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फ्रांस से 3 महीने बाद आई युवक की लाश

सुभाष पौलस्त्य/निस पिहोवा, 4 मई तीन महीने बाद फ्रांस से युवक की लाश उसके घर पर पिहोवा पहुंची। पूजा कॉलोनी निवासी युवक सुशील कुमार की 3 महीने पहले विदेश में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। लगभग 3 महीने...
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प्रतीकात्मक चित्र।
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सुभाष पौलस्त्य/निस

पिहोवा, 4 मई

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तीन महीने बाद फ्रांस से युवक की लाश उसके घर पर पिहोवा पहुंची। पूजा कॉलोनी निवासी युवक सुशील कुमार की 3 महीने पहले विदेश में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। लगभग 3 महीने बाद सांसद नवीन जिंदल की सहायता से युवक की डेड बॉडी घर पहुंची।

परिजनों का रो-रो कर बुरा हाल हो गया। सुशील के शव का आज गमगीन माहौल में संस्कार किया गया। मृतक के बड़े भाई बलराम ने बताया कि उसका छोटा भाई सुशील कुमार जनवरी, 2024 में विदेश में गया था और 16 फरवरी, 2025 को उनके पास फोन आया कि आपके भाई सुशील कुमार की मौत हो गई है। उनके भाई की मौत के कारणों का अभी तक उनको पता नहीं चल पाया है। उन्होंने कहा कि उनके पास डेड बॉडी मंगवाने के लिए पैसे नहीं थे। उन्होंने सरकार से गुहार लगाई और सांसद नवीन जिंदल के प्रयासों से आज लगभग 3 महीने बाद सुशील की डेड बॉडी घर पहुंची है और उसके भाई सुशील के शव का आज अंतिम संस्कार किया गया है।

पूजा कॉलोनी निवासी 28 वर्षीय युवक सुशील कुमार 8 जनवरी, 2024 को पेरिस (फ्रांस) गया था। 8 फरवरी को सुशील की उसके भाई सौरव से बातचीत हुई थी। 11 फरवरी को अपने बड़े भाई संदीप के जन्मदिन की स्टोरी अपनी फेसबुक पर शेयर की थी। उसके बाद सुशील का फोन बंद हो गया। परिजन उसे कॉल करने का प्रयास करते रहे, लेकिन उनकी युवक से कोई बात नहीं हुई।

मृतक के भाई सौरव ने बताया कि जब उनकी सुशील से बात नहीं हुई तो उसके साथ कमरे में रहने वाले साथी से बातचीत करने की कोशिश की गई, लेकिन उससे भी संपर्क नहीं हुआ। तब 15 फरवरी को मकान मालिक ने उसके भाई के फंदा लगाकर सुसाइड करने की सूचना दी। उनको मकान मालिक की बात पर विश्वास नहीं है, क्योंकि 8 फरवरी को सुशील उनके साथ सामान्य बातचीत कर रहा था। 11 फरवरी को उसने फेसबुक पर भाई के जन्मदिन की स्टोरी शेयर की थी। सुशील पेरिस में कपड़े के शोरूम पर काम करता था। यह शोरूम किसी पाकिस्तानी मालिक का है।

उसने पाकिस्तानी व्यक्ति से बातचीत की थी। उसने भी सुशील के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताया है। वे बार-बार उस पाकिस्तानी को भी कॉल कर रहे हैं, मगर पाकिस्तानी भी उनका फोन नहीं उठा रहा। सुशील के पिता जगदीश चंद रोडवेज विभाग में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी रहे हैं।

विभाग से रिटायर होने के बाद मिले पैसे और कर्ज लेकर उन्होंने सुशील को फ्रांस भेजा था। सुशील के सहारे पर उनका घर-परिवार का गुजारा हो रहा था। सुशील की मौत से परिवार पर आर्थिक संकट आ गया है।

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