पैरालंपिक खिलाड़ियों की सफलता
अथक मेहनत का फल
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
प्रेरणादायक उपलब्धि
पेरिस पैरालंपिक में हमारे खिलाड़ियों का शानदार प्रदर्शन देश के लिए गर्व की बात है और उन युवाओं के लिए प्रेरणा है जो नशे की दलदल में फंसकर अपनी जवानी बर्बाद कर रहे हैं। 1960 के रोम ओलंपिक में दिव्यांग विल्मा रुडोल्फ ने तीन स्वर्ण पदक जीतकर दुनिया की सबसे तेज धाविका का खिताब प्राप्त किया। दिव्यांग खिलाड़ियों को खेलों के प्रति प्रोत्साहित किया जाए, तो वे हर खेल में शानदार प्रदर्शन कर सकते हैं। हालांकि, कई लोग शारीरिक और मानसिक रूप से सक्षम होते हुए भी अनैतिक और हानिकारक गतिविधियों में लिप्त हैं, जबकि शारीरिक अक्षमता के बावजूद कई दिव्यांग खिलाड़ी मेहनत और हिम्मत से प्रेरणा का काम कर रहे हैं।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
जीवटता का संकल्प
सत्यप्रकाश गुप्ता, बलेवा, रेवाड़ी
साहस का प्रतीक
पेरिस पैरालंपिक में भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन प्रेरणादायक और गौरवपूर्ण रहा है। इन खिलाड़ियों ने शारीरिक चुनौतियों और प्रतिकूल परिस्थितियों को पार करके स्वर्णपदक प्राप्त किए हैं, जो खेल के साथ-साथ सामान्य जीवन में भी प्रेरणा का स्रोत हैं। उनकी सफलता आत्म-संयम, दृढ़ता, और साहस का प्रतीक है, जो उन लोगों के लिए एक उज्ज्वल उदाहरण है जो छोटी समस्याओं में आत्मघात की सोच रखते हैं। इन खिलाड़ियों ने साबित किया है कि कठिनाइयां मनोबल को तोड़ नहीं सकतीं और विपरीत परिस्थितियों में भी सफलता संभव है। उनकी उपलब्धियां सिखाती हैं कि समर्पण और मेहनत से महान लक्ष्य प्राप्त किए जा सकते हैं, और यह प्रेरणा सभी संघर्षशील लोगों के लिए है।
मुकेश भट्ट, लुधियाना
गौरवशाली और प्रेरक
रमेश चन्द्र पुहाल, पानीपत
पुरस्कृत पत्र
संघर्ष की प्रेरणा
पैरालंपिक खेलों में भाग लेने वाले खिलाड़ियों की प्रेरणादायक कहानियां अदम्य साहस और संघर्ष की मिसाल हैं। इन कहानियों की मुख्य शिक्षा यह है कि नई शुरुआत कभी भी और कहीं से भी की जा सकती है। जिजीविषा के बल पर कथित सीमाओं को पार कर वैश्विक मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई जा सकती है। हमारे पैरालंपिक खिलाड़ियों ने यह साबित किया है। अब वैश्विक समाज का कर्तव्य है कि इन खेलों को केवल खेल आयोजन तक सीमित न रखे, बल्कि समावेशिता, समानता, और सामाजिक परिवर्तन के आंदोलन के प्रतीक के रूप में अपनाए।
ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल