आर्थिकी का ध्यान
इस महामारी ने हमें ये सबक दिया है कि स्वास्थ्य सुविधा प्राथमिक हो। 130 करोड़ से ज्यादा की आबादी का देश सिर्फ एक छोटे से वायरस के कारण थम जाये, यह न हमारे लिए उचित है और न ही पूरे विश्व के लिए। यही दृष्टि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के इस बजट में नजर आती है। भारत सरकार ने स्वास्थ्य के प्रति इस बजट में जो प्रावधान किया है, वह सराहनीय है। आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना के अंतर्गत 64,180 करोड़ आवंटित करके स्वस्थ भारत अभियान को बढ़ावा देने के साथ-साथ यह लगता है कि अब किसी भी तरह के स्वास्थ्य संकट का सामना करने के लिए भारत पूरी तरह तैयार रहेगा। यह बजट स्वास्थ्य एवं अर्थव्यवस्था के लिए बूस्टर डोज है।
दिव्येश चोवटिया, गुजरात
निराशाजनक बजट
कोरोना की प्रतिकूल परिस्थितियों में -23.9 तक गिर चुकी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में केंद्रीय बजट एक चुनौती रहा। हालांकि कृषि विकास को प्राथमिकता देने का प्रयास हुआ, लेकिन विगत बजट से कम आवंटन से अपेक्षित लक्ष्य प्राप्ति दूर की कौड़ी है। सामान्य चिकित्सा सेवाओं की दशा में विशेष प्रगति की अपेक्षा बेमानी है। राष्ट्र का आयकरदाता पूर्णत: निराश रहा। बजट में महंगाई रोकने और बेरोजगारी घटाने का प्रयास प्रतिबिंबित नहीं हुआ। सरकार द्वारा अनेक सार्वजनिक प्रतिष्ठानों और उपक्रमों की बिक्री और निजीकरण का प्रयास दुर्भाग्यपूर्ण है।
सुखबीर तंवर, गढ़ी नत्थे खां, गुरुग्राम
कसौटी पर खरा नहीं
सरकार ने इस बजट में किसान हितकारी, स्वास्थ्य सेवी, आत्मनिर्भर भारत की बात कही है लेकिन अगर ध्यान से देखा जाए तो कोरोना काल के बाद देश में जो मंदी और बेकारी का आलम था, पेट्रोलियम पदार्थों में निरंतर मूल्य वृद्धि हाक रही है, उसके चलत घरेलू बजट में कोई राहत न देने से बजट ने कर्मचारी व व्यापारी वर्ग को निराश ही किया है। हर साल की तरह इस साल भी कर्मचारियों ने आयकर में राहत न मिलने के कारण सरकार को कोसा है। देश के सुरक्षा व्यय में भी कोई वृद्धि नहीं की गई है। इस तरह 2021-22 के बजट को निराशाजनक ही कहा जाएगा।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
कुछ अच्छा भी
जहां देश कोरोना वायरस के संकट से जूझ रहा है, उसी दौरान वित्त मंत्री बजट में आंकड़ों के हिसाब से देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का प्रयास कर रही थी। देश की अर्थव्यवस्था पटरी से उतरी हुई है। इस वर्ष का बजट आम आदमी को राहत देने वाला नहीं है। इसकी सीधी मार मध्य वर्ग और वेतनभोगियों पर पड़ने वाली है। यह पहला ऐसा बजट है जो गिरावट वाली जीडीपी के दौर में पेश किया गया। वहीं दूसरी ओर बजट में 75 वर्ष से ऊपर के नागरिकों को आयकर रिटर्न दाखिल करने से मुक्त कर दिया गया है। यह बहुत ही सराहनीय है। बजट में कृषि, स्वास्थ्य और विनिर्माण के क्षेत्र में सुधार पर जोर दिया गया है। स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए बजट स्वागत योग्य है।
संदीप कुमार वत्स, चंडीगढ़
कथनी-करनी का फर्क
नये बजट में कृषि विकास तथा स्वास्थ्य सेवाओं में अधिक व्यय करने की बात कही गई है, किन्तु सरकारी नीतियों को लेकर आज सरकार के प्रति आम जनमानस में विश्वास का घोर अभाव है। किसान को उसकी उपज का उचित मूल्य समय पर मिल जाए, इसी में कृषि विकास का फंडा निहित है। केन्द्र द्वारा 20 से अधिक फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने के बावजूद कृषकों का शोषण हो रहा है। इसी भांति सरकारी चिकित्सा व्यवस्था का हाल है। जब तक सरकार पब्लिक सेक्टर को मजबूत नहीं करेगी तब तक केवल सरकारी आंकड़ों पर यकीन करना जनता के लिए बेमानी है।
सुरेन्द्र सिंह ‘बागी’, महम
निराश किया
किसान संगठन और मध्य वर्ग ने बजट की प्रशंसा नहीं की है। इसी तरह आयकर की स्लेब अपरिवर्तित रखने से आयकरदाता खुश नही हैं, क्योंकि महंगाई में हो रही वृद्धि से बचत में कमी होना स्वाभाविक है। किसान आंदोलन के मद्देनजर यदि उनके हित में बजट होता तो संभव है कि आंदोलन ठंडा हो जाता। कहने को तो स्वास्थ्य बजट में 135 पर्सेंट का इजाफा हुआ है पर लोगों को इसका लाभ मिलेगा, इसमें संशय है। लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए दोषपूर्ण योजनाएं बंद करनी होंगी जिसके लिए कोई प्रावधान नहीं किए गए। कहना होगा कि बजट सरकारी महत्वाकांक्षा तथा जनाकांक्षा के बीच झूलता परिलक्षित हो रहा है।
बीएल शर्मा ‘अकिंचन’, उज्जैन, म.प्र.
पुरस्कृत पत्र
राहत नहीं
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए प्रस्तुत बजट में सरकार ने स्वास्थ्य बजट में अप्रत्याशित वृद्धि की। कृषि क्षेत्र को मजबूती देने और किसानों की आय बढ़ाने के लिए भी कई कदम इस बजट में उठाए गए हैं मगर 2021 -22 का बजट आम आदमी को राहत देने वाला नहीं है। इसकी सीधी मार मध्य वर्ग और वेतन भोगियों पर पड़ने वाली है। यह बजट मौजूदा चुनौतियों से मुकाबले के लिए नयी सोच नहीं देता। कोरोना काल के बाद उपजी बेरोजगारी से मुकाबले के मामले में बचट निराश करता है। सरकार को रोजगार बढ़ाने पर भी जोर देना चाहिए था।
पूनम कश्यप, बहादुरगढ़