मिलिंद,कुमार शानू,रूप कुमार राठौड़,अलका याज्ञिक,उदित नारायण,कविता कृष्णमूर्ति आदि के आने से शो का रंग बदल जाता है। आजकल 90 के कुछ दिग्गज गायक कलाकारों की बात करें,तो उदित, कुमार शानू, अभिजीत,साधना सरगम व कविता कृष्णमूर्ति आदि के गाने किसी रियलिटी शो में बजते हैं,तो वह स्वत: ही दर्शकों की पसंद बन जाते हैं। बावजूद इसके नए दौर के गायक उनको अनदेखा कर देते हैं।

शास्त्रीय गाने के मुरीद गायक कलाकार

साफ है कि हिंदी फिल्मी गायन में टैलेंट का कद निरंतर छोटा हुआ है। वरना कविता कृष्णमूर्ति,रूप कुमार राठौड़,सुरेश वाडकर,अनुराधा पौडवाल,साधना सरगम जैसे शास्त्रीय संगीत के जानकार गायकों को यूं पिछली सीट पर न बैठा दिया जाता। कविता कृष्णमूर्ति बताती हैं ,‘मैं चूंकि क्लासिकल म्यूजिक को लेकर ज्यादा बिजी रहती हूं ,इसलिए हिंदी के क्लासिकल बेस्ड गाने में ही मेरी रुचि है। इन दिनों हिंदी फिल्मों में जो हो-हुल्लड़ वाले गाने आ रहे हैं ,उन्हें गाने की मेरी जरा भी इच्छा नहीं। बड़ा ताज्जुब होता है ,हर हिट फिल्म के साथ एक नया गायक आ रहा है। मगर एक-डेढ़ साल बाद ही उसका कुछ पता नहीं चलता है। मगर हमारी स्थिति इस तरह से कभी डगमग नहीं हुई।’

तीनों खान की संगीत समझ

कई सालों से तीनों खान अभिनेताओं की फिल्मों के गाने टाइम पास तो बने हैं,पर यादगार नहीं। इसकी एक बड़ी वजह यह कि कुछ गुणी गायकों से उन्होंने नाता तोड़ लिया है। जैसे कि कभी शाहरुख के लिए अच्छे गाने गानेवाले गायक कुमार शानू,उदित, अभिजीत, सोनू ,शान आदि पहले ही उनसे बहुत दूर जा चुके हैं। सलमान खान के साथ भी ऐसा हुआ है। आज किसी भी गायक की आवाज सलमान के साथ फिट कर दी जाती है। वरना सलमान के साथ सबसे ज्यादा एसपी बालासुब्रमण्यम की उम्दा आवाज मेल खाती है। दो सफल फिल्मों ‘मैंने प्यार किया’ और ‘हम आपके हैं कौन’ में सलमान पर फिल्माये गये बालासुब्रमण्यम के गाने आज तक संगीत रसिकों को याद हैं। कुछ यही हाल आमिर खान का भी रहा है।

म्यूजिक लॉबी ने कबाड़ा किया

कई संगीत मर्मज्ञ मानते हैं कि आज के फिल्म संगीत को नुकसान पहुंचाने में म्यूजिक लॉबी का बड़ा हाथ रहा है। इनके चलते ही नए दौर के गायकों और संगीतकारों का जमावड़ा हो चुका है। इनमें से ज्यादातर की कोई मास अपील नहीं। पर जी हुजूरी इनकी विशेषता होती है। जिस वजह से महज ढोल पीटनेवाले संगीतकार अचानक श्रोताओं पर थोपे जाते हैं। सस्ते संगीतकारों के चलते ही कई उम्दा गायक फिल्मी गायन के एकदम हाशिए में खड़े कर दिये गये हैं। अब एक फिल्म में चार-चार संगीतकार आते हैं। नौसीखिए संगीतकारों के चलते ही अच्छे गीतकार तक न के बराबर आ रहे हैं। ऐसे में शंकर जयकिशन, पंचम, सी.रामचंद्र, सचिनदेव बर्मन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, कल्याणजी-आनंदजी, जयदेव, रवि, नौशाद जैसे उस स्वर्णिम दौर को याद कीजिए और मधुर संगीत का आनंद लीजिए।

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