मुख्य समाचारदेशविदेशहरियाणाचंडीगढ़पंजाबहिमाचलबिज़नेसखेलगुरुग्रामकरनालडोंट मिसएक्सप्लेनेरट्रेंडिंगलाइफस्टाइल

पाठकों के पत्र

देशभक्ति की मिसाल सत्रह जून के दैनिक ट्रिब्यून में सैनिक के जीवन को लक्ष्य करके लिखा गया लेख, ‘सैनिक परंपरा में मौजूद कर्तव्यपरायणता का संकल्प’ पढ़कर मन गद्गद हो गया। युद्ध, सैन्य साजो-सामान, विजय, पराजय या वर्चस्व की वृत्ति पर...
Advertisement

देशभक्ति की मिसाल

सत्रह जून के दैनिक ट्रिब्यून में सैनिक के जीवन को लक्ष्य करके लिखा गया लेख, ‘सैनिक परंपरा में मौजूद कर्तव्यपरायणता का संकल्प’ पढ़कर मन गद्गद हो गया। युद्ध, सैन्य साजो-सामान, विजय, पराजय या वर्चस्व की वृत्ति पर तो लेख अक्सर पढ़ने को मिल जाते हैं, लेकिन सैनिक और सैनिक परंपरा पर लिखा ऐसा लेख आज पहली बार पढ़ा। सैनिक की एक देशभक्त छवि हमारे मन-मस्तिष्क पर पहले से अंकित होती है, परंतु सैनिक के साहस, विवेक, असीम दायित्व-बोध और निःस्वार्थ कर्तव्यपरायणता का जो दुर्लभ चित्रण प्राप्त हुआ, वह काबिलेतारीफ है। लेखक की अद्भुत लेखन शैली ने आद्योपांत अपने साथ बांधे रखा।

Advertisement

ईश्वर चंद गर्ग, कैथल

कचरे का बोझ

हिमाचल प्रदेश की सुरम्य वादियां अब प्लास्टिक और कचरे के बोझ तले दबती जा रही हैं। मनाली, कसोल और पालमपुर जैसे लोकप्रिय पर्यटक स्थलों पर हर वर्ष हजारों पर्यटक आते हैं, लेकिन उनके द्वारा छोड़ा गया कचरा नदियों और जंगलों को प्रदूषित कर रहा है। शिशु और शिमला तक की लैंडफिल साइटें भर चुकी हैं, और अब कचरा सीधे जंगलों में फेंका जा रहा है। स्थिति चिंताजनक है, परंतु स्थानीय संस्थाएं भी इस समस्या के समाधान में अब तक प्रभावी भूमिका नहीं निभा पाई हैं। अब भी समय है कि सख्त नियम लागू कर पर्यावरण के प्रति ज़िम्मेदार पर्यटन को बढ़ावा दिया जाए।

सिमरन कंबोज, चौ. देवी लाल विवि., सिरसा

संस्कारों की चुनौती

पंद्रह जून के रवि रंग में लोकमित्र गौतम का लेख रिश्तों की नींव पर गहरे सवाल उठाता है। सिंगल पैरेंटिंग, लिव-इन रिलेशनशिप और परखनली शिशु जैसे बदलाव ‘पिता’ की पारंपरिक संस्था को पृष्ठभूमि में धकेल रहे हैं। भविष्य का पिता एक भावनाहीन, डिजिटल मार्गदर्शक मात्र रह जाएगा। यह परिवर्तन भारतीय संस्कृति और मूल्यों के साथ सीधी छेड़छाड़ है।

शामलाल कौशल, रोहतक

Advertisement
Show comments