उत्तर-पूर्व दिशा में मुख करके भाई का तिलक करें बहनें : आचार्य त्रिलोक
भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का पर्व भाई दूज 23 अक्तूबर को मनाया जाएगा। प्राचीन सूर्यकुंड मंदिर अमादलपुर के आचार्य त्रिलोक शास्त्री ने कहा कि भाई दूज, दीपावली का अंतिम पर्व है, जो भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है। इसे यम द्वितीया भी कहते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन यमराज अपनी बहन यमुना के घर गए थे। यमुना ने उनका स्वागत कर तिलक किया और उन्हें मिठाई खिलाई। प्रसन्न होकर यमराज ने वचन दिया कि इस दिन जो बहन अपने भाई का तिलक करेगी, उसके भाई की रक्षा स्वयं यमराज करेंगे। तभी से यह दिन यम द्वितीया कहलाया।
आचार्य त्रिलोक ने बताया कि भाई दूज केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि भाई-बहन के अटूट प्रेम और विश्वास का प्रतीक है। यह पर्व परिवार को एकजुट करता है और रिश्तों में मिठास लाता है। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने बहन सुभद्रा से मुलाकात की थी। भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक दैत्य का संहार कर द्वारका लौटने पर अपनी बहन सुभद्रा से भेंट की। सुभद्रा ने उनके स्वागत में दीप जलाए, मिठाइयां और फूल अर्पित किए, और उनके माथे पर तिलक लगाकर उनके दीर्घायु की कामना की। तभी से यह दिन भाई और बहन के स्नेह और सुरक्षा के प्रतीक पर्व के रूप में मनाया जाने लगा। आचार्य त्रिलोक ने बताया कि इस पूजा के समय बहन का मुख उत्तर-पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। यह दिशा सकारात्मक ऊर्जा और शुभता को बढ़ाती है। इस दिशा में बैठकर तिलक करने से बहन के जीवन में भी सुख और शांति बनी रहती है। तिलक करने का शुभ मुहूर्त दोपहर 1:13 बजे से 3:28 बजे तक रहेगा। प्रातः शुभ की चौघड़िया 6:26 से 7:50 बजे तक पहला महूर्त, दूसरा लाभ की चौघड़िया 12: 04 से 13:29 बजे तक व तीसरा महूर्त 1:13 से 3:28 बजे तक श्रेष्ठ मुहूर्त पंचांग के अनुसार है।