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बाल विवाह रोकने की जिम्मेदारी

जन संसद

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जन संसद की राय है कि सिर्फ सरकारी प्रयासों से ही बाल विवाह रोकना संभव नहीं है। इसके लिये अभिभावकों को भी जागरूक करना होगा। वहीं उन कारकों पर नियंत्रण जरूरी है जो बाल विवाह की स्थिति पैदा करते हैं।

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गरीबी का दुष्चक्र

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सच्चाई यह है कि समाज में गरीबी और बाल विवाह के बीच सीधा संबंध है। लगभग 75 प्रतिशत बाल विवाह गरीब परिवारों में होते हैं, जो कालांतर में गरीबी के नए दुष्चक्र को जन्म देते हैं। निश्चित रूप से हमारे समाज में गरीबी और रूढ़िवादी सोच के कारण इस कुप्रथा को बल मिलता है। अभिभावक विषम परिस्थितियों के चलते अल्पवयस्क लड़कियों का विवाह करके जल्दी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते हैं। इस समस्या को दूर करने के लिए बाल विवाह मुक्त अभियान की शुरुआत से पहले सरकार को पहल करनी होगी, तभी समाज को बाल विवाह से मुक्ति मिलेगी।

शिवरानी पुहाल, पानीपत

जागरूकता अभियान

लोकतांत्रिक शासन पद्धति में सामाजिक कुप्रथाओं को दूर करने के लिए सरकार कानून बनाती है, जिसके कारण कई सुधार भी हुए हैं। फिर भी, बाल विवाह की समस्या के समाधान के लिए केवल सरकार पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों में जन जागरूकता अभियान चलाना आवश्यक है। चोरी-छिपे होने वाले बाल विवाहों पर प्रभावी रोकथाम की जरूरत है। डॉक्युमेंट्री फिल्मों के माध्यम से भी लोगों में जागरूकता बढ़ाई जा सकती है। लड़कियों की शिक्षा पर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए और शिक्षकों द्वारा उन्हें बाल विवाह के दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए।

दिनेश विजयवर्गीय, बूंदी, राजस्थान

सामाजिक चेतना

देश में बाल विवाह एक गंभीर सामाजिक बुराई है, जो लड़कियों के स्वास्थ्य और करिअर के लिए बड़ी बाधा है। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने बाल विवाह मुक्त भारत अभियान की शुरुआत की है। हिमाचल सरकार ने लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु 21 वर्ष कर दी है, जो एक सकारात्मक पहल है। समाज में संकीर्ण मानसिकता और रूढ़िवादी विचारधाराओं के चलते लड़कियों की जल्दी शादी करने की प्रवृत्ति है। महिलाओं को भी इस भेदभाव के खिलाफ जागरूक होना होगा। ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसे अभियानों को सफल बनाने के लिए सामाजिक बदलाव जरूरी है।

राजेश कुमार चौहान, जालंधर

कड़े कानून हों

बाल विकास मंत्रालय के अनुसार, देश में 18 वर्ष के कम आयु तक की 40 प्रतिशत कन्याओं का विवाह गरीबी के कारण होता है। कई गरीब परिवार बेटियों को शिक्षित न कर पाने की स्थिति में उनकी शादी कर अपने कर्तव्यों से मुक्त होना चाहते हैं। वर्ष 2019 में कन्या विवाह की आयु सीमा 21 वर्ष निर्धारित होने की प्रक्रिया शुरू की गई थी। बाल विवाह से पारिवारिक जिम्मेदारियां, अल्पायु में संतान का जन्म और स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है। इसके लिए सामाजिक जागरूकता अभियान, शिक्षा संस्थानों में पाठ्यक्रम और मीडिया के प्रचार-प्रसार के प्रयास जरूरी हैं। कानून का भी सख्ती से पालन होना चाहिए।

अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल

सतर्कता आवश्यक

महिलाओं की सक्रियता से ही बाल विवाह का उन्मूलन संभव है। वर्ष 1929 में कानून बनने और सरकारी स्तर पर अभियान चलाए जाने के बावजूद बाल विवाह पूरी तरह से समाप्त नहीं हो पाए हैं। छिटपुट घटनाओं को रोकने के लिए दोनों पक्षों को समझाना समाधान नहीं है। अगर महिलाएं संगठित होकर बेटियों की कानूनी आयु पूर्ण होने तक विवाह न करने के लिए उन्हें जागरूक करें, तो यह समस्या कम हो सकती है। जागरूकता, सतर्कता और समझाइश के जरिए ही इस संवेदनशील मुद्दे का समाधान संभव है। मां-बेटी के संबंधों में कानून का हस्तक्षेप हमेशा उचित नहीं होता।

बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन

पुरस्कृत पत्र

सामूहिक प्रयास जरूरी

बाल विवाह एक गंभीर सामाजिक बुराई है, जो सदियों से हमारे समाज में मौजूद है। शिक्षा और जागरूकता के प्रयासों से इसमें कमी आई है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में यह अभी भी जारी है। इसे समाप्त करने के लिए सरकार को कड़े कानून और प्रभावी मॉनिटरिंग सिस्टम लागू करने होंगे। समाज के प्रगतिशील लोगों को भी इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभानी होगी। लड़कियों की शिक्षा, आत्मविश्वास, जागरूकता और आर्थिक स्वतंत्रता पर भी विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। सरकार, समाज और अभिभावकों के संयुक्त प्रयासों से ही हम बाल विवाह को जड़ से समाप्त कर सकते हैं।

ललित महालकरी, इंदौर म.प्र.

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