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कैसे भरें पदकों की झोली

जन संसद
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जन संसद की राय है कि यहां खेलों को राष्ट्रीय गौरव से जोड़कर नहीं देखा जाता। वहीं खेल प्राधिकरणों में राजनीति हावी है। प्रतिबद्धता और निरंतर सुधार की भावना ही खेलों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऊंचाइयों तक पहुंचा सकती है।

पुरस्कृत पत्र

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समृद्ध खेल संस्कृति

ओलंपिक में निराशाजनक प्रदर्शन के लिए अकेले खिलाड़ी दोषी नहीं हैं। तटस्थ होकर मनन करने पर इस स्थिति के कई स्पष्ट कारक सामने आएंगे। हमारे यहां खेलों को राष्ट्रीय गौरव से जोड़कर नहीं देखा जाता। किशोरवय में खेल प्रतिभाओं की पहचान, प्रशिक्षण और प्रोत्साहन संस्कृति का सर्वथा अभाव है। खेल प्राधिकरणों में राजनीति हावी है। खेल नर्सरियों, स्टेडियमों और खेल पार्कों की संख्या कम है। डेढ़ अरब की आबादी के बावजूद मात्र सोलह स्पर्धाओं में खिलाड़ियों को उतारने वाला देश पदकों की झोली भर कर लाने की सोच रहा है, क्या यह व्यावहारिक है? पदकों से झोली भरकर लाने के लिए विविध स्पर्धाओं के लिए खिलाड़ी तैयार किए जाएं। खेलों और अन्य शारीरिक गतिविधियों के जरिए शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का निरंतर ध्यान रखा जाए।

ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल

आर्थिक सुरक्षा मिले

ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों द्वारा पांच ब्रॉन्ज और एक रजत पदक जीतना एक उपलब्धि है। दरअसल, महत्वपूर्ण जीत का श्रेय देश के भौगोलिक हालात, जलवायु, खानपान और रहन-सहन पर भी निर्भर है। खेलों को राजनीति से दूर रखते हुए अनुभवी कोचों से खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दिलवाया जाना चाहिए। नि:शुल्क पौष्टिक खुराक की व्यवस्था की जाए और पदक वाले खिलाड़ियों की उच्च पदों पर नियुक्ति की जानी चाहिए। इसके अलावा, खेल सुविधाओं को सुदृढ़ करना और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में नियमित भागीदारी सुनिश्चित करना आवश्यक है। स्कूल स्तर से ही खेल शिक्षा पर जोर दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही, खिलाड़ियों के लिए एक मजबूत आर्थिक सुरक्षा तंत्र विकसित करें।

अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल

तन-मन से मजबूत हों

खेल शारीरिक क्षमता वाले हों या बुद्धि, कौशल और विवेक वाले, खिलाड़ियों को खेलने के लिए आधारभूत संरचना, आहार की पर्याप्त सुविधाएं व प्रशिक्षण मिलना चाहिए। विश्वस्तर पर खिलाड़ियों से स्पर्धा के लिए खेल अभ्यास पर केंद्रित करने के अलावा हमारे खिलाड़ियों को मानसिक दृढ़ता और‌ वहां के खानपान, जलवायु और खेल रणनीति का भलीभांति पता होना चाहिए। साथ ही, खिलाड़ियों को मानसिक और भावनात्मक समर्थन भी प्राप्त होना चाहिए, ताकि वे तनाव और दबाव का सामना कर सकें। खेल के प्रति प्रतिबद्धता और निरंतर सुधार की भावना ही उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचा सकती है।

अभिलाषा गुप्ता, मोहाली

उम्मीदों पर खरे नहीं

गत दिनों पेरिस में संपन्न हुए ओलंपिक खेलों में हमारे देश का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। केवल बुद्धि, विवेक और कौशल से खेले गए खेल ही नहीं, शारीरिक बल से खेले जाने वाले खेल भी पदक दिला सकते हैं। खेल संघों में व्याप्त राजनीति, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद न सिर्फ खिलाड़ियों को बल्कि आम जनमानस को भी निराश करते हैं। सरकार द्वारा पदकों के बदले दी जा रही पुरस्कार राशि और नौकरियों की घोषणाओं के बावजूद यदि खिलाड़ियों का यह हश्र होता है तो यह चिंताजनक है। खिलाड़ियों की मेहनत और त्याग को देखकर कहा जा सकता है कि उनमें खेल भावना और राष्ट्र भावना की कमी नहीं है, कमी है तो भारतीय खेल व्यवस्था में।

सुरेन्द्र सिंह, महम

प्रतिभाओं को निखारें

पेरिस ओलंपिक में देश के निशानेबाजों ने मेडल जीत कर देश को गौरवान्वित किया। ओलंपिक में पदकों की झोली भरने के लिए ज़रूरी है कि हम बुद्धि, विवेक और कौशल से पदक दिलाने वाले खेलों के साथ-साथ शारीरिक श्रम के खेलों की ओर भी गंभीरतापूर्वक ध्यान दें। देश में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है। इन प्रतिभाओं को कैसे निखारा जाए, इस बात के लिए प्रयत्न किये जाने चाहिए। सभी प्रकार के खेलों के खिलाड़ियों को उचित कोचिंग दी जाए तथा इन खिलाड़ियों को प्रतिस्पर्धा के लिए दूसरे देशों में भी भेजा जाए।

सतीश शर्मा, माजरा, कैथल

संतुलित हो दृष्टिकोण

देश को ऐसे खेलों को प्रोत्साहित करना चाहिए जिनमें बुद्धि, विवेक और कौशल का महत्व हो, बजाय इसके कि हम केवल शारीरिक श्रम पर निर्भर रहें। विकसित देशों के खिलाड़ी फिटनेस के अलावा तकनीकी और मानसिक कौशल पर भी जोर देते हैं, जिससे वे पदकों की झोली भर लेते हैं। ओलंपिक एक ऐसा मंच है जो हमारे खिलाड़ियों को विश्व पटल पर भारत की प्रतिष्ठा को बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है। जो खिलाड़ी मैदान में अपना सर्वोत्तम प्रदर्शन करता है, वह न केवल व्यक्तिगत उपलब्धि हासिल करता है बल्कि देश का गौरव भी बढ़ाता है। इसलिए, खेलों के चयन और वित्तीय समर्थन में एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है।

कु. रिया पुहाल, पानीपत

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