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मोदी शी मुलाकात और भारत चीन रिश्ते
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जन संसद की राय है कि भारत-चीन संबंधों में सतर्कता, आत्मनिर्भरता, मजबूत सीमा सुरक्षा, रणनीति और संवाद को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए।

चीन की चालबाजियां

वर्ष 1962 में ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ का नारा धोखा साबित हुआ जब चीन ने अचानक हमला कर हमारी ज़मीन हड़प ली। आज भी सीमा विवाद जस का तस बना हुआ है। 2019 में गलवान और अरुणाचल में घुसपैठ ने चीन की मंशा उजागर कर दी है। अमेरिका-रूस तनाव के बीच भारत को फूंक-फूंक कर कदम रखने होंगे। चीन फिर से भारत की कमजोरियों का लाभ उठाने की कोशिश करेगा। हमें आत्मनिर्भर बनकर सीमा सुरक्षा को सर्वोपरि रखना होगा। 1962 की पुनरावृत्ति भारत के लिए भारी पड़ेगी। सतर्कता, ताकत और रणनीति ही हमें मजबूत बना सकती है।

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धर्मवीर अरोड़ा, फरीदाबाद

सतर्कता जरूरी

एससीओ बैठक में भारत-चीन संबंधों में नरमी दिखी, पर चीन का यह रुख अस्थायी है। अमेरिका से व्यापारिक तनाव के बीच चीन नए अंतरराष्ट्रीय गठबंधन चाहता है। लेकिन जब तक वह सीमा विवाद सुलझाने और आतंकवाद के खिलाफ सहयोग नहीं करता, उस पर भरोसा करना जोखिम है। भारत को चीन से हर तरह के संबंध सोच-समझकर बढ़ाने चाहिए। व्यापारिक हितों से पहले राष्ट्रीय सुरक्षा और स्वाभिमान प्राथमिकता होनी चाहिए। चीन के साथ संबंधों में सतर्कता, गहरी समझ और दूरदर्शिता आवश्यक है। भावनाओं की नहीं, हकीकत की राजनीति की ज़रूरत है।

ललित महालकरी, इंदौर, म.प्र.

वक्त की नीति

चीन नई महाशक्ति बन रहा है, लेकिन भारत की विदेश नीति पर भी अब दुनिया की नजर है। क्या हम अब भी गुटनिरपेक्ष हैं या वैश्विक संतुलन साधने में लगे हैं? ट्रंप की टैरिफ नीति और मोदी की चीन यात्रा के बाद भारत-चीन संबंधों का नया अध्याय संभावित है। परंतु सवाल यह है कि क्या यह रिश्ता टिकेगा? भारत को संतुलन के साथ समझदारी और दृढ़ता भी दिखानी होगी। हर कूटनीतिक कदम सावधानी से उठाना होगा ताकि भारत की प्रतिष्ठा और हित सुरक्षित रहें। स्थायी समाधान के लिए आत्मबल और रणनीति आवश्यक है।

शिवरानी पुहाल, पानीपत

संवाद से समाधान

मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात ने दिखाया कि भिन्न विचारों वाले पड़ोसी भी संवाद से रास्ता निकाल सकते हैं। भारत और चीन दोनों प्राचीन सभ्यताएँ हैं, जिनकी ताकत सहयोग में छिपी है। रिश्तों में भरोसा, सम्मान और संतुलन जरूरी है। संवाद से न सिर्फ द्विपक्षीय मतभेद सुलझाए जा सकते हैं, बल्कि वैश्विक स्थिरता और विकास को भी बढ़ावा मिल सकता है। भारत-चीन संबंधों को नई दिशा देने का यही समय है। जब पड़ोसी समझदारी से बढ़ते हैं, तो पूरे क्षेत्र में शांति का संदेश फैलता है।

सतपाल, कुरुक्षेत्र

भरोसे की शुरुआत

तियानजिन की मुलाकात ने भारत-चीन संवाद को सात साल बाद फिर से ऊर्जा दी। सीमा पर शांति, सांस्कृतिक सहयोग, व्यापार विस्तार और कैलाश यात्रा की बहाली जैसे निर्णय सकारात्मक संकेत हैं। दोनों देशों ने मतभेदों को विवाद में न बदलने की प्रतिबद्धता जताई। शी जिनपिंग ने ‘ड्रैगन-हाथी साझेदारी’ को वैश्विक शांति का वाहक बताया। प्रधानमंत्री मोदी ने रिश्तों की बुनियाद विश्वास, सम्मान और संवेदनशीलता को बताया। अमेरिका-रूस तनाव के बीच भारत की भूमिका अब निर्णायक बन रही है। यह संवाद भविष्य के लिए आशा और स्थिरता का संकेत है।

भगवानदास छारिया, इंदौर, म.प्र.

पुरस्कृत पत्र

नई दिशा में शुरुआत

मोदी-शी मुलाकात के बाद भारत-चीन संबंध पूरी तरह सामान्य नहीं हुए हैं, लेकिन सकारात्मक दिशा में बढ़ने की शुरुआत अवश्य हुई है। शिखर सम्मेलन में पहलगाम हमले की निंदा, कैलास मानसरोवर यात्रा की बहाली और सीधी उड़ानों पर सहमति भारत की कूटनीतिक सफलता है। भारत ने संवाद के ज़रिए तनाव को नियंत्रित कर सूझबूझ का परिचय दिया। भारत-चीन-रूस त्रिकोण अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नया संतुलन स्थापित करेगा। यह गठजोड़ अमेरिका को स्पष्ट संकेत देता है कि एकध्रुवीय विश्व का दौर समाप्त हो रहा है। ट्रंप की टैरिफ नीति को भी अब जवाब मिल चुका है।

ईश्वर चंद गर्ग, कैथल

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