जन संसद की राय है कि तीर्थ स्थलों पर होने वाली दुर्घटनाएं जहां प्रबंधन की चूक की देन है, वहीं श्रद्धालु भी संयम व अनुशासन का परिचय नहीं देते। लोगों में येन-केन-प्रकारेण जल्दी दर्शन करने की होड़ होती है। जल्दबाजी में ही भगदड़ मचने से दुर्घटनाएं होती हैं।
सबक लें
माता वैष्णो के परिसर में मची भगदड़ में 12 श्रद्धालुओं की मृत्यु तथा लगभग 15 श्रद्धालुओं का घायल होना चिंता का विषय है। शासन-प्रशासन की मुस्तैदी से राहत-बचाव, दर्शनार्थियों को धैर्य से दीर्घा में प्रतीक्षारत होने की मिसाल पेश करनी चाहिए। प्रबंधन समिति ट्रस्ट को सोशल डिस्टेंसिंग व शांति-सुरक्षा नियमों का पालन करने की जिम्मेवारी लेनी चाहिए ताकि भविष्य में जानलेवा हादसों की पुनरावृत्ति न हो। दुर्घटना से सबक लेते हुए व्यवस्था सुरक्षित बनानी चाहिए। दर्शनों के लिए ऑनलाइन बुकिंग सेवा प्रारंभ करते हुए श्रद्धालुओं की संख्या भी निश्चित कर देनी चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
प्रबंधन की चूक
तीर्थों पर होने वाली दुर्घटनाओं के प्रति जितनी जवाबदेही शासन व प्रशासन की बनती है, उतनी ही हमारी भी बनती है। वैष्णो देवी में भीड़ की भगदड़ के कारण श्रद्धालुओं की मौत अत्यंत दुखदायी है। कोरोना महामारी के संकट के दौरान वहां भारी भीड़ का जमा हो जाना प्रबंध तंत्र की विफलता ही कहा जायेगा। ऐसी दुर्घटनाएं दोबारा न हों, इसके लिए जरूरी है कि प्रबंध-तंत्र को मजबूत किया जाए। इसके साथ-साथ तीर्थ-स्थलों पर जाने वाले सभी श्रद्धालु भी संयम व अनुशासन का परिचय दें तथा प्रबंध-तंत्र का सहयोग करें। दर्शन के लिए जल्दबाजी नहीं, बल्कि प्रतीक्षा करें।
सतीश शर्मा, माजरा, कैथल
सतर्कता जरूरी
वैष्णो देवी मंदिर परिसर में दुर्घटना का कारण नि:संदेह सुरक्षा प्रबंधन में कमी रहा। पिछले लगभग दो सालों से कोरोना महामारी के कारण भी लोगों ने मंदिरों में दर्शन नहीं किए, नया साल लोग भगवान के दर्शन कर खुशियों के साथ मनाना चाहते हैं, लेकिन उस अनुरूप व्यवस्थाएं नहीं की जा सकीं। यदि प्रबंधन अच्छा हो, हमारा व्यवहार मर्यादित व संयमित हो तो कोई कारण नहीं कि हम ऐसी दुर्घटनाओं को न टाल सकें। हमारी सतर्कता, हमारा संयम ऐसी दुर्घटनाओं के मामले में ढाल बन सकते हैं।
सुनील कुमार महला, पटियाला, पंजाब
धैर्य और संयम
वैष्णो देवी में भीड़ की भगदड़ से श्रद्धालुओं की मौत दुखद है लेकिन इससे अब तक कोई सबक नहीं लिया गया। कुछ दिनों के लिए तो व्यवस्था दुरुस्त की जाती है परन्तु फिर वही ढाक के तीन पात वाली बात हो जाती है। प्रश्न उठता है कि कोरोना काल में इतनी भीड़? अनुमति क्यों दी गई? प्रशासन कहां था? एक बात और देखने में आती है कि हम स्वयं भी सारी व्यवस्था को तोड़ देते हैं और भगदड़ मच जाती है। हमें चाहिए कि व्यवस्था के अनुरूप अपनी बारी का शांति से इंतजार करें। धैर्य बनाए रखें। संयम का परिचय दें। शासन-प्रशासन का सहयोग करें।
सत्यप्रकाश गुप्ता, खलीलपुर, गुरुग्राम
ताकि पुनरावृत्ति न हो
आपदा प्रबंधन और भीड़ नियंत्रण को लेकर हम लोग अब तक जागरूक नहीं हुए हैं। संयम और अनुशासन आज भी भीड़ के लिए दूर की कौड़ी है। प्रश्न वैष्णो देवी प्रकरण का है तो यह सरासर लापरवाही का प्रतिफल है। आखिर क्या कारण है कि श्रद्धालुओं के बीच झगड़े के कारण बिगड़ी स्थिति को समय रहते नहीं संभाला? क्या माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड को अनुमान नहीं था कि नववर्ष में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आयेंगे? कुल 25 हजार की तय सीमा से कहीं ज्यादा लोगों के लिए वही तैयारी एक आपराधिक कृत्य से कम नहीं है। वक्त का तकाजा है कि हम सबक लें ताकि ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति न हो।
हर्षवर्द्धन, पटना, बिहार
मानसिकता बदलें
बीते दिनों वैष्णो देवी के मंदिर में भगदड़ मचने से हुई 12 लोगों की मौत दुखद घटना है। आखिर ऐसा क्यों हुआ? यह समस्या बार-बार क्यों आती है? इन सवालों का हल ढूंढ़ना जरूरी है। कुछ लोग तीर्थ यात्राओं में धनबल का उपयोग कर स्वयं को श्रेष्ठ साबित करना चाहते हैं तो कुछ पहले दर्शन करना चाहते हैं। इससे आम जन में आक्रोश पनपता है और यही आक्रोश क्रोध बनकर अव्यवस्था का रूप ले लेता है। साथ ही प्रशासनिक ढील के कारण भगदड़ जैसे हालात बनते हैं। हमें मानसिकता बदलने की जरूरत है। प्रशासनिक तंत्र को भी सुदृढ़ करना होगा।
नितेश मंडवारिया, नीमच, म.प्र.
पुरस्कृत पत्र
गिरेबान में झांकें
विडंबना है कि हम ऐसा तंत्र विकसित नहीं कर पाए कि किसी सीमित व संवेदनशील भूभाग पर स्थित धार्मिक स्थलों पर भी अचानक भीड़ बढ़ जाने पर अनुशासित व्यवस्था कर पाएं। मगर सरकार को कोसते समय अपने गिरेबान में झांक कर भी देख लेना चाहिए कि समस्या के निदान में हमारी भी कोई जिम्मेदारी बनती है। आस्था के केंद्रों पर हर नागरिक का कर्तव्य बनता है कि वह शालीनता, संयम व सहनशीलता का व्यवहार करे। नैतिकता के धरातल पर यदि प्रत्येक व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी समझे तो ऐसे हादसे की रोकथाम की जा सकती है।
पूनम कश्यप, बहादुरगढ़