Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

निजी उद्योगों में आरक्षण की तार्किकता

जन संसद
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

जन संसद की राय है कि निजी क्षेत्रों में राजनीतिक लाभ हेतु राज्य के लोगों को आरक्षण उद्यमियों के पुरुषार्थ व प्रतिभा से खिलवाड़ है। उन्हें असंवैधानिक कदम उठाने के बजाय अपने युवाओं का कौशल विकास करना चाहिए।

राजनीतिक पैंतरेबाज़ी

सत्ताधारी कांग्रेस द्वारा कर्नाटक में निजी क्षेत्र उद्यमों में रोजगार को बढ़ावा देने की खातिर नौकरियों में आरक्षण सुनिश्चित करने का प्रस्ताव राजनीतिक पैंतरेबाज़ी का हिस्सा है। एक तरफ सरकारी उद्यमों में पचास प्रतिशत आरक्षण जनकल्याण के तहत रोजगार बिना योग्यता देना सरकार की लाचारी है। जबकि प्राइवेट उद्यम निजी लाभ के मद्देनजर कर्मचारी की नियुक्ति योग्यता के मापदंड से नौकरी देते हैं। यदि प्रदेश सरकार निजी स्वार्थ को भुला बेरोजगारी खत्म करना चाहती है तो निजी क्षेत्र में‍ नौकरियों में आरक्षण का इरादा छोड़ स्थानीय उम्मीदवारों को ‍‌योग्यता के आधार पर नौकरी मुहैया करवानी चाहिए।

अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल

Advertisement

आरक्षण की तार्किकता

कर्नाटक में अब निजी क्षेत्र के उद्योगों में राज्य के लोगों को आरक्षण का शिगूफा कर्नाटक की कांग्रेस ने छेड़ दिया है। बजट में हुई घोषणाओं से जाहिर हो गया है कि रोजगार के लिए अब वह उद्योगों की तरफ देख रही है। इसकी पृष्ठभूमि में आर्थिक सर्वे की प्रस्तावना में बेलाग तौर पर उद्धृत की दो रिपोर्ट्स हैं। रोजगार सृजन निजी क्षेत्र का वास्तविक लक्ष्य है। निस्संदेह बेरोजगारी का बड़ा संकट है। लेकिन निजी उद्यमियों के पुरुषार्थ से खड़े उद्योगों में आरक्षण की तार्किकता क्या है? क्या उद्योगों की जरूरत हेतु कुशल कर्मियों की उपलब्धता क्षेत्रीयता के आधार पर संभव है?

रमेश चन्द्र पुहाल, पानीपत

औचित्यहीन फैसला

कर्नाटक सरकार का स्थानीय लोगों को निजी क्षेत्र के उद्यमों में आरक्षण एक औचित्यहीन फैसला है। नि:संदेह, राज्य सरकार स्थानीय उद्यमों को सस्ती जमीन, बिजली व अन्य सुविधाएं प्रदान करती हैं तो वह बदले में करों की बड़ी पूंजी भी प्राप्त करती है। इन उद्योगों की वजह से कई सहायक उद्योग और स्थानीय लोगों को रोजगार के साधन उपलब्ध होते हैं। स्थानीय बेरोजगारों को महत्व देना एक बात है लेकिन बाहरी लोगों के लिए अपने राज्य के दरवाजे बंद करना गलत है। निजी उद्योग को कुशल और योग्य कर्मी चाहिए। अच्छा हो, ऐसे बेतुके प्लान बनाने की बजाय ऐसी शिक्षा दें जो रोजगार प्रदान करे। वैसे भी उचित मजदूरी मिले बिना दूसरे राज्य तो क्या स्थानीय स्तर पर भी लोग काम नहीं करते।

मुनीश कुमार, रेवाड़ी

उद्योग विरोधी कदम

कर्नाटक में सरकार द्वारा निजी उद्योगों में स्थानीय लोगों को आरक्षण का जो शिगूफा छोड़ा गया है, इसकी कोई तार्किकता नजर नहीं आती। उद्योगों की सफलता के लिए कुशल कर्मियों का होना बहुत ही आवश्यक है। कुशल कर्मियों की उपलब्धता क्षेत्रीयता के आधार पर संभव नहीं हो सकती। यदि उद्योगों पर राजनीतिक दबाव डाला जाता है तो इसका उद्योगों के विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है। उद्योगों की सफलता का आधार क्षेत्रीयता नहीं बल्कि कुशलता होना चाहिए। जो उद्योग निजी उद्यमियों की मेहनत से चलते हैं, उनमें आरक्षण की व्यवस्था करना उद्योगों के लिए हितकर नहीं है।

सतीश शर्मा, माजरा, कैथल

प्रतिकूल असर

कर्नाटक सरकार द्वारा हाल ही में लाया गया, निजी क्षेत्र आरक्षण विधेयक, न सिर्फ ग़ैरक़ानूनी बल्कि राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर का विषय भी है। स्थानीय निवासियों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाना, प्रतिभा पलायन को रोकना और स्थानीय प्रतिभा का स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान सुनिश्चित करने जैसे तर्क देकर निजी क्षेत्र आरक्षण विधेयक की पैरवी करने वाले शायद भूल जाते हैं कि यह विधेयक कम्पनियों के सर्वोत्तम प्रतिभाओं को नियुक्त करने की क्षमता को बाधित करता है जिससे कम्पनियों की कार्यकुशलता और प्रतिस्पर्धात्मकता पर प्रतिकूल असर पड़ता है। कामगारों की आवाजाही में बाधा डालने और ग़ैर-स्थानीय उम्मीदवारों के लिए समान अवसर के सिद्धांत का उल्लंघन करने वाले ऐसे विधेयकों की तार्किकता हमेशा सवालों के घेरे में रही है।

ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल

पुरस्कृत पत्र

संवैधानिक नहीं

बेरोजगारी के चलते कई राज्यों ने निजी क्षेत्र में स्थानीय निवासियों को आरक्षण देने की घोषणा की है। कानून के जानकारों का मानना है कि यह आरक्षण संवैधानिक नहीं है। आरक्षण से स्थानीय लोगों को रोजगार तो मिलता है मगर इससे कंपनियों पर बोझ पड़ता है। उन्हें आरक्षण के चलते अयोग्य लोगों को नियुक्त करना पड़ सकता है। प्रत्येक राज्य सरकार अपने नौजवानों को शिक्षा और तकनीकी स्तर पर इतना काबिल बनाए कि उन्हें आरक्षण की बैसाखी का सहारा न लेना पड़े। वे अपनी काबिलियत से नौकरी पाएं जिससे उन युवकों में प्रतिस्पर्धा भी कायम रहे और वे अपने कार्य क्षेत्र में उत्कृष्ट काम करते हुए शिखर तक पहुंचें।

पूनम कश्यप, नयी दिल्ली

Advertisement
×