पाठकों के पत्र
संबंधों का क्षरण
बाईस जुलाई का दैनिक ट्रिब्यून में संपादकीय ‘मेले में अकेला’ अकेलेपन पर एक सार्थक टिप्पणी है। तकनीकी विकास के बावजूद अकेलापन वैश्विक स्वास्थ्य संकट बन गया है। भारत में सामाजिक संबंधों का क्षरण, बढ़ता स्क्रीन टाइम और नीतिगत कमी इसे और बढ़ा रहे हैं। इससे निपटने के लिए सरकार, समाज और नागरिकों को मिलकर सामाजिक जुड़ाव को प्राथमिकता देनी होगी।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
सटीक टिप्पणी
उन्नीस जुलाई के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘तेल का खेल’ अमेरिका व नाटो द्वारा भारत पर दबाव की कोशिशों पर सटीक टिप्पणी है। रूस से रियायती दर पर तेल खरीद भारत का संप्रभु अधिकार है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर का जवाब उचित है —भारत अपने हितों को प्राथमिकता देगा। अमेरिका की तुलना में रूस भारत का अधिक भरोसेमंद साझेदार रहा है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
आपसी संवाद जरूरी
बाईस जुलाई के ‘दैनिक ट्रिब्यून’ में प्रकाशित संपादकीय ‘मेले में अकेला’ अकेलेपन पर एक गंभीर और विचारोत्तेजक टिप्पणी है। भीड़ और सुविधाओं के बावजूद हर छठा व्यक्ति खुद को अकेला महसूस कर रहा है। संयुक्त परिवारों का विघटन, संवेदनहीनता और डिजिटल दूरी इसके प्रमुख कारण हैं। जरूरत है सामाजिक जुड़ाव बढ़ाने और डिप्रेशन से जूझ रहे लोगों से संवाद की।
धर्मवीर अरोड़ा, फरीदाबाद
तिरंगे की शान
बाईस जुलाई, 1947 को संविधान सभा ने तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। इस दिन की स्मृति में ‘राष्ट्रीय झंडा दिवस’ मनाया जाता है। तिरंगे की शान के लिए कई वीरों ने बलिदान दिया है। हर नागरिक को इसके सम्मान में कार्य करना चाहिए। शिक्षकों को बच्चों को तिरंगे का इतिहास सिखाना चाहिए और सभी को ‘हर घर तिरंगा’ अभियान से जुड़ना चाहिए।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर