‘चोरी और सीनाजोरी’ का भद्दा उदाहरण कोई पेश कर रहा है तो वह चीन से अच्छा दूसरा कोई राष्ट्र नहीं हो सकता। पहले ही हांगकांग में लोकतंत्र की हत्या कर उनकी आजादी को छीन लिया है, अब वह ताइवान मे लोकतंत्र का गला घोटने व आजादी को छीनने पर आतुर है। उसके नापाक इरादों को चुनौती देने का काम न केवल भारत ने किया है, बल्कि ताइवान जैसा छोटा देश भी उसकी नाक में मिर्ची डालने से नहीं चूक रहा है। सभी देशों व संयुक्त राष्ट्र संघ को ताइवान, हांगकांग जैसे देशों की स्वतंत्रता संप्रभुता व लोकतंत्र को बरकरार रखने के लिए चीन को ‘ईंट का जवाब, पत्थर से देना होगा!’
हेमा हरि उपाध्याय, खाचरोद, उज्जैन
संकीर्ण राजनीति
13 अक्तूबर के दैनिक ट्रिब्यून में क्षमा शर्मा का ‘हमारा चुना हुआ शोर और चुप्पियां’ लेख कश्मीर में हुई हिंसक वारदातों का विश्लेषण करने वाला था। आवाम के चुने गए नेताओं का नैतिक पतन इस कदर हो जाता है कि जीवन मूल्य उनकी दृष्टि में मात्र चुनावी विजय तक सीमित हो जाते हैं। अल्पसंख्यकों की हत्याएं सारे राष्ट्र की गरिमा को चोट हैं। वतन में सुख-शांति, सहानुभूति उनके लिए चिंता का विषय नहीं है। धर्म जात पात, वोट की राजनीति से ऊपर उठकर लोकहित की चाहत सच्चे मायनों में लोकतंत्र के सभ्य कुशल शासनाधीशों की पहचान है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
कसौटी पर साख
12 अक्तूबर का सम्पादकीय, ‘टाटा के हुए महाराजा’ में दैनिक ट्रिब्यून ने सही आकलन किया है कि घाटे में चल रही एयर इंडिया को मुनाफे वाली कंपनी में बदलना टाटा समूह की साख के लिए एक कसौटी भी है। ‘देर आयद दुरुस्त आयद’ टाटा समूह ने एयर इंडिया के मालिकाना हक़ प्राप्त करने के लिए अठारह हजार करोड़ रुपये दांव पर लगाकर इंडियन एयरलाइंस की डूबती नैया को बचाने का सराहनीय प्रयास किया है।
युगल किशोर शर्मा, खाम्बी, फरीदाबाद