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खाद्य शृंखला और दीर्घकालीन विकास की रक्षा

प्रकृति प्रेमी बनें दुनिया के किसी कोने में कोई प्राकृतिक आपदा आती है तो हमें इस बात का अहसास होने लगता है कि धरती का बढ़ता तापमान एक वैश्विक चिंता का सबब है। जनसंख्या का दबाव और प्राकृतिक संसाधनों का...
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प्रकृति प्रेमी बनें

दुनिया के किसी कोने में कोई प्राकृतिक आपदा आती है तो हमें इस बात का अहसास होने लगता है कि धरती का बढ़ता तापमान एक वैश्विक चिंता का सबब है। जनसंख्या का दबाव और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन ही ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण है। आकंठ भौतिकता में डूबा मनुष्य प्रकृति को अपने धीन समझ बैठा है, जो कि सबसे बड़ी भूल सिद्ध हो रही है। कुदरत के आगोश में ही मनुष्य सुरक्षित है। अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी पर पेयजल और खाद्यान्नों के संकट से त्राहिमाम की पुकार लगेगी। इस आपदा से बचने के लिए प्रत्येक मनुष्य को प्रकृति प्रेमी बनना होगा। क्योंकि जब तक प्रकृति है तब तक पृथ्वी पर जीव है।

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सुरेन्द्र सिंह 'बागी', महम

चिंता का विषय

दुबई में जलीय तबाही ग्लोबल वार्मिंग के मद्देनजर सुनामी लहर, बर्फानी बाढ़ के कारण जन जीवन अस्त-व्यस्त हुआ है। परिणामतः दीर्घकालीन विकास खाद्य शृंखला सुरक्षा संकट में आयी। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग के नियंत्रण पर विफल वार्ताएं चिंता का विषय है। विश्वस्तरीय विकास में प्रकृति से छेड़छाड़, रासायनिक हथियारों का प्रयोग, जन-धन की हानि है। समय रहते सभी देशों को मिलकर प्रकृति के प्रकोप से बचने के लिए प्रयत्नशील होना होगा। अन्यथा दुबई जैसे अंजाम की तैयारी करनी होगी।

अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल

सावधानी से काम करें

ग्लोबल वार्मिंग एक ज्वलंत समस्या न केवल भारत की है अपितु संपूर्ण विश्व की बन गई है। मानव अपने विनाश को स्वयं आमंत्रित करने पर उतारू है। आज बेमौसम बरसात, आहार-विहार और बेमौसम की उपज मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए खिलवाड़ बन गई है। भौतिकतावाद के युग में मानव मानव न होकर मशीन बन गया है। अधिक भौतिक सुखों की चाहत उसके जीवन में विष की भांति धीरे-धीरे नाश की ओर प्रशस्त कर रही है। विकास के नाम पर प्रकृति से छेड़छाड़ विनाश का द्योतक है। धरती पर अवैध निर्माण और अधिग्रहण प्रकृति से खिलवाड़ नहीं तो और क्या है। अभी भी समय है। सावधान रहकर मनुष्य पर्यावरण हित में काम करे।

अशोक कुमार वर्मा, कुरुक्षेत्र

कुदरत से खिलवाड़

ग्लोबल वार्मिग विश्व में आज की ज्वलंत समस्या बन चुकी है। घटती हरियाली, कटते पेड़ पौधे, सीमेंट कंक्रीट का फैलता जाल, सीमेंटेड सड़कें, वातावरण में फैलता पेट्रोल-डीजल का धुआं, इन सभी ने प्रकृति की व्यवस्था को अस्तव्यस्त कर दिया है जिससे कहीं सूखा, कहीं बेमौसम बरसात होती है। हाल ही में रेगिस्तान कहे जाने वाले दुबई में बादलों में केमिकल छिड़काव से घनघोर वर्षा हुई। इस तरह से उगने वाली फसलें बर्बाद हो जाती हैं जिसे दीर्घकालीन समय तक बचाए रखने के प्रयास करना समय की मांग है।

भगवानदास छारिया, इंदौर

पुरस्कृत पत्र

प्रकृति को दें प्राथमिकता

मनुष्य पृथ्वी का मालिक बनने के बजाय यहां मौजूद हर चीज के साथ सह-अस्तित्व स्वीकारे। हर सजीव-निर्जीव को उसका हक़ दे। इतिहास गवाह है कि मानव तरक्की और तकनीकी उन्नयन सदैव प्रकृति की क़ीमत पर हुआ है और यही ग्लोबल वार्मिंग का कारण है। खाद्य शृंखला और दीर्घकालीन विकास की रक्षा के लिए नई तकनीक की खोज या इस्तेमाल प्रकृति को और नुक़सान पहुंचायेगा। अब विज्ञान और प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करते समय प्राथमिकता प्रकृति को दी जाये और विकास एक सह उत्पाद की तरह हो। ये ज़रूरी है क्योंकि प्रकृति का रौद्र रूप इंसानी तकनीकी सामर्थ्य के बाहर है और शायद हमेशा ही बाहर रहेगा।

बृजेश माथुर, गाजियाबाद, उ.प्र.

मिलकर काम करें

ग्लोबल वार्मिंग के कारण अनेक देशों में तबाही हो रही है। जिससे न केवल सामान्य जन जीवन अस्त-व्यस्त हो रहा है बल्कि खाद्य शृंखला, दीर्घकालीन विकास की रक्षा खतरे में पड़ गई है। समय-समय पर ग्लोबल वार्मिंग पर नियंत्रण के लिए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन तो होते रहते हैं लेकिन सभी विकसित देश यही चाहते हैं कि वो तो इसके बारे में कुछ न करें परंतु दूसरे देश इस पर नियंत्रण करें। विश्व में जिस तरह विकास की अंधी दौड़ तथा उच्च जीवनस्तर का आनंद लेने को लेकर ऊर्जा का इस्तेमाल, प्रकृति के साथ छेड़छाड़, विश्व के अनेक भागों में मिसाइल तथा का बमों का इस्तेमाल हो रहा है। यह ग्लोबल वार्मिंग के दुष्परिणाम हैं। जब तक सभी देश ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ मिलकर काम नहीं करेंगे, दुबई जैसे हादसे होते रहेंगे।

शामलाल कौशल, रोहतक

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