संस्कृत देववाणी है, शब्द नाद और प्रकाश : प्रो. वेदालंकार
आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी से मिलकर बना ‘आयुष’ शब्द एक मधुर और गहन अर्थ वाला संयोग है, जिसमें संपूर्ण प्राकृतिक चिकित्सा समाहित है।
शब्द नाद है, शब्द ज्योति है और शब्द प्रकाश है, क्योंकि यह चेतना और संस्कार का माध्यम होते हैं। ये विचार कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के संस्कृत, पाली एवं प्राकृत विभाग से सेवानिवृत्त प्रो. भीम सिंह वेदालंकार ने श्रीकृष्ण आयुष विश्वविद्यालय के संहिता एवं सिद्धांत स्नातकोत्तर विभाग द्वारा आयोजित संस्कृत सप्ताह महोत्सव में बतौर मुख्य वक्ता व्यक्त किए। कार्यक्रम की शुरुआत भगवान धन्वंतरि की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलित कर की गई।
इस अवसर पर कुलपति प्रो. वैद्य करतार सिंह धीमान, कुलसचिव प्रो. ब्रिजेंद्र सिंह तोमर, प्राचार्य प्रो. आशीष मेहता, डीन एकेडमिक अफेयर्स प्रो. जीतेश कुमार पंडा, संहिता एवं सिद्धांत विभागाध्यक्ष प्रो. कृष्ण कुमार और आर एंड आई निदेशक प्रो. देवेंद्र खुराना ने मुख्य अतिथि का स्वागत किया। इस अवसर पर प्रो. दीप्ति पराशर, प्रो. रवि राज, प्रो. नीलम कुमारी, प्रो. सीमा रानी, डॉ. सुरेंद्र सहरावत, प्रो. मनोज तंवर, डॉ. आशीष नांदल, डॉ. अनामिका, डॉ. सुखबीर, डॉ. ममता, संस्कृत क्लब सचिव डॉ. सीमा रानी, डॉ. प्रीति समेत अन्य शिक्षक व विद्यार्थी उपस्थित रहे।
कार्यक्रम में कुलपति प्रो. वैद्य करतार सिंह धीमान ने कहा कि संस्कृत, सनातन और आयुर्वेद ये तीनों एक-दूसरे के अभिन्न अंग हैं, और इनका संरक्षण वर्तमान समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि संस्कृत के बिना आयुर्वेद अधूरा है। यह केवल एक भाषा नहीं, बल्कि आयुर्वेद के शास्त्रीय ज्ञान की आत्मा है। आज की युवा पीढ़ी के लिए यह अनिवार्य है कि वे अपनी जड़ों से जुड़ें और संस्कृत जैसी प्राचीन भाषा को आत्म गौरव और आत्म बल के रूप में अपनाएं।