जैन पर्युषण पर्व के तीसरे दिन गूंजी गज सुकुमाल की अमर कथा
पर्वराज पर्युषण का तीसरा दिन श्रद्धा और भक्ति से सराबोर रहा। युवा प्रेरक आगम ज्ञाता अरुण चंद्र महाराज ने गज सुकुमाल की मार्मिक गाथा सुनाई, जिसे सुनकर वातावरण भावनाओं और संयम की प्रेरणा से भर गया। कथा के अनुसार, माता देवकी ने श्रीकृष्ण से अपने लियॆ छोटे पुत्र की इच्छा प्रकट की थी। तब श्रीकृष्ण महाराज ने पौषध तेले की तपस्या करके उपस्थित हरी गनेशी देव से अपनी मां की इच्छा जाहिर की। देव ने कहा को आपको छोटा भाई तो मिलेगा परंतु वह बड़ा होकर तीर्थंकर भगवान श्री अरिष्टनेमि के चरणों में दीक्षित होकर मुनि बनेगा।
कृष्ण ने महलों में आकर अपनी मां को सारा वृतांत सुनाया। देवकी महारानी यह समाचार सुनकर बेहद खुश हुईं। वचनानुसार देवकी ने एक सुकुमाल और सुंदर पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम रखा गया गज सुकुमाल। मां ने उसे पलकों पर बैठाकर पाला, परंतु मन में सदा यह भय रहा कि कहीं पुत्र संन्यास न ले ले। इसीलिये उसे महलों से बाहर नहीं जाने दिया। समय आने पर गज सुकुमाल ने भगवान अरिष्टनेमि के दर्शन को जाते हुये सोमिल ब्राह्मण की बेहद सुंदर कन्या के साथ अपने भाई का रिश्ता तय कर दिया। मन में यह भाव था कि इससे यह दीक्षा लेने से शायद मना कर दे। उन्होंने भगवान के दर्शन किये परंतु वहीं हुआ जिसका डर था। संयम जीवन का रस देखकर गज सुकुमल ने दीक्षा लेने का संकल्प जताया। भगवान नेमिनाथ के चरणों में दीक्षित होकर गज सुकुमाल ने भगवान से आज्ञा लेकर उसी दिन श्मशान में तपस्या की। सोमिल ब्राह्मण ने उन्हें श्मशान में तपस्या करते हुये देख लिया और तब उसका पूर्व भव का बेर जागृत हो गया।