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घोषणा पत्रों में वादों की जवाबदेही

कानून बने हर वो चीज़ जो मतदाताओं के विवेक को प्रभावित कर सकती है उस पर चुनाव अचार-संहिता सहित कई बंदिशें हैं। यहां तक कि मतदान से कुछ घंटे पहले चुनाव प्रचार भी रुक जाता है ताकि मतदाता सोच-विचार के...
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कानून बने

हर वो चीज़ जो मतदाताओं के विवेक को प्रभावित कर सकती है उस पर चुनाव अचार-संहिता सहित कई बंदिशें हैं। यहां तक कि मतदान से कुछ घंटे पहले चुनाव प्रचार भी रुक जाता है ताकि मतदाता सोच-विचार के मतदान कर सके। ऐसे में निरर्थक वादों से मतदाताओं को बरगलाने वाले चुनावी घोषणा पत्रों को बनाने के लिए भी अचार-संहिता होनी चाहिए। घोषणा पत्रों को आगामी सरकार के कार्यकलापों का रोड मैप मानते हुए उस पर अमल करना कानूनन बाध्य हो। जो दल घोषणा पत्र के पचास फीसदी से ज्यादा वादों को पूरा करने में असफल रहे उसकी मान्यता रद्द कर के चुनाव चिह्न जब्त कर लिया जाये।

बृजेश माथुर, गाजियाबाद, उ.प्र.

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परिणाम तक सीमित

चुनावी बाजार में राजनीतिक दलों द्वारा किए गए वादों की गारंटी-वारंटी चुनाव परिणाम तक सीमित होती है। जीतने वाले उम्मीदवार के घोषणा पत्र की वैधता जीतने के बाद समाप्त हो जाती है। जनता उसके लिए आया राम गया राम वाली बात होती है। धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की गरिमा के मद्देनजर, जनहित को प्रमुखता देनी चाहिए। चुनाव आयोग को चाहिए कि उनके घोषणा पत्र अपने पास जमा करवाएं ताकि भाई-भतीजावाद वाले उम्मीदवार को जनता से वादाखिलाफी करने के आरोप में अगले चुनाव में अयोग्य करार देना चाहिए।

अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल

सिर्फ इंतजार

चुनावों के निकट आते ही हर राजनीतिक पार्टियां अपने घोषणा पत्र में जनता से लुभावने वादे कर सत्ता हासिल करने का प्रयास करती हैं। कुछ वादे तो अकल्पनीय, अप्रायोगिक और असंभव रहते हैं लेकिन भोली जनता ये नहीं देखती कि ये पूरे कैसे होंगे तथा पूरे नहीं होने पर कैसे जीतने वाली पार्टी को जवाबदेह बनाएंगे। कानून भी इस बारे में मौन है, ऐसा कोई प्रावधान भी नहीं है। यदि वादे पूरे हो जाएं तो बेहतर वरना अगले चुनाव का इंतजार और सिर्फ इंतजार ही रह जाता है।

भगवानदास छारिया, इंदौर, म.प्र.

कानूनी अधिकार मिले

चुनाव के समय मंचों से जो घोषणाएं होती हैं, उनका कोई लेखा-जोखा नहीं होता। लेकिन राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों में जो घोषणाएं की जाती हैं उनका हिसाब-किताब अवश्य होता है। अब आईटी और सोशल मीडिया का युग है। जनता अत्यंत जागरूक हो चुकी है। नेता जब वोट मांगने निकलते हैं तो उनसे सवाल जवाब होते हैं। वोटों की महत्वाकांक्षा से की गई घोषणाएं कभी-कभी नेताओं के गले की फांस भी बन जाती हैं। संकल्प पत्र में किए गए तमाम वादों को पूरा करवाने के लिए जनता को कानूनी अधिकार मिलना चाहिए ताकि सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा वादे पूरे न करने पर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जा सके।

सुरेन्द्र सिंह 'बागी' , महम

जवाबदेही तय हो

जब भी देश में चुनाव होते हैं तो सभी राजनीतिक दल अपने-अपने घोषणा पत्र के माध्यम से जनता के साथ अनेक वादे करते हैं। सत्ता में आने के बाद राजनीतिक दलों की कोई जवाबदेही तय नहीं की जाती। अतः अब समय आ गया है कि देश की जनता और अधिक जागरूक हो तथा घोषणा पत्रों की जवाबदेही पर गौर करे। इसके साथ ही देश में एक ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिसके द्वारा राजनीतिक दलों के चुनावी घोषाणाओं की जवाबदेही तय की जा सके। जनता के पास पार्टी द्वारा घोषणाएं पूरा न होने पर कानूनी प्रावधान हो।

सतीश शर्मा माजरा, कैथल

पुरस्कृत पत्र

अनिवार्य हो वादे पूरे करना

चुनावों की घोषणा होते ही विभिन्न राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने के लिए वादे इत्यादि करते हैं। चुनाव जीतने के बाद सत्तापक्ष इन सब बातों को भूल जाता है और लोग अपने आप को ठगा‌-सा महसूस करते हैं। जरूरी है कि चुनावों से पहले सभी राजनीतिक दल अपने-अपने घोषणा पत्र चुनाव आयोग के पास जमा करायें। चुनाव जीतने वाले दल के लिए अपने घोषणा पत्र के 90 प्रतिशत वादे पूरे करना अनिवार्य कर देना चाहिए। जो दल घोषणा पत्र के मुताबिक वादे पूरे नहीं करता उसे चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहरा देना चाहिए।

शामलाल कौशल, रोहतक

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