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एजेंसियों की स्वायत्तता का प्रश्न

जन संसद
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जन संसद की राय है कि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के आलोक में देश की जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली को पारदर्शी और न्याय के प्रति जवाबदेह बनाने की जरूरत है। यह तभी संभव है जब ये सत्ता के पिंजरे से मुक्त होकर निष्पक्ष रूप से कार्य करेंगी।

पुरस्कृत पत्र

लोकतंत्र की नींव

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सीबीआई और अन्य जांच एजेंसियों पर सरकार का दबाव उन्हें कमजोर कर देता है, जिससे सही तथ्य जनता के सामने नहीं आ पाते। शीर्ष न्यायालय की हालिया टिप्पणी इस स्थिति की गंभीरता को उजागर करती है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में पक्षपात अस्वीकार्य है। जांच एजेंसियों को स्वतंत्र रूप से कार्य करने की अनुमति मिलने से ही व्यवस्थागत खामियां दूर हो सकती हैं। समय पर न्याय की उपलब्धता सभी नागरिकों के लिए आवश्यक है, और यही लोकतंत्र की सच्ची सफलता का आधार है।

ललित महालकरी, इंदौर, म.प्र.

विश्वसनीयता का संकट

आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो केजरीवाल को कई महीने जेल में रहने के बाद जमानत मिल गई, जिससे सीबीआई की विश्वसनीयता पर सवाल उठे हैं। अदालत ने सीबीआई को ‘तोता के पिंजरे’ से बाहर आने की सलाह दी, यह दर्शाते हुए कि यह संस्था निष्पक्षता और बिना दबाव के काम करे। सरकारों का इन संस्थाओं का दुरुपयोग लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है। सीबीआई को अपने विवेक का उपयोग करते हुए निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिए, ताकि आम नागरिकों का भरोसा इन संस्थानों पर बना रहे।

पूनम कश्यप, नयी दिल्ली

स्वायत्तता की आवश्यकता

दिल्ली के मुख्यमंत्री की जमानत पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, जिसमें सीबीआई को ‘पिंजरे में बंद तोता’ कहा गया, गंभीर चिंता का विषय है। आरोप है कि सत्तारूढ़ केंद्र सरकार ने ईडी, आयकर विभाग और अन्य एजेंसियों का प्रयोग विपक्षी दलों को दबाने का प्रयास किया है, जो लोकतंत्र के हित में नहीं है। इन एजेंसियों की स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट को एक विशेष बोर्ड गठित करना चाहिए, ताकि ये सरकार की तानाशाही से मुक्त रह सकें और प्रशासन में पारदर्शिता बनी रहे। इससे केंद्र सरकार की साख भी बरकरार रहेगी।

अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल

पारदर्शिता जरूरी

जांच एजेंसियां जैसे सीबीआई, ईडी सत्ता पक्ष के दबाव में काम करने की परंपरा का सामना कर रही हैं, जो स्वतंत्रता के बाद से जारी है। आपातकाल के दौरान पक्षपात और मनमानी की जो स्थिति बनी, उससे ‘तोता मैना’ जैसे प्रतीक सामने आए। केजरीवाल प्रकरण में कोर्ट ने एक बार फिर यह साबित किया कि एजेंसियां स्वतंत्र नहीं हैं। राज्यों की पुलिस भी ऊपर के दबाव में निष्पक्ष कार्रवाई नहीं कर पाती। ऐसे मनमाने रवैये से इन संस्थाओं की विश्वसनीयता का हनन होता है। पारदर्शी निर्णय के लिए ऊपरी दबाव से मुक्त व्यवस्था की आवश्यकता है।

अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.

राजनीति के लिए दुरुपयोग

आरोप है कि सरकारें सीबीआई और ईडी जैसी एजेंसियों का राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ दुरुपयोग करती रही हैं, जिससे भारतीय राजनीति विसंगतियों से ग्रस्त हो गई है। राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ षड्यंत्र रचकर अपने प्रतिद्वंद्वियों से निपटने की कोशिश कर रही हैं। कई बार राज्य सरकारों ने अपनी पुलिस का उपयोग विपक्षी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए किया है, जो लोकतंत्र पर कलंक है। सरकारी एजेंसियों को स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से काम करना चाहिए, तभी सच्चे अर्थों में लोकतंत्र की रक्षा संभव हो सकेगी।

सत्यप्रकाश गुप्ता, बलेवा, रेवाड़ी

एजेंसियों की निष्पक्षता

लोकतंत्र में सीबीआई, ईडी और अन्य जांच एजेंसियों को सरकार के दबाव में काम करते देखा गया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि जांच एजेंसियों को संदेह से दूर रहकर कार्य करना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई की तुलना ‘पिंजरे में बंद तोते’ से की थी, जो इसकी स्वतंत्रत कार्यशैली पर प्रश्न लगता है। राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ इन एजेंसियों का दुरुपयोग लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है। सीबीआई को इन आक्षेपों से बाहर निकलकर निष्पक्षता से काम करना चाहिए, ताकि लोकतंत्र में विश्वास कायम रह सके।

जयभगवान भारद्वाज, नाहड़, रेवाड़ी

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