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Child Screen Time : स्क्रीन दुश्मन नहीं... बच्चों के लिए सोच-समझकर चुनें कटेंट

स्क्रीन टाइम छोटे बच्चों को फायदा या नुकसान पहुंचा सकता है - सबकुछ कंटेंट पर निर्भर करता है
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होयो दे मंजानारेस (स्पेन), 3 जुलाई (द कन्वरसेशन)

Child Screen Time : आज लोग अपना ज्यादातर वक्त स्मार्टफोन, कम्प्यूटर, टैबलेट, टेलीविजन या अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे डिजीटल स्क्रीन पर बिताते हैं और इस पर दुनियाभर में विशेषज्ञों तथा माता-पिता के बीच बहस छिड़ी हुई है कि क्या छोटे बच्चों को इन डिजीटल उपकरणों का इस्तेमाल करने देना चाहिए। तो फिर ‘स्क्रीन टाइम' का बच्चे के तंत्रिका-मनोवैज्ञानिक विकास पर वास्तविक प्रभाव क्या है? कई बाल चिकित्सा संघ बचपन में खासतौर से पांच साल की आयु तक के बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम को सीमित रखने की सलाह देते हैं लेकिन अनुसंधान से पता चलता है कि यह तस्वीर पूरी तरह से सच नहीं है। बच्चे स्क्रीन टाइम में क्या देखते हैं, वह इसके प्रभाव के लिए महत्वपूर्ण है।

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शारीरिक प्रभाव :

कई अध्ययनों में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि स्क्रीन के लंबे समय तक उपयोग से बच्चों में आंखों की थकान, आंखों में सूखापन और निकट दृष्टि दोष हो सकता है। इसके अलावा, बच्चों को जिस प्राकृतिक उत्तेजना की ज़रूरत होती है, तकनीक उसकी जगह नहीं ले सकती और न ही लेनी चाहिए। ‘फ्री प्ले', शारीरिक व्यायाम, आमने-सामने बातचीत और प्रकृति के साथ संपर्क सभी बच्चे के विकास के लिए जरूरी हैं, लेकिन इनके स्थान पर स्क्रीन टाइम से मोटापे, दृष्टि दोष और सीखने की कठिनाइयों का जोखिम बढ़ सकता है।

तंत्रिका-मनोवैज्ञानिक प्रभाव :

शारीरिक प्रभाव के अलावा स्क्रीन टाइम के कारण ध्यान, भाषा सीखने और भावनात्मक विनियमन जैसे कार्यों पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में चिंता है। तीन वर्ष से कम आयु के बच्चों पर किए गए 102 अध्ययनों की समीक्षा से पता चलता है कि स्क्रीन टाइम के घंटे ही एकमात्र कारक नहीं है, परिस्थितियाँ और संदर्भ भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। यदि कोई बच्चा खेल रहा है और उस दौरान टेलीविजन चालू छोड़ रखा है तो इससे बच्चे के खेल, ध्यान और बातचीत में बाधा आती है, भले ही बच्चा सीधे तौर पर टेलीविजन न देख रहा हो। यदि शैक्षिक उद्देश्यों के लिए और देखरेख में उपयोग किया जाए तो टैबलेट, मोबाइल फोन और टेलीविजन मूल्यवान शिक्षण उपकरण हो सकते हैं, लेकिन यदि इनका लापरवाही से उपयोग किया जाए तो ये सामाजिक संपर्क को सीमित कर सकते हैं।

असली समस्या : अनुचित सामग्री

प्रमुख खतरा स्क्रीन ही नहीं है, बल्कि उस पर मौजूद सामग्री है। बच्चों के अनुकूल न होने वाली सामग्री को देखने से ध्यान और कार्यों में कठिनाई होती है। यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म को देखने से सबसे छोटे बच्चों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। दो से तीन साल की उम्र के बच्चे, जो इस प्लेटफॉर्म के ज़्यादा संपर्क में रहते हैं, उनमें भाषाई विकास का स्तर कम होता है। इससे सामाजिक संपर्क में कठिनाई आ सकती है।

अन्य अध्ययनों से पता चलता है कि अत्यधिक टेलीविजन देखने से सात साल की उम्र में अधिक बैचेनी होने के साथ ही गणित और शब्दावली में खराब प्रदर्शन भी देखा गया। यह भी पाया गया है कि 15 से 48 महीनों के बीच बहुत अधिक टेलीविजन देखने से भाषा विकास में देरी की आशंका तीन गुना बढ़ जाती है।

बच्चों के अनुकूल सामग्री क्या है?

यहीं से कहानी बदल जाती है। बच्चों और शैक्षणिक सामग्री का सकारात्मक प्रभाव हो सकता है, खासकर अगर इसमें बातचीत भी शामिल हो। उदाहरण के लिए, चार से छह वर्ष की आयु के बच्चों में ध्यान और कार्यकारी कार्यों में सुधार के लिए बनाए गए डिजिटल कार्यक्रमों ने न केवल इन क्षमताओं में सुधार दिखाया है, बल्कि बुद्धिमत्ता, ध्यान और कार्यशील स्मृति (वर्किंग मेमोरी) में भी सुधार दिखाया है। परिवार से बातचीत के साथ-साथ डिजीटल कार्यक्रमों के उपयोग से दो से चार वर्ष की आयु के उन बच्चों की भाषा में सुधार देखा गया जिनमें भाषा सीखने में देरी देखी गयी थी।

विशेषज्ञों की सलाह :

कई विशेषज्ञ निकायों ने ये सिफारिशें की हैं कि स्क्रीन टाइम का सर्वोत्तम उपयोग कैसे किया जाए। ‘अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स' ने 18 महीने से कम उम्र के बच्चों के लिए स्क्रीन से दूर रहने का सुझाव दिया है (वीडियो कॉल को छोड़कर)। जब वे 18-24 महीने के हो जाते हैं, तो वे केवल गुणवत्तापूर्ण सामग्री देखने की सलाह देते हैं वह भी वयस्कों की मौजूदगी में। दो से पांच वर्ष की आयु के बच्चों के मामले में, प्रतिदिन अधिकतम एक घंटे की शैक्षिक सामग्री देखने की अनुमति दी जानी चाहिए।

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