व्यवस्था को चुनौती
रात के सन्नाटे में नकाबपोश बदमाशों ने भोपाल स्थित एक कैफे पर हमला कर दिया। शीशे बिखर गए, कुर्सियां टूट गईं, और कर्मचारी दहशत में आ गए। सीसीटीवी और गवाह सब कुछ देख रहे थे, लेकिन यह घटना महज तोड़फोड़ नहीं, बल्कि कानून और व्यवस्था को खुली चुनौती थी। जब अपराधी निडर हों और सुरक्षा तंत्र देर करे, तो संदेश साफ़ है कि कहीं न कहीं गंभीर कमी है। यह हमला सिर्फ़ एक कैफे पर नहीं, हमारी नागरिक स्वतंत्रता पर है। जनता डरी नहीं है, बल्कि जागरूक हो रही है। और जब जनता सवाल पूछे, तो व्यवस्था को जवाब देना होगा। अब यह समय है कि हम मिलकर इन अपराधियों के खिलाफ खड़े हों, और प्रशासन को मजबूती से कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करें।
आरके जैन, बड़वानी, म.प्र.
नैतिक शिक्षा का अभाव
उन्नीस नवंबर के दैनिक ट्रिब्यून के संपादकीय ‘नाबालिगों के अपराध’ में किशोरों में बढ़ती आपराधिक प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की गई है। दिल्ली में एक ऑटो चालक की हत्या नशे की लत के कारण पांच नाबालिगों ने की। देश के अन्य हिस्सों में भी किशोरों द्वारा लूट, हत्या, चोरी जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं, जिसका कारण शिक्षा संस्थानों में नैतिक शिक्षा का अभाव, घरेलू माहौल और इंटरनेट पर अश्लील सामग्री है। ऐसे किशोरों को सुधार गृहों में भेजने पर भी वे अपराधी बने रहते हैं। इन्हें कानून में संशोधन करके वयस्कों की तरह सजा मिलनी चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
लैंगिक समानता जरूरी
अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस 19 नवंबर को मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य पुरुषों के योगदान को सम्मानित करना और मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता बढ़ाना है। सृष्टि को गतिशील बनाए रखने में पुरुषों और महिलाओं दोनों का बराबर योगदान है, जैसे गाड़ी के दो पहिए। इसलिए लैंगिक समानता जरूरी है। पीड़ित पुरुषों को इंसाफ तब मिल सकता है जब कानून निष्पक्ष जांच करे।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर

