जन संसद की राय है कि जलवायु संकट के समाधान में विकसित देशों की जिम्मेदारी और सब देशों की एकजुटता की जरूरत है। पर्यावरणीय संकट नजरअंदाज करना भविष्य के लिए घातक होगा।
खोखले सम्मेलन
संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में ब्राजील में आयोजित जलवायु सम्मेलन अपने उद्देश्य में असफल रहा। अमेरिका सहित विकसित देश कार्बन उत्सर्जन में सबसे आगे हैं, जिसके कारण ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन तेजी से बढ़ रहा है। इसके परिणामस्वरूप बेमौसमी बाढ़, हिमस्खलन, सुनामी जैसी आपदाएं सामने आ रही हैं। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि विकसित देश स्वयं प्रभावी कदम नहीं उठाते, बल्कि दूसरों को उपदेश देते हैं। समस्या का समाधान केवल सलाह से नहीं होगा। इसके लिए ऊर्जा के सीमित उपयोग, व्यापक पौधरोपण, प्रकृति से छेड़छाड़ पर रोक और युद्धों में अनावश्यक बमबारी को समाप्त करना आवश्यक है।
अनिल कौशिक, कैथल
जिम्मेदारी से पलायन!
कॉप-30 सम्मेलन में विकसित देशों की राजनीतिक और आर्थिक प्राथमिकताओं ने जलवायु संकट को हाशिये पर डाल दिया। न तो पर्याप्त वित्तीय प्रतिबद्धता दिखाई दी और न ही कार्बन उत्सर्जन घटाने की ठोस योजना सामने आई। यह चिंताजनक है कि कम उत्सर्जन करने वाले देश अधिक नुकसान झेल रहे हैं, फिर भी विकसित देश संवेदनहीन बने हुए हैं। अमेरिका जैसे बड़े उत्सर्जक का सम्मेलन से दूरी बनाना इसी उदासीनता का प्रतीक है। गरीब देशों को दी जाने वाली वार्षिक सौ अरब डॉलर की सहायता और उत्सर्जन कटौती का कोई स्पष्ट उल्लेख अंतिम घोषणापत्र में नहीं होना, विकसित देशों की गैर-जवाबदेही को उजागर करता है।
ईश्वर चंद गर्ग, कैथल
एकजुटता की आवश्यकता
जलवायु संरक्षण पर आयोजित कॉप-30 सम्मेलन में जलवायु जोखिम सूचकांक-2026 के अनुसार, भारत विश्व के सबसे अधिक प्रभावित दस देशों में शामिल है। कथित विकास के नाम पर हमने पेड़ों, पहाड़ों और प्रकृति का अत्यधिक दोहन किया है। नि:संदेह, विकास समय की आवश्यकता है, लेकिन इसके साथ-साथ स्वच्छ हवा और स्वस्थ प्रकृति भी स्वस्थ जीवन की पहली आवश्यकता है। विश्व के सभी देश कॉप सम्मेलन में एकत्र होते हैं, लेकिन इसके ठोस परिणाम सामने नहीं आते। यदि सभी देश एकजुट होकर कदम नहीं उठाएंगे, तो हमें भविष्य की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। अगर हम इन चुनौतियों को शीघ्र समझ लें, तो आने वाली पीढ़ियों का भविष्य बेहतर होगा।
मुनीश कुमार, रेवाड़ी
टिकाऊ हों विकल्प
विश्वभर में जलवायु परिवर्तन के कारण चक्रवात, सूखा और बाढ़ जैसी आपदाएं बढ़ रही हैं। इसका प्रमुख कारण ग्लोबल वार्मिंग और जीवाश्म ईंधनों पर अत्यधिक निर्भरता है। परिवहन, ऊर्जा उत्पादन और उद्योगों में कोयले व तेल के उपयोग से प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। इस संकट से निपटने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा, विद्युत वाहनों और प्राकृतिक गैस को बढ़ावा देना आवश्यक है। विकास की दौड़ में वनों का विनाश भविष्य के लिए घातक सिद्ध होगा। जलवायु संकट से बचाव तभी संभव है जब सभी देश एकजुट होकर पर्यावरण संरक्षण को अपनी प्राथमिकता बनाएं।
देवी दयाल दिसोदिया, फरीदाबाद
नवीकरणीय ऊर्जा अपनाएं
जलवायु संकट आज विश्व के अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा बन चुका है। विकसित और विकासशील सभी देश चक्रवातों, बाढ़ और सूखे जैसी आपदाओं का सामना कर रहे हैं। इससे जनहानि, विस्थापन, आर्थिक नुकसान और खाद्य सुरक्षा पर गहरा असर पड़ रहा है, जो भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश के लिए विशेष चुनौती है। वैज्ञानिक लगातार चेतावनी दे रहे हैं, फिर भी वैश्विक स्तर पर जिम्मेदारी से बचा जा रहा है। विकास आवश्यक है, लेकिन जंगलों के विनाश की कीमत पर नहीं। अब समय आ गया है कि नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाया जाए और विकसित देश मानव हित में अपनी भूमिका ईमानदारी से निभाएं।
मनजीत कौर, गुरुग्राम
पुरस्कृत पत्र
वैश्विक न्याय जरूरी
जलवायु संकट आज पूरी मानवता के लिए गंभीर चुनौती बन चुका है। इसके लिए सबसे अधिक जिम्मेदार विकसित देश हैं, जिन्होंने औद्योगीकरण के दौरान भारी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन किया। आज वही देश अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारी से बचते नजर आते हैं। जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों का सबसे अधिक सामना विकासशील और गरीब देशों को करना पड़ रहा है, जबकि उनका योगदान अपेक्षाकृत कम है। ऐसी स्थिति में विकसित देशों का दायित्व है कि वे अपने कार्बन उत्सर्जन में ठोस कमी करें तथा विकासशील देशों को जलवायु अनुकूलन और प्रभावों से निपटने के लिए वित्तीय व तकनीकी सहायता उपलब्ध कराएं। बिना वैश्विक न्याय के जलवायु समाधान संभव नहीं है।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली

