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तालिबान शासन के प्रति भारतीय नीति

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जन संसद की राय है कि भारत तालिबान से संबंध पुनः स्थापित करते समय सतर्कता, कूटनीतिक संतुलन, राष्ट्रीय हित, सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता को ध्यान में रखकर व्यावहारिक नीति अपनाए।

रणनीतिक रूप से लाभ

तालिबान सरकार के बाद भारत-अफगान संबंधों में आई निकटता स्वागत योग्य है। भारत ने दूतावास खोलकर कूटनीतिक संतुलन पुनः स्थापित किया है। विदेशमंत्री मुत्ताकी द्वारा कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बताना महत्वपूर्ण संकेत है। दोनों देशों में बढ़ते व्यापारिक और मानवीय संबंध क्षेत्रीय स्थिरता के लिए सकारात्मक हैं। इस सहयोग से पाकिस्तान की भारत-विरोधी गतिविधियों पर अंकुश लगेगा। भारत की यह नीति न केवल दक्षिण एशिया में संतुलन लाएगी बल्कि अमेरिका और चीन को भी नई सोच पर मजबूर करेगी। यह मित्रता भारत के लिए रणनीतिक रूप से लाभकारी सिद्ध हो सकती है।

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अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल

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सतर्कता आवश्यक

अफगानिस्तान से भारत के ऐतिहासिक संबंध पुनः प्रगाढ़ होने की दिशा में हैं। मुत्ताकी की भारत यात्रा से दोनों देशों के बीच नई उम्मीदें जगी हैं। तालिबान ने आतंकवाद से निपटने में भारत का साथ देने का आश्वासन दिया है, परंतु भारत को हर कदम सावधानी से रखना होगा। अफगानिस्तान से आसपास कई देशों के हित जुड़े हैं जो भारत-तालिबान निकटता नहीं चाहेंगे। बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत को नए समीकरण बनाकर आगे बढ़ना होगा। यह साझेदारी तभी स्थायी बनेगी, जब दोनों देश विश्वास और संतुलन के साथ सहयोग जारी रखें।

सत्यप्रकाश गुप्ता, बलेवा, रेवाड़ी

नीति में बदलाव

भारत-अफगान रिश्ते ऐतिहासिक रूप से गहरे रहे हैं। अब जबकि अन्य देश अफगानिस्तान में प्रभाव बढ़ा रहे हैं, भारत को भी अपनी नीति में व्यावहारिक बदलाव करने होंगे। मुत्ताकी की भारत यात्रा इसी दिशा में पहला कदम है। भारत को काबुल में राजदूत नियुक्त कर अपने प्रभाव को पुनः स्थापित करना चाहिए। क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा के इस दौर में अफगानिस्तान के साथ बेहतर संबंध भारत को सामरिक लाभ देंगे। मनमोहन सिंह का कथन — ‘दिल्ली में नाश्ता, अमृतसर में भोजन और काबुल में डिनर’— अब सार्थक होता दिख रहा है। यह समय की मांग और कूटनीतिक दूरदर्शिता दोनों है।

जयभगवान भारद्वाज, नाहड़

कूटनीतिक संतुलन की पहल

अफगान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी की भारत यात्रा तालिबान के प्रति भारत की नीति में अहम बदलाव का संकेत है। भारत को अब अपने बंद वाणिज्य दूतावासों को फिर खोलकर कूटनीतिक उपस्थिति मजबूत करनी चाहिए। यह कदम भारत को क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में मदद करेगा। अफगानिस्तान के साथ संबंध पुनः स्थापित करने से भारत मध्य एशिया में अपनी रणनीतिक स्थिति सुदृढ़ कर सकेगा। तालिबान को भारत पहले से भली-भांति जानता है, इसलिए यह पहल सतर्कता और संतुलन दोनों की मांग करती है। इससे भारत की भू-राजनीतिक स्थिति और प्रभाव में उल्लेखनीय वृद्धि संभव है।

रमेश चन्द्र पुहाल, पानीपत

सतर्कता से बने संबंध

भारत हमेशा शांतिप्रिय रहा है, लेकिन कुछ देश, खासकर मुस्लिम राष्ट्र, उसकी सद्भावना का गलत फायदा उठाते हैं। तालिबान से संबंध बहाली एक सकारात्मक कदम है, परंतु विश्वास सोच-समझकर करना होगा। तालिबान परंपरागत रूप से कट्टरपंथ से प्रभावित रहा है और उसके सत्ताधारी कट्टर विचारधारा के अधीन रहते हैं। भारत को चाहिए कि वह तालिबान से व्यावहारिक सहयोग रखे, परंतु पूर्ण भरोसा तभी करे जब उसके इरादों में स्थिरता और ईमानदारी दिखाई दे। कूटनीतिक संयम और सुरक्षा दृष्टि से सावधानी सर्वोपरि होनी चाहिए।

राजेश कुमार चौहान, जालंधर

पुरस्कृत पत्र

व्यावहारिक कूटनीति

तालिबान शासन के बाद भारत द्वारा दूतावास पुनः खोलना उसकी व्यावहारिक कूटनीति का उदाहरण है। मुत्ताकी की यात्रा भारत को अफगानिस्तान में रणनीतिक उपस्थिति पुनर्स्थापित करने का अवसर देती है। हालांकि तालिबान की नीतिगत अस्थिरता और अंतरराष्ट्रीय अविश्वसनीयता चिंता का विषय हैं। सहयोग तभी स्थायी बन सकेगा जब तालिबान मानवाधिकारों और महिला शिक्षा के प्रति संवेदनशीलता दिखाए। यह साझेदारी भारत को पाकिस्तान और चीन के प्रभाव को संतुलित करने में मदद कर सकती है। फिलहाल यह संबंध भरोसे की बजाय व्यावहारिक आवश्यकता पर आधारित दिखाई देता है।

अमृतलाल मारू, इन्दौर, म.प्र.

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