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सूरजकुंड दीपावली मेला में लोक कला, संगीत और शिल्प का अद्भुत संगम

दीपेश राही की प्रस्तुति रही मुख्य आकर्षण

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दीपेश राही
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सूरजकुंड दीपावली मेला में लोक कला, संगीत और शिल्प का अद्भुत संगम । अरावली की वादियों में आत्मनिर्भर भारत-स्वदेशी मेला थीम पर आयोजित द्वितीय सूरजकुंड दीपावली मेला सांस्कृतिक, पारंपरिक और शिल्प कला का अनूठा उत्सव बन गया है। मेले की मुख्य चौपाल पर रविवार को विद्यार्थियों व लोक कलाकारों ने रंगारंग प्रस्तुतियों से दर्शकों का मन मोह लिया। वहीं, आंध्र प्रदेश से आए शिल्पकार दशरथ अचारी की लकड़ी की नक्काशी भी आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।

सांस्कृतिक मंच पर विद्यार्थियों और कलाकारों की प्रस्तुति

मुख्य चौपाल पर राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, जागृति पब्लिक स्कूल सहित कई संस्थानों के विद्यार्थियों ने हरियाणवी और अन्य पारंपरिक लोकगीतों पर एकल और सामूहिक नृत्य प्रस्तुत कर दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया।

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इसके साथ ही, कलाकारों द्वारा प्रस्तुत भगवान श्रीकृष्ण-सुदामा नाटक ने न केवल मनोरंजन किया, बल्कि प्रेम, भाईचारे और समानता का संदेश भी दिया। वहीं, 'दुनिया में हो गया नाम म्हारे हरियाणे का' जैसे लोकनृत्य पर दी गई प्रस्तुति ने माहौल में हरियाणवी रंग घोल दिया।

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सूरजकुंड दीपावली मेला  में दीपेश राही की प्रस्तुति रही मुख्य आकर्षण

रविवार रात्रि को सांस्कृतिक मंच पर वॉयस ऑफ पंजाब 2013 के विजेता गायक दीपेश राही ने अपनी दमदार आवाज़ में एक से बढ़कर एक हिट गीतों की प्रस्तुति दी।

'सामने होवे यार...', 'कजरा मोहब्बत वाला', 'गुड़ नाल इश्क मिठ्ठा', 'न जाई पीरा दे डेरे', 'डॉलर वांगू नी नाम सदा चलदा' जैसे गानों ने माहौल को संगीतमय बना दिया।

युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक सभी दर्शकों ने तालियों की गड़गड़ाहट और झूमते हुए उनका भरपूर स्वागत किया।

सूरजकुण्ड मेले के सांस्कृतिक मंच पर वॉयस ऑफ पंजाब 2013 के विजेता गायक दीपेश राही अपनी दमदार और भावपूर्ण प्रस्तुति देते हुए। हप्र

सूरजकुंड दीपावली मेला में लकड़ी पर अद्भुत नक्काशी: दशरथ अचारी की कलाकारी

मेले में आंध्र प्रदेश से आए शिल्पकार दशरथ अचारी की वुड कार्विंग कला सभी का ध्यान खींच रही है। दशरथ हाथ से लकड़ी पर नक्काशी कर भगवान गणेश, बुद्ध, कृष्ण, विष्णु, वेंकटेश्वर और तिरुपति बालाजी जैसी भव्य मूर्तियां तैयार करते हैं।

उनकी बनाई मूर्तियां 1 फीट से लेकर 6 फीट तक की हैं। 6 फीट की एक मूर्ति को बनाने में करीब 6 महीने का समय लगता है। मशीन का उपयोग न कर, हाथ से बनी इन कलाकृतियों में परंपरा और धैर्य झलकता है।

दशरथ ने बताया कि उन्हें यह कला अपने पिता से विरासत में मिली है। सांगवान और महागनी जैसी लकड़ियों का उपयोग कर वे वर्षों तक टिकने वाली मूर्तियां बनाते हैं। यह स्टॉल न केवल दर्शकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है बल्कि स्वदेशी कला के प्रति आस्था का प्रतीक भी है।

आत्मनिर्भर भारत की दिशा में कदम

हरियाणा के पर्यटन मंत्री डा. अरविंद शर्मा ने कहा कि सूरजकुंड मेला स्वदेशी अभियान को बल दे रहा है। मेले के माध्यम से न केवल पारंपरिक लोक संस्कृति को प्रोत्साहन मिल रहा है, बल्कि महिला उद्यमियों, कलाकारों और कारीगरों को आर्थिक आत्मनिर्भरता भी मिल रही है।

उन्होंने नागरिकों से आह्वान किया कि वे “स्वदेशी अपनाएं, आत्मनिर्भर भारत बनाएं” के संकल्प को सशक्त करें और लोकल उत्पादों को अपनाकर देश को आत्मनिर्भर बनाने में योगदान दें।

पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा, सूरजकुंड मेला अब साल में दो बार

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