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बेलगाम सोशल मीडिया और अराजक मंसूबे

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जन संसद की राय है कि सोशल मीडिया ने जनभावनाओं को आवाज़ दी है, लेकिन अफवाह, कट्टरता और हिंसा को बढ़ावा देकर यह लोकतंत्र के लिए संकट भी बना है।

बेलगाम सोशल मीडिया

श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में हालिया सत्ता परिवर्तन सोशल मीडिया केंद्रित आक्रोश का परिणाम हैं। नि:संदेह भ्रष्टाचार, नीति विफलता और शासन तंत्र की असफलता से जनता त्रस्त थी, लेकिन सोशल मीडिया की बेलगाम भूमिका ने स्थिति को हिंसक बना दिया। गलत सूचनाओं का प्रसार, अफवाहें, और कट्टरता फैलाकर सोशल मीडिया ने ध्रुवीकरण और भ्रम को जन्म दिया। इसका इस्तेमाल उग्र विचारों के प्रचार में भी हो रहा है। ऐसे में जरूरी है कि सोशल मीडिया का जिम्मेदारी से उपयोग हो। नकारात्मक पहलुओं को किनारे रखकर, इसके सकारात्मक उपयोग पर ध्यान देना ही लोकतंत्र को सशक्त बना सकता है।

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पूनम कश्यप, नई दिल्ली

सच-झूठ का द्वंद्व

श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में सोशल मीडिया की शक्ति ने सभी को चौंकाया है। भ्रष्टाचार और प्रशासनिक असफलताओं से जनता की तकलीफें तो वास्तविक थीं, लेकिन संवैधानिक संस्थाओं पर हमले लोकतंत्र की मर्यादा को तोड़ते हैं। टीवी मीडिया में फिल्टरिंग प्रणाली होती है, लेकिन स्मार्टफोन पर चलने वाला मीडिया बेलगाम है। जेनरेशन जेड को समझना होगा कि सोशल मीडिया पर आई हर बात सच नहीं होती। उन्हें स्वयं ही सच और झूठ के बीच अंतर करना सीखना होगा ताकि वे गुमराह न हों और समाज को सही दिशा में ले जा सकें।

देवी दयाल दिसोदिया, फरीदाबाद

पारदर्शी शासन जरूरी

आज सोशल मीडिया केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि प्रचार, व्यवसाय और संवाद का प्रभावशाली प्लेटफॉर्म बन गया है। गृहिणी से लेकर बड़ी कंपनियां इससे मुनाफा कमा रही हैं। ऐसे में सरकार को भी नीतियां बनाते समय जनता के हित और मौजूदा हालात को ध्यान में रखना चाहिए। तानाशाही और भ्रष्टाचार से भरी सत्ता लंबे समय तक नहीं चलती। पारदर्शिता, निष्पक्षता और भागीदारी आधारित शासन ही लोगों की अपेक्षा है। जनता को साथ लेकर चलने वाली सरकार ही स्थिरता और विकास सुनिश्चित कर सकती है।

अभिलाषा गुप्ता, मोहाली

विवेकशील हो आंदोलन

सोशल मीडिया का सामाजिक, राजनीतिक और व्यावहारिक जीवन में गहरा प्रभाव है। नेपाल की हालिया घटनाएं दर्शाती हैं कि इससे वैचारिक क्रांति जन्म ले सकती है, लेकिन जब वह हिंसात्मक हो जाए तो यह अराजकता बन जाती है। सोशल मीडिया के ज़रिए आंदोलन को संगठित करना आसान है। जरूरी है कि इसका उपयोग जन सेवा, शिक्षा और लोक कल्याण में हो। युवाओं को विवेक से काम लेना चाहिए। किसी आंदोलन में केवल तभी शामिल हों जब वह राष्ट्र और समाज के व्यापक हित में हो। अंधानुकरण की बजाय तुलनात्मक अध्ययन आवश्यक है।

वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली

जिम्मेदार बनाएं

श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल की घटनाएं दर्शाती हैं कि सोशल मीडिया आज जनता की पीड़ा को आंदोलन में बदलने का तीव्र माध्यम बन गया है। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को तो बढ़ाता है, लेकिन जब इसका इस्तेमाल अफवाह, उकसावे और हिंसा के लिए होता है, तो लोकतंत्र पर घातक असर डालता है। संसद और सुप्रीम कोर्ट पर हमले लोकतांत्रिक अधिकार नहीं, बल्कि अराजकता का संकेत हैं। सोशल मीडिया को जिम्मेदाराना ढांचे में लाना जरूरी है ताकि उसकी शक्ति लोकतंत्र को मज़बूत बनाए, न कि कमजोर करे।

अमृतलाल मारू, इंदौर

पुरस्कृत पत्र

आक्रोश का दुरुपयोग

हाल ही में श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश में युवाओं के आक्रोश ने हिंसक रूप लिया—आगज़नी, जेलों से कैदियों को छुड़ाना और शासकों पर हमले जैसे घटनाक्रम हुए। इसके पीछे व्यापक भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, महंगाई, भाई-भतीजावाद और सोशल मीडिया का दुरुपयोग रहा है। सोशल मीडिया के ज़रिए मिली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अराजक प्रयोग लोकतंत्र के लिए घातक है। नेपाल में सुप्रीम कोर्ट, संसद और राष्ट्रपति भवन को जलाना निंदनीय है। समस्याएं वास्तविक हैं, लेकिन उनका समाधान हिंसा नहीं है। सोशल मीडिया की एक सीमा होनी चाहिए, जिसके बाद उसका दुरुपयोग अपराध की श्रेणी में आए।

शामलाल कौशल, रोहतक

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