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विज को डूबते अम्बाला से ज्यादा अपनी राजनीति की चिंता : चित्रा सरवारा

चित्रा सरवारा ने आज हरियाणा के कैबिनेट मंत्री व विधायक अनिल विज पर करारा पलटवार करते हुए कहा कि उनका हर भाषण अब अम्बाला को डूबने से बचाने का नहीं बल्कि अपनी डूबती राजनीति को बचाने का बन चुका है।...
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चित्रा सरवारा ने आज हरियाणा के कैबिनेट मंत्री व विधायक अनिल विज पर करारा पलटवार करते हुए कहा कि उनका हर भाषण अब अम्बाला को डूबने से बचाने का नहीं बल्कि अपनी डूबती राजनीति को बचाने का बन चुका है।

‘पानी कहां से आया, कैसे आया, कैसे निकलेगा— यह सभी बातें पीछे रह गई हैं,’ मंत्री जी का ध्यान अब इस बात पर सिमट गया है कि कौन किससे मिलता है, कौन किसके साथ मुख्यमंत्री से मिलने गया, किसने किसके साथ फ़ोटो कराई, किसने चश्मा पहना, किसने कौन सा दुपट्टा ओढ़ा।

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चित्रा ने कहा कि अगर मंत्री जी अपने फेसबुक हैंडल से लिखकर लोगों से पूछते— ‘बताओ किसको कहां किस वक्त मदद की जरूरत है, मैं आपकी मदद करता हूं’— तो जनता और हम उनका स्वागत करते और मदद भी करते। लेकिन आज उनकी चिंता यह है कि अम्बाला छावनी में ‘भाजपा एक है या दो, किसको ऊपर वालों का आशीर्वाद प्राप्त है।’

चित्रा ने मंत्री को चुनौती देते हुए कहा कि 35 साल राज करने वाले अपनी नाकामियों का ठीकरा दूसरों पर न फोड़ें।’ चित्रा ने अनिल विज को याद दिलाया 35 साल अम्बाला ने आपको दिए और पिछले 15 साल वे लगातार विधायक व मंत्री भी रहे हैं।

‘15 साल में होम मिनिस्ट्री और 3000 करोड़ के बावजूद अंबाला की दुर्व्यवस्था ज्यों की त्यों क्यों बनी हुई है?’ टांगरी के बंधे को लेकर चित्रा ने ठोस तथ्यों के साथ सवाल उठाए— उन्होंने बताया कि जिस जमीन पर बंधा बनना था वह भूमि 1986 में ही अधिग्रहित कर ली गई थी, बावजूद इसके वह बंधा आज तक पूरा नहीं हुआ। चित्रा ने मांग की कि अनिल विज स्वयं इसकी जांच करें कि बंधे का काम क्यों पूरा नहीं हुआ।

चित्रा ने कहा कि कागज़ों के मुताबिक जिन किसानों की जमीन अधिग्रहित हुई थी उनमें रंजीत सिंह भी एक नाम है, जो अंबाला भाजपा ग्रामीण प्रकोष्ठ के अध्यक्ष हैं और इसी स्थान पर फैक्टरी व टावर से वह काम चलाते हैं। उन्होंने अनुरोध किया कि इस जमीन और प्रक्रिया की निष्पक्ष जांच हो और जनता को पूरी जानकारी दी जाए।

चित्रा ने यह भी कहा कि जहां पक्का बंधा बनना था वहां सिर्फ कच्चा बंधा बनाकर काम रोका गया, इसे आगे तक नहीं ले जाया गया— यही वह कारण है जिससे टांगरी के पानी का नियंत्रण अभी तक संभव नहीं हो पाया।

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