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मैहलावाली के हर युवा के खून में सेना में शामिल होने का जुनून

यमुनानगर जिले के गांव से 400 से ज्यादा युवा हो चुके हैं सेना में भर्ती
यमुनानगर जिले का मैहलावाली गांव का गेट द्वार। -हप्र
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सुरेंद्र मेहता/ हप्र

यमुनानगर,12 मई

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यमुनानगर जिले का मैहलावाली गांव और इस गांव के हर युवा के खून के कतरे कतरे में सेना में शामिल होने का जुनून। यहां के लोग भारत-पाकिस्तान युद्धविराम को गलत ठहरा रहे हैं। गांव से 1960 से अब तक 400 से ज्यादा युवा सेना में अलग-अलग और बड़े पदों पर अपनी देशभक्ति का लोहा मनवा चुके हैं। गांव के सरपंच धर्मपाल शर्मा ने बताया कि मैहलावाली गांव की मिट्टी में देशभक्ति की एक अलग पहचान है। इस गांव से युवा कर्नल, सूबेदार, कैप्टन जैसे अहम और बड़े पदों पर अपनी पहचान छोड़ चुके हैं।

1971 की लड़ाई में शामिल हुए गांव के ही गुरजीत सिंह ने कहा जब भारत और पाकिस्तान में 1971 की लड़ाई लड़ी गई थी, उस समय में उड़ी सेक्टर में तोपखाना में अपनी सेवायें दे रहा था। आज और 1971 की लड़ाई में काफी अंतर है, क्योंकि उस जमाने की टेक्नोलॉजी और आज की तकनीक में जमीन आसमान का फर्क है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत को अमेरिका के कहने पर युद्ध को नहीं रोकना चाहिए था, बल्कि अब पाकिस्तान से बदला लेने का दोबारा से मौका था।

गांव के ही रमेश शर्मा ने कहा भारत के लोग और भारतीय सेना 1971 से के बाद अब पाकिस्तान से बदला लेने का मौका देख रही थी। 4 दिन से भारतीय सेना ने पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया। उन्होंने अभी कहा कि जब भारत को लड़ाई खत्म कर विजयी बनना था, तब बीच में ही लड़ाई को रोक दिया, यह गलत है। सैनिक लखविंदर सिंह की पत्नी सुरेंद्र कौर ने कहा इस गांव का हर युवा पहले फौज में जाने के लिए बेताब रहता था। जबसे सरकार 4 साल की अग्निवीर योजना लेकर आई है, उससे युवा का देश के प्रति जज्बा कम हुआ है और वह विदेश की तरफ जा रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जब भारतीय सेना लड़ रही थी तो हमें अपने देश के सैनिकों पर गर्व था कि वह जीत कर आएंगे, और ऐसा हुआ भी।

गांव के ही जसविंदर सिंह ने बताया कि मेरे दादा, पिता आर्मी में अपनी सेवा दे चुके हैं और अब दोनों भाई भी सेना में ही भर्ती हैं। उन्होंने कहा कि जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हो रहा था तो हमें डर तो जरूर था, लेकिन अपने देश के सैनिकों पूरा भरोसा था कि वह जीत कर आएंगे।

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